जातीय हिंसा से प्रभावित मणिपुर में सुरक्षा बलों को उन 19 थाना क्षेत्रों में काम करने में कठिनाई आ रही है, जो अफस्पा के तहत अशांत क्षेत्र अधिसूचित किए गए थे। इन इलाकों में सेना के अफसर एक मजिस्ट्रेट की मौजूदगी की मांग कर रहे हैं, ताकि उनके जवान झूठे आरोपों से बच सकें।
मणिपुर में कुल 19 थानों को सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम (अफस्पा), 1958 के अधिकार क्षेत्र से हटा दिया गया है। यह कानून सेना को संघर्ष प्रभावित क्षेत्रों में अधिकार प्रदान करता है। शुरू में अप्रैल 2022 में 15 थानों को अफस्पा के दायरे से हटाया गया था, वहीं चार अन्य को इस साल मार्च में हटाया गया। ये क्षेत्र मुख्य रूप से इंफाल घाटी में हैं। यह कानून इस साल अप्रैल से अगले छह महीने तक राज्य के अन्य हिस्सों में प्रभावी रहेगा।
मणिपुर बार एसोसिएशन के बयान पर चिंता जताई
सेना के अधिकारियों ने कहा कि सुरक्षा बलों पर सोशल मीडिया और स्थानीय मीडिया पर निराधार आरोप लग रहे हैं। उन्होंने मणिपुर बार एसोसिएशन के बयान पर चिंता जताई है जिसमें आम जनता से अत्याचारों के सबूत साझा करने के लिए कहा गया है। बार एसोसिएशन के अध्यक्ष युमनम निमोलचंद ने रविवार को प्रेस वार्ता के दौरान जनता से आग्रह किया कि वो सुरक्षा बलों के खिलाफ अपनी शिकायतों के समर्थन में हाईकोर्ट बार एसोसिएशन मणिपुर या ऑल मणिपुर बार एसोसिएशन को दस्तावेज, तस्वीरें या अन्य सामग्री सहित कोई भी उपलब्ध साक्ष्य प्रदान करें।
अधिकारियों ने कहा कि मौजूदा माहौल में जहां दो समुदाय एक-दूसरे पर हमला कर रहे हैं, उन्हें अपना बचाव करने के लिए एक वकील भी नहीं मिल सकता है, क्योंकि सभी अदालतें इंफाल घाटी के भीतर हैं। उन्होंने आरोप लगाया कि यह कदम मुख्य रूप से सेना, असम राइफल्स, सीआरपीएफ और बीएसएफ के खिलाफ है। इस बीच सेना और असम राइफल्स ने राज्य सरकार से कहा कि वे मजिस्ट्रेट की मौजूदगी होने पर ही क्षेत्र में जाएंगे।