सच है कि एआइ के अभी शुरुआती दिन हैं, लेकिन यह पहली तकनीक है, जो अस्तित्व में आते ही न केवल विवादों में घिर गई, बल्कि मानव अस्तित्व को ही मिटाने की क्षमता हासिल कर लेने के मुकाम तक चुटकियों में पहुंच सकने की स्थिति में आ गई। महज पांच सालों में तीस फीसद नौकरियों को एआइ और ‘आटोमेशन’ द्वारा हड़प लिया गया। अमेरिका की दिग्गज निवेश बैंकिंग कंपनी गोल्डमैन सैक्स की एक रिपोर्ट बताती है कि एआइ तीस करोड़ पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर जगह ले सकता है।

जिस सक्रियता के साथ, जल्दबाजी में, बड़े-बड़े सपने संजोकर कृत्रिम बुद्धिमत्ता यानी आर्टीफीशियल इंटेलीजेंस (एआइ) का खाका तैयार किया गया, उसे मूर्त रूप दिया गया, वही अब उल्टा पड़ रहा है। ऐसा लगता है कि इसे लेकर किया गया आकलन सकारात्मक न होकर नकारात्मक प्रभाव दिखाने लगा है। मानवता के लिए न केवल बड़ा, बल्कि इतना बड़ा खतरा बन गया है कि सदी तो छोड़िए, कुछ दशक में ही विनाश की संभावनाएं बलवती लगने लगी हैं।

जिस खोज पर वैज्ञानिक इतरा रहे थे, उसी की स्थिति यह हो गई है कि वह महामारी और परमाणु युद्ध जैसी विभीषिकाओं से भी बड़ी और विनाशकारी लगने लगी है। सामाजिक स्तर के खतरों का कारण बन कर मानवता की विलुप्ति तक का अहसास कराने लगी है। पूरी दुनिया में बहुत कम अंतराल में इसको लेकर जिस तरह की खलबली मची और वैज्ञानिक से लेकर शोधकर्ता, सामाजिक संगठन, यहां तक कि दुनिया के बड़े-बड़े देश, सरकारें तक चिंतित हैं, उससे यही समझ आता है कि मामला कोई मामूली नहीं रह गया है। इस पर प्राथमिकता से निर्णय के साथ इसे भविष्य के लिए बड़ी सीख के रूप में लेना होगा।

इससे जुड़ी तमाम वेबसाइटों और संगठनों ने भी आसन्न कई आपदाओं की चेतावनी देते हुए राजनीतिक अस्थिरता और दुर्भावनाग्रस्त लोगों के हथियार के रूप में एआइ के इस्तेमाल से मानवता की तबाही की आशंका व्यक्त करते हुए चिंता जताई है। निश्चित रूप से जब मनुष्य अपना नियंत्रण खो चुका होगा, तो चुनौतियों से कैसे निपटेगा? सारे काम यांत्रिक हो जाएंगे, तो मनुष्य अपनी ऊर्जा और क्षमताओं का उपयोग कहां करेगा?

योजनाबद्ध पूर्वाग्रह, झूठी और गलत सूचनाएं, बदनीयती से भरी सूचनाओं का उपयोग, यहां तक कि साइबर हमले, युद्ध सामग्री का उपयोग, आपरेशन थियेटर में सर्जरी, सड़कों, रेल पटरियों पर बिना चालक के गाड़ी, आसमान में बिना पायलट के जहाज, यानी सारा कुछ एआइ करेगा तो मानव मस्तिष्क का क्या उपयोग रह जाएगा? कुछ भी हो, मानव जैसी संवेदना, सोच और समझ भला कृत्रिम संचालक या नियंत्रक में कहां होगी?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) ने भी माना है कि एआइ जनित भाषा माडल यानी ‘लार्ज लैंग्वेज माडल’ (एलएलएम) आधारित उपकरण इंसानी समझ की नकल करते हैं। इनका उपयोग स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के उपकरणों के संचालन के लिए कड़ी परीक्षा और मूल्यांकन के बाद ही हो। बगैर निगरानी के एआइ का उपयोग रोगियों के लिए शुरू में लाभदायक, लेकिन बाद में बेहद खतरनाक हो सकता है।

डब्लूएचओ मानता है कि चिकित्सा व्यवसायियों, रोगियों, शोधकर्ताओं और वैज्ञानिकों को इससे लाभ तो होगा, लेकिन किसी भी तकनीक के केवल एक पहलू यानी लाभ को देखना बहुत बड़ा जोखिम भी होगा। अब जबकि एआइ को लेकर लाभ-हानि की चिंताओं के बीच नई बहस की शुरुआत हो चुकी है, वहीं तकनीक के महारथियों की आपसी प्रतिस्पर्धा से भी लगने लगा है कि इसकी अति ही कहीं अंत का कारण न बनने लगे।

यह भी ध्यान देने लायक है कि एआइ चैटबोट, चैटजीपीटी के मुख्य कार्यकारी सैमुअल आल्टमैन ने अमेरिकी कांग्रेस के सांसदों के सामने माना था कि एआइ की स्थापना इस विश्वास पर की गई थी कि इसमें मानव जीवन के लगभग हर पहलू को बेहतर बनाने की अद्भुत क्षमता है। मगर सही है कि इसमें गंभीर जोखिम भी है।

एआइ की चालाकी का एक उदाहरण पूरी दुनिया के लिए बेहद चिंता का कारण भी बना, जो 2017 में फेसबुक के प्रयोगधर्मी निर्माताओं ने बाब और एलिस नाम के दो चैटबोट बनाए। इनकी आपस में बात कराई, तो इन्होंने उम्मीद से आगे अपनी खुद की गुप्त भाषा विकसित कर ली, जिसे वैज्ञानिक भी नहीं समझ पाए कि ये आखिर क्या बातें कर रहे हैं!

