कलकत्ता में जारेह स्टीफन का जन्म 3 मई 1990 को सुबह 3 बजे हुआ। उनके माता-पिता, पॉल स्टीफन एक अर्मेनियाई व्यापारी थे। वह जुल्फ़ा (वर्तमान अज़रबैजान में) से ताल्लुक रखते थे। वहीं मां साबित्री एक भारतीय महिला थीं। युवा जारेह के लिए चर्च प्रेयर की जगह से कहीं ज़्यादा था। यह जारेह का घर, खेल का मैदान और एक असाधारण विरासत का प्रवेश द्वार था। जारेह को जल्द ही समझ में आ गया कि उनके पूर्वज लंबे समय से व्यापारी थे, जो समुदाय की पहचान को आकार दे रहे थे।

मिर्ज़ा ग़ालिब स्ट्रीट पर अर्मेनियाई कॉलेज और अकादमी में ज़ारेह ने अन्य अर्मेनियाई बच्चों के साथ अध्ययन किया। उन्होंने कलकत्ता की चहल पहल भरी सड़कों से हिंदी, अंग्रेजी और बंगाली के कुछ अंश सीखे। जारेह की बचपन की सबसे प्यारी यादों में से एक 6 जनवरी को अर्मेनियाई क्रिसमस का जश्न मनाना है, जो शहर के मुख्य रूप से दिसंबर के त्यौहारों से अलग एक परंपरा है। 5 जनवरी की शाम को चर्च सजाया जाता है।

प्राचीन भजन और प्रार्थनाए ज़ारेह को यरूशलेम की याद दिलाने वाली दुनिया में ले जाती थीं। अगली सुबह, पार्क स्ट्रीट पर अर्मेनियाई स्पोर्ट्स क्लब में गंभीरता की जगह उल्लास ने ले ली, जहां सांता क्लॉज़, केक और गिफ्ट उनका इंतज़ार कर रहे थे। यह एक विदेशी भूमि में अर्मेनियाई समुदाय की भावना का एक उत्सव था। हालांकि दशकों बीत चुके हैं, लेकिन जारेह के लिए उन पलों का जादू अभी भी जीवंत है। बड़े होने पर वह कलकत्ता अर्मेनियाई के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हुए।

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कलकत्ता के अर्मेनियाई व्यापारी

1603-1605 के सफ़वीद युद्धों के दौरान फारस (आधुनिक ईरान) के शाह अब्बास प्रथम ने अर्मेनियाई लोगों को उनके गृहनगर जुल्फा से जबरन फारस में बसाया। यह प्रवास फारस को एक प्रमुख रेशम व्यापार केंद्र के रूप में स्थापित करने की उनकी रणनीति का हिस्सा था। विस्थापित अर्मेनियाई लोगों को इस्फ़हान के पास न्यू जुल्फा नामक जिले में बसाया गया। इस नए ठिकाने से अर्मेनियाई व्यापारी भारत में दो साल के व्यापार सर्किट पर निकले, जहां उन्होंने रेशम और अन्य सामान बेचे, बदले में लिनन खरीदा और इसे यूरोप में निर्यात किया।

अचिंतो रॉय और रेशमी लाहिरी-रॉय ने अपने लेख अर्मेनियाई प्रवासी के कलकत्ता कनेक्शन में लिखा है, “भारत आए अर्मेनियाई व्यापारी, एक व्यापारिक नेटवर्क का हिस्सा थे, जिसने अपने अर्मेनियाई भागीदारों या एजेंटों (जिन्हें कमेंडस कहा जाता है) के रूप में भारत में पहले से ही जमीनी उपस्थिति स्थापित कर ली थी।”

बंगाल में पहली अर्मेनियाई बस्ती मुर्शिदाबाद के सैदाबाद में थी, जिसकी स्थापना 1665 में हुई थी। मुगल शासन के तहत मुर्शिदाबाद बंगाल की राजधानी थी, और सम्राट औरंगजेब ने अर्मेनियाई लोगों को सैदाबाद में ज़मीन का एक बड़ा हिस्सा दिया, जहां उन्होंने एक बस्ती स्थापित की। दिलचस्प बात यह है कि मुर्शिदाबाद का आज का रेशम व्यापार इन शुरुआती अर्मेनियाई रेशम व्यापारियों से जुड़ा है। मुर्शिदाबाद में बसने के बाद, कुछ अर्मेनियाई लोग हुगली के महत्वपूर्ण बंदरगाह के पास कलकत्ता के बाहरी इलाके में चिनसुराह चले गए, जहां उन्होंने व्यापार करना और गोदाम बनाना शुरू किया। इस बीच जुल्फान व्यापारी राजनयिक ख्वाजा सरहद इजरायल ने 1698 में अंग्रेजों के लिए सुतनुति, गोविंदपुर और कलिकाता के पट्टे पर बातचीत करके एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

अर्मेनियाई स्ट्रीट पर अर्मेनियाई चर्च में एक प्राचीन मकबरा बताता है कि अर्मेनियाई समुदाय कम से कम 1630 से इस क्षेत्र में मौजूद था। इज़राइली ने 1717 में ग्रैंड इंपीरियल फ़ार्मन को सुरक्षित करके अंग्रेजों की सहायता की, जिसने व्यापक विशेषाधिकार दिए जिससे अंग्रेजों को व्यापार में डच और फ़्रांसीसी से आगे निकलने की अनुमति मिली।

चर्च में प्रवेश करने वाले अतिथियों का स्वागत चमकदार सफ़ेद दीवारों, इस्लामी आर्केड और जगह-जगह लकड़ी की कुर्सियों की कतारों द्वारा किया जाता है। रविवार को एक गायक मंडल अर्मेनियाई प्रार्थना पुस्तकों से प्रे करते हैं।

6 जनवरी को मनाते हैं क्रिसमस

कलकत्ता में अर्मेनियाई चर्चों की एक अनूठी विशेषता यह है कि वे 6 जनवरी को क्रिसमस मनाते हैं, जो शहर के अधिकांश चर्चों के विपरीत है। अर्मेनियाई लोग इस तिथि को क्रिसमस मनाते हैं क्योंकि वे एक ही दिन मसीह के जन्म और बपतिस्मा को मनाने की परंपरा का पालन करते हैं, जिसे थियोफनी का पर्व कहा जाता है। ज़ारेह द्वारा लिखित एक अर्मेनियाई दस्तावेज़ में कहा गया है, “यीशु के जन्म की कोई निश्चित तिथि नहीं बताई गई है। ऐसा कहा जाता है कि पूर्वी चर्च द्वारा तय की गई मूल तिथि 6 जनवरी थी।” जैसा कि ज़ारेह ने बताया, अर्मेनियाई समुदाय 5 जनवरी की शाम को शहर के चर्चों में इकट्ठा होता है और अगली सुबह अतिरिक्त सेवाओं के लिए लौटता है। इसके बाद वे खाना करने, खेलों में भाग लेने और उत्सव की मस्ती में शामिल होने के लिए अर्मेनियाई स्पोर्ट्स क्लब में इकट्ठा होते हैं। पढ़ें क्रिसमस ट्री को कैसे सजाएं?