देश के पूर्व वित्त मंत्री और भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता अरुण जेटली का शनिवार को दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। वह 66 साल के थे। अरुण जेटली के निधन के बाद हर कोई अपने तरीके से उन्हें श्रद्धांजिल दे रहा है। जेटली जितने कुशल नेता थे उतने ही नामी वकील भी थे। उन्होंने राजनीति के साथ-साथ वकालत भी पूरे दिल से की। जेटली की वकालत और संसद की प्रक्रिया को संजीदगी से उतारने की नजीर पेश करने वाली एक घटना काफी दिलचस्प है। साल 2018 और तारीख 18 अगस्त को कोलकाता हाईकोर्ट के जस्टिस सौमित्र सेन के खिलाफ राज्यसभा में महाभियोग का प्रस्ताव लाया जा रहा था। प्रक्रिया पूरी होने से पहले तत्कालीन नेता विपक्ष अरुण जेटली संसद में कई सारी भारी किताबें लेकर पहुंचे।
वह अपनी बहस और तर्कों को मजबूत बनाने के लिए इन किताबों का अध्ययन करके आए थे। बाद में संसद के बाहर जेटली ने मीडियाकर्मियों को बताया कि उन्होंने बहस की तैयारी के लिए इन किताबों पर 35000 रुपए खर्च किए। इस घटना से अरुण जेटली की संजीदगी का साफ पता चलती है। वह संसद की कार्यवाही को कितनी गंभीरता से लेते थे। साल 2002 में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में अरुण जेटली कानून मंत्री थे। उनके कार्यकाल के दौरान ही दलबदल कानून लेकर एतिहासिक फैसला लिया गया था। यह संविधा में 91वां संसोधन था। साल 2003 में एकल दल-बदल के साथ-साथ सामूहिक दल बदल को भी असंवैधानिक करार दिया गया। जेटली की उदार छवि को एक और घटना पुख्ता करती है।
सिर्फ कपड़े और कुछ गहने ले भारत आया था जेटली का परिवार
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साल 2010 में जेटली ने लोकसभा में महिलाओं के लिए सीट आरक्षित करने का समर्थन किया। अटल बिहारी वाजपेयी भी इस बिल के पक्ष में थे। कांग्रेस के कार्यकाल में जेटली ने इस बिल का समर्थन कर अपनी उदार छवि का एक और उदाहरण पेश किया था। वाजपेयी के दौर के बाद अरुण जेटली एक उज्जवल नेता के तौर पर उभरे, जेटली ने विपक्ष में कभी अपने दोस्त नहीं खोए। वह कभी किसी के प्रति निजी टिप्पणी नहीं करते थे। अरुण जेटली भले ही अपने लेखों में नेहरू- गांधी परिवार की जमकर आलोचना करते रहे हो लेकिन अपनी बेटी की शादी का निमंत्रण लेकर वह खुद सोनिया और राहुल गांधी को बुलाने गए थे। साल 2014 में एनडीए की जीत के बाद अरुण जेटली ने अपने एक लेख में लिखा था कि निसंदेह मनमोहन सिंह एक अच्छे वित्त मंत्री थे।