हालांकि यह शुरुआती दौर ही कहा जाएगा, लेकिन इतना तो समझ आने लगा है कि इसकी स्थिति ‘आ बैल मुझे मार’ जैसी ही होने वाली है। निश्चित रूप से शुरुआती दौर में ही नियंत्रित नहीं, बल्कि प्रबंधित करने के लिए सोचने की दिशा में पूरी दुनिया में तेज हलचलें दिखाई देने लगी हैं। अमेरिका में तो इकसठ फीसद नागरिक इससे संभावित नुकसान को लेकर डरे हुए हैं। वाकई, कमाई के चक्कर में जब चैट जीपीटी एआइ के जरिए आया नहीं कि उससे दौड़ में आगे निकलने को माइक्रोसाफ्ट और गूगल जैसे तकनीक के दिग्गज होड़ में जुट गए।

हालांकि इनका दावा है कि उनकी सोच अलग है। वे भाषाओं को संरक्षित करने के उद्देश्य से एक नए ‘लार्ज लैंग्वेज माडल’ यानी एलएलएम को ला रहे हैं, जिसे ‘मैसिव मल्टीलैंगुअल स्पीच’ यानी एमएमएस कहा गया। इसे हाल में ‘मेटा’ ने परिचित कराया। यह माडल ‘टेक्स्ट टू स्पीच’ और ‘स्पीच टू टेक्स्ट’ तकनीक पर ही काम करता है। इसमें लगभग सौ भाषाओं की क्षमता को बढ़ाकर ग्यारह सौ से अधिक किया गया, यानी क्षमता दस गुना अधिक हो गई। भाषाओं और बोलियों के संरक्षण में यह उपयोगी है, लेकिन जब इसके ज्यादातर नकारात्मक उपयोग और प्रभावों पर ध्यान जाता है तो लाभ के मुकाबले हानि अधिक दिखाई देती है।

सच है कि एआइ के अभी शुरुआती दिन हैं, लेकिन यह पहली तकनीक है, जो अस्तित्व में आते ही न केवल विवादों में घिर गई, बल्कि मानव अस्तित्व को ही मिटाने की क्षमता हासिल कर लेने के मुकाम तक चुटकियों में पहुंच सकने की स्थिति में आ गई। महज पांच सालों में तीस फीसद नौकरियों को एआइ और ‘आटोमेशन’ द्वारा हड़प लिया गया। अमेरिका की दिग्गज निवेश बैंकिंग कंपनी गोल्डमैन सैक्स की एक रिपोर्ट बताती है कि एआइ तीस करोड़ पूर्णकालिक नौकरियों के बराबर जगह ले सकता है।

कई जानकार बताते हैं कि एआइ कई ‘प्रोग्रामिंग’ नौकरियों के लिए गंभीर खतरा है। इस तकनीक के विशिष्ट जानकार 4-5 वर्षों से यह संदेश किसी न किसी रूप में पहले ही दे चुके हैं कि चैट जीपीटी, जीपीटी4, और अन्य एआइ अनेक नामी प्रोग्रामरों की नौकरियों को प्रभावित करेंगे।

ऐसा नहीं कि केवल तकनीक के क्षेत्र में इससे चुनौती पैदा हुई हो, बल्कि दूसरे तमाम क्षेत्रों में भी इसका असर दिखने लगा है। लेखन और एंकरिंग के क्षेत्र भी एआइ की पहुंच में आते जा रहे हैं। वह दौर भी बहुत जल्द सामने होगा, जब पत्रकारों को कड़ी प्रतिस्पर्धा, वह भी कम वेतन के साथ करनी पड़ेगी। पंद्रह वर्षों में नब्बे फीसद समाचार मशीनें लिखेंगी।

विश्व आर्थिक मंच की इस भविष्यवाणी को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, जिसमें एआइ से वित्त क्षेत्र में तीन बदलाव तय हैं, जिनमें मानवीय नौकरी में कटौती, एआइ नौकरी में बढ़ोत्तरी और कार्य दक्षता में मानव के मुकाबले कई गुना सटीकता और तेजी। निश्चित रूप से इसका सीधा असर मनुष्यों की उपयोगिता पर ही पड़ेगा। कृषि, खनन और विनिर्माण के क्षेत्र में एआइ मनुष्य के सहज जीवन के लिए बड़ी और सबसे कठिन चुनौती साबित होगा।

यकीनन, कई बार हम अपने बुने जाल में खुद फंस जाते हैं। एआइ पर जल्द नियंत्रण नहीं हुआ तो दुनिया की पूरी जनसंख्या प्रभावित होगी। एआइ प्रलय के मुंह में डाल देने वाला उपकरण है, हृदय और मस्तिष्क विहीन ऐसी दुधारी तलवार है जो कभी जरूरी भी लगती है और कभी मौत का कारण भी बनती है। यह किसी बिगड़ैल आतंकवादी से कम नहीं है। अच्छा होता कि बिना लोभ, मोह, माया के, अपने अस्तित्व के लिए ही सही, इस पर रोक लगाते और मानव ही मानव का मददगार बनता। काश, मात्र ऐसा एआइ ही समूची दुनिया में होता, जो मनुष्यता के साथ जीने के गुर सिखाता, जिससे हमारा संसार एक बार फिर स्वर्ग-सा सुंदर बन जाता!