जानेमाने फिल्मकार कुंदन शाह, सईद मिर्जा और लेखिका अरुंधति रॉय समेत 24 और नामचीन लोगों ने देश में असहिष्णुता के बढ़ते माहौल के खिलाफ अपने राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार लौटा दिये और आशंका जताई कि देश के मजबूत लोकतंत्र का तानाबाना मौजूदा माहौल में टूट सकता है।

इनके साथ ही अब तक कम से कम 75 बुद्धिजीवी अपने राष्ट्रीय पुरस्कार या साहित्य सम्मान लौटा चुके हैं। इस बीच लेखिका नयनतारा सहगल ने कहा कि देश में धर्मनिरपेक्षता पहले कभी इतने खतरे में नहीं रही जितनी अब है। वह अक्तूबर में साहित्य अकादमी पुरस्कार लौटाकर सम्मान वापस करने वाली शुरुआती लेखिका हैं।

फिल्मकार पुणे स्थित भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान (एफटीआईआई) के प्रदर्शनकारी छात्रों का भी मजबूती से समर्थन कर रहे हैं। इन छात्रों ने कुछ दिन पहले ही अपनी 136 दिन की हड़ताल को वापस ले लिया था। फिल्मकारों ने उनका साथ देते हुए कहा कि अब यह लड़ाई शिक्षा की अव्यवस्था से आगे बढ़कर ‘असहिष्णुता, विभाजनकारी माहौल और नफरत’ के खिलाफ भी हो गयी है।

अपने सम्मान लौटाते हुए 24 फिल्मकारों ने राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को लिखे पत्र में कहा, ‘‘हमें उम्मीद है कि यह सांकेतिक भाव आपको हमारी इन आशंकाओं की ओर ध्यान देने की ओर मुखातिब करेगा कि हमारे मजबूत लोकतंत्र का तानाबाना मौजूदा माहौल में टूट सकता है।

बुकर पुरस्कार विजेता लेखिका अरुंधति रॉय के हवाले से कहा गया कि वह वैचारिक क्रूरता के खिलाफ सम्मान लौटा रहीं हैं। उन्होंने 1989 में डॉक्यूमेंट्री ‘इन व्हिच एनी गिव्स इट दोज वन्स’ के लिए मिला सर्वश्रेष्ठ स्क्रीनप्ले का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार लौटा दिया।

पुरस्कार लौटाने वालों की सूची में अनवर जमाल, वीरेंद्र सैनी, प्रदीप कृष्णन, मनोज लोबो, विवेक सच्चिदानंद, पी एम सतीश, अजय रैना, सुधाकर रेड्डी यक्कांती, तपन बोस आदि के नाम भी हैं।

एफटीआईआई के पूर्व छात्र कुंदन शाह ने कहा कि अपनी मशहूर फिल्म ‘जाने भी दो यारो’ के लिए उन्हें जो एक मात्र राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था, उसे छोड़ना बहुत दुखद है लेकिन एफटीआईआई के अध्यक्ष के रूप में गजेंद्र चौहान की नियुक्ति के खिलाफ यह एक जरूरी फैसला है।

शाह ने कहा, ‘‘मैं इस सम्मान के लिए अपनी संस्था एफटीआईआई का आभारी हूं। अगर मैंने एफटीआईआई में पढ़ाई नहीं की होती तो ‘जाने भी दो यारो’ भी नहीं बनती।’’

एफटीआईआई के पूर्व अध्यक्ष और ‘अलबर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है’ जैसी फिल्मों एवं टीवी धारावाहिक ‘नुक्कड़’ के लिए मशहूर मिर्जा ने कहा कि छात्रों ने जो आंदोलन शुरू किया था, वह अब बड़ा हो गया है और ‘असहनशीलता, विभाजन और नफरत’ के खिलाफ आंदोलन बन गया है।

केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू ने पुरस्कार लौटाने वालों पर पलटवार करते हुए कहा, ‘‘मोदी सरकार के विकास के एजेंडा को पटरी से उतारने के प्रयास किये जा रहे हैं।’’

‘अवार्ड वापसी’ कहे जा रहे इस अभियान को कुछ वर्गों से आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ रहा है जो इसे सोचा समझा प्रदर्शन करार दे रहे हैं। लेकिन शाह ने इस दलील का विरोध करते हुए कहा कि उनकी फिल्में उस समय की सरकार और कांग्रेस के खिलाफ भी थीं।

उन्होंने बताया कि पुरस्कार की राशि चैरिटी में दान दे दी जाएगी और ट्रॉफी सूचना और प्रसारण मंत्रालय के प्रतिनिधियों को सौंप दी जाएगी। उधर फिल्म निर्माता महेश भट्ट ने एफटीआईआई छात्रों के समर्थन में और देश में बन रहे माहौल के खिलाफ अपने राष्ट्रीय पुरस्कार लौटा चुके 36 फिल्मकारों की प्रशंसा करते हुए कहा कि यह बहादुरी वाला काम है।

उन्होंने कहा, ‘‘मुझे इसमें कुछ गलत नहीं लगता। वे भारत के नागरिक हैं और वे जिस तरीके से चाहें अपना असंतोष जाहिर करने का हक रखते हैं।’’

जब भट्ट से पूछा गया कि क्या वह भी खुद को मिले कई राष्ट्रीय पुरस्कार लौटाएंगे तो उन्होंने कहा, ‘‘जब मैं कभी उन्हें लेने नहीं गया तो मैं उन्हें लौटा कैसे सकता हूं।’’

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