केजरीवाल सरकार अक्सर फंड न होने का रोना रोती है। लेकिन इस बार ये हरकत उसकी की जान पर बवाल बन सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली सरकार के वकील को फटकार लगाकर हिदायत दी है कि पिछले तीन साल में विज्ञापनों पर हुए खर्च का ब्योरा कोर्ट के सामने पेश करें। खास बात है कि दिल्ली सरकार का विज्ञापनों पर हुआ खर्च अरसे से विपक्षी दलों के निशाने पर है। लेकिन इस बार गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले मेें है।

दरअसल, सुनवाई RRTS (रीजनल रेपिड ट्रेंजिट सिस्टम) को लेकर चल रही थी। तभी जस्टिस संजय किशन कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की बेंच को बताया गया कि दिल्ली सरकार प्रोजेक्ट के लिए पैसा देने से इनकार कर रही है। सरकार का कहना है कि उसके पास फिलहाल फंड नहीं हैं। जस्टिस संजय किशन कौल ने गुस्से में लाल पीला होते हुए कहा कि 2020 के बाद से विज्ञापन पर कितना खर्च हुआ ये दो हफ्ते में बताए।

सुप्रीम कोर्ट की बेंच को बताया गया कि दिल्ली सरकार के फंड न देने की वजह से दिल्ली-अलवर और दिल्ली-पानीपत कॉरीडोर का काम रुका हुआ है। एक और वकील ने अदालत को बताया कि दिल्ली-मेरठ कॉरीडोर का काम भी फंड न दिए जाने की वजह से ठप पड़ा हुआ है। इतना सुनकर जस्टिस संजय किशन कौल के तवर तल्ख हो गए। उनका कहना था कि हम विकास के प्रोजेक्ट पर कुछ नहीं कहते। वो आपका अधिकार है कि ऐसे प्रोजेक्टस को कब और कितना पैसा जारी करते हैं। लेकिन ये पर्यावरण से जुड़ा मसला है। इसमें कोताही बर्दाश्त नहीं की जा सकती है।

दिल्ली सरकार के वकील से जस्टिस ने पूछा- क्या आप चाहते हैं कि हम आदेश जारी करें

जस्टिस कौल का कहना था कि अगर जरूरत पड़ी तो हम आदेश जारी करके विज्ञापनों के लिए खर्च होने वाले पैसे को RRTS प्रोजेक्ट की तरफ डाईवर्ट कराएंगे। लेकिन पहले हमें ये तो पता चल जाए कि आपके पास मौजूद फंड की क्या स्थिति है। जस्टिस कौल ने दिल्ली सरकार के वकील से यह भी पूछा कि क्या आप चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट इस तरह का आदेश जारी करे।

दिल्ली के वकील ने कहा- पिछले साल से केंद्र नहीं दे रहा जीएसटी का मुआवजा

हालांकि दिल्ली सरकार के वकील ने कहा कि 2020 में कोविड की वजह से सरकार के पास फंड नहीं बचा था। पिछले साल से केंद्र जीएसटी से जु़ड़ा मुआवजा भी नहीं दे रहा है। उनका कहना था कि इसी वजह से सरकार के पास फंड नहीं हैं। जीएसटी का बकाया तकरीबन पांच हजार करोड़ है।