जम्मू और कश्मीर मुद्दे और वहां मानवाधिकारों को लेकर जमीनी स्थिति पर लगभग 11 साल बाद मंगलवार (17 सितंबर, 2019) को फिर से यूरोपीय संसद में बहस हो सकती है, जबकि इससे पहले 2008 में वहां पर घाटी का मसला उठा था। इसी बीच, पाकिस्तान कश्मीर को लेकर नौ सितंबर से 27 सितंबर तक जिनेवा में चलने वाली संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद (यूएनएचआरसी) की 42वीं बैठक में प्रस्ताव पास कर सकता है। पाक के पास यह प्रस्ताव आगे बढ़ाने के लिए 19 सितंबर तक का वक्त है।
दरअसल, यूरोपीय संघ (ईयू) से जुड़ी राजनीतिक बहस और अहम फैसलों के लिए वहां की संसद अहम मंच है। सूत्रों के हवाले से कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में बताया गया कि ऐसे में यूरोपीय संसद घाटी के मुद्दे पर चर्चा को राजी हो गई है। संसद में मौजूदा प्रेसिंडेंसी फिनलैंड की है और वही निर्णय करेगी कि कश्मीर मुद्दे पर अंतिम टिप्पणी कौन करेगा।
इससे पहले, जुलाई 2008 में यूरोपीय संसद ने एक प्रस्ताव पास किया था, जिसमें भारत से कहा गया था कि जम्मू और कश्मीर में 2006 के बाद से पाई गई अज्ञात ‘लाशों’ के मामले में ‘स्वतंत्र और निष्पक्ष’ जांच करने के लिए कहा था।
सूत्रों की मानें तो यूरीपीय संघ जहां अनुच्छेद 370 को आंतरिक मामला मान रहा है, उसी के साथ उसे घाटी में लोगों के ‘हालात’ की भी चिंता है। विदेश मंत्री एस.जयशंकर की 30 अगस्त को ब्रसल्स यात्रा के दौरान ईयू ने बयान जारी कर चिंता जताई थी।
‘द प्रिंट’ को पूर्व भारतीय राजदूत दिलीप सिन्हा ने बताया, “अगर यूरोपीय संसद में कश्मीर पर चर्चा होती है, तब यह भारत के लिए शर्मिंगदी की बात होगी। हालांकि, इससे जिनेवा में यूएनएचआरसी पर कोई असर नहीं पड़ेगा।”
इसी बीच, रिचर्ड कॉरबेट के नेतृत्व वाली यूरोपीय संसद के कुछ सदस्यों ने भारत के साथ यात्रा और व्यापार पर प्रतिबंध लगाने की मांग की है। उन्होंने इसके अलावा यूरोपीय संसद से वह प्रस्ताव भी आगे बढ़ाने के लिए कहा है, जिसे यूरोपीय संघ में पेश किया जा सके।