पिछले दिनों दिल्ली के नेशनल स्टेडियम के एक गलियारे में ‘इंडिया आर्ट फेस्टिवल’ का आयोजन किया गया। इसके संस्थापक व कार्यकारी निदेशक राजेंद्र का कहना है कि कला का बाजार और दीर्घाओं के व्यवस्था-तंत्र को लोकतांत्रिक बनाने की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इसे देखते हुए यह उत्सव सामाजिक व सांस्कृतिक दायित्व भी है।

यह उत्सव दिल्ली में पहली बार आयोजित किया गया। इसकी शुरुआत 2011 में मुंबई में हुई थी। इसमें बड़ी व मध्यम श्रेणी की दीर्घाएं, आधुनिक व समसामयिक कलाकृतियां प्रदर्शित होती हैं। इनके अलावा कई कलाकार किसी दीर्घा के माध्यम से नहीं, स्वतंत्र रूप से इसमें हिस्सा लेते हैं। मुंबई में किए गए पांच आयोजनों के बाद दक्षिण कोरिया की राजधानी सोल में भी इसका आयोजन किया गया था। दिल्ली के कलाकार इस प्रकार के आयोजनों से परिचित हैं। इंडिया आर्ट फेस्टिवल में पांच देशों से पंद्रह शहरों के लगभग 300 कलाकारों ने हिस्सा लिया।

यहां तीन मूर्तिकारों ने अपनी फाइबर ग्लास और कांसे से बनाई गई मूर्तियां प्रदर्शित की थीं। ये थीं नमिता सक्सेना, गौरी वर्मा और रेनू खंडेलवाल। इनके पास ही आरती झवेरी का बड़ा-सा संस्थापन था। इनमें धातु की पत्तर, वायर और कागज का उपयोग किया गया। इसका शीर्षक था ‘उत्तरोत्तर बढ़ती आकांक्षाएं।’ 96 गुणा 120 गुणा 144 इंच के इस संस्थापन को आरती ने 2016 में ही यानी इसी महीने बनाया था।

रेल की पटरी जैसी बनावट की यह पट्टी जमीन के ऊपर गोल गोल घूमती हुई दीवार के ऊपर पहुंचती है। यहां जमीन पर कागज से बने कई पदचिह्न हैं जो नीचे के बिखराव के साथ-साथ दीवार के ऊपर चढ़ रहे हैं। रोचक बात यह है कि दर्शक इनमें से किसी भी पदचिह्न को उठा कर उस पर अपना संदेश, प्रतिभाव, कविता कुछ भी लिख सकता था। जिन कलाकृतियों में दर्शक भी हिस्सा ले सके ऐसे संस्थापन काफी लोकप्रिय हो रहे हैं। इस संस्थापन में आरती की कल्पना और सृजनशीलता का परिचय झलकता है।

पूजा इरन्ना ने स्टेपल पिनों से एक इमारत जैसा शिल्प बनाया था। 21.5 गुणा 18 गुणा 4 इंच के इस शिल्प में नीचे के एक कोने से ऊपर तक जाती सीढ़ी भी बनाई थी। यह रोचक कृति थी। सुधांशु सुतार ने टिन के एक बक्से में पृथ्वी का गोला रखा था। उसके चारो ओर केकड़े थे। जमीन पर भी बहुत सारे केकड़े थे जो ऊपर चढ़ने का प्रयत्न कर रहे थे। बक्से ऊपर चारों ओर सुधांशु ने एक्रिलिक रंगों से चित्र बनाए थे। इनमें देश के नेताओं के चेहरे थे। पशु-पक्षी-पुष्प भी थे। इस संस्थापन का शीर्षक था ‘अ-सहिष्णुता।’ देश के हालात के प्रति कलाकार की संवदेनशीलता यहां प्रस्तुत की गई थी।

यहां चित्रों की बहुलता और विभिन्नता देखना दर्शकों को अच्छा लगा। ‘आर्ट विंग्ज’ नामक संस्था ने अपने छोटे से स्टाल में समूह प्रदर्शनी लगाई थी। इसमें सिद्धार्थ, आजाद, आरती सिन्हा, दिलराज कौर, हरमीत सिंह, किरण सिंह, रघुवीर अकेला, रवींद्र और संजु दास, शिबानी सहगल और शिवानी शर्मा के अलग-अलग माध्यमों में बनाए गए चित्र थे। क्यूरेटर व मूर्तिकार वेद प्रकाश भारद्वाज द्वारा फाइवर ग्लास से बनाई गई मूर्ति थी ‘मस्तक।’ प्रत्येक कृति की संकल्पना, रंगों का चयन, संरचना आकर्षक थे।

कहीं पर एमएफ हुसेन, केजी सुब्रमण्यन, रजा, अवनींद्रनाथ टैगोर इत्यादि जैसे वरिष्ठ कलाकारों की कृतियां प्रदर्शित की गई थीं तो कहीं अनिता तिवारी जैसे कलाकारों ने अपना स्वतंत्र स्टाल लेकर चित्र प्रदर्शित किए थे। स्टाल छोटे-छोटे थे और कलाकृतियां बहुत सारी थीं। जितनी जगह में यह कला उत्सव फैला था उससे चार गुना अधिक जगह की जरूरत थी। तब ही प्रत्येक कृति के साथ न्याय हो पाता। फिर भी यह प्रयास वास्तव में सराहनीय था। कृतियों की भीड़ में भी आकर्षक और सक्षम कृतियां दिखाई देती थी।