छत्तीसगढ़ के कांकेर में बीते दिन (16 अप्रैल) सुरक्षा बलों के साथ मुठभेड़ में 29 माओवादी मारे गए थे। माओवादियों के खिलाफ हुए इस ऑपरेशन को सुरक्षा बलों के किसी एक ऑपरेशन की सबसे बड़ी सफलताओं में से एक माना जा रहा है। इस मुठभेड़ में तीन जवान भी घायल हुए हैं। इस आर्टिकल में हम जानेंगे कि बस्तर में 19 अप्रैल को होने जा रहे लोकसभा चुनाव के मतदान से पहले क्यों यह मुठभेड़ कई मायनों में काफी अहम मानी जा रही है?
क्यों अहम था यह ऑपरेशन?
यह कामयाब ऑपरेशन अबूझमाड़ विशाल जंगलों के अंदर सुरक्षा बलों के प्रवेश का प्रतीक माना जा रहा। अबूझमाड़ में तीन दशकों से ज्यादा समय से सुरक्षा एक चिंता का विषय बनी हुई है। जिससे माओवादियों को इस जंगल में अपना प्रभाव बढ़ाने में काफी सहायता मिली है।
इस मुठभेड़ ने यह तय कर दिया है कि माओवादियों की परतापुर क्षेत्र समिति—जिस पर सुरक्षा बलों और नागरिकों दोनों पर कई घातक हमले करने का आरोप है, एक बीएसएफ जवान की हत्या भी शामिल है—पर नकेल कसी जा चुकी है।
क्या फर्क पड़ेगा?
अबूझमाड़ की पहाड़ियाँ और जंगल दक्षिणी छत्तीसगढ़ के बस्तर क्षेत्र में लगभग 4,000 वर्ग किमी के क्षेत्र में फैली हुई हैं। जो मुख्य तौर पर कांकेर के ठीक दक्षिण में नारायणपुर, बीजापुर और दंतेवाड़ा जिलों को कवर करती हैं। यह इलाका जो आकार में गोवा से बड़ा है, ऐसा माना जाता है कि इसका 90 प्रातिशत हिस्सा सरकार के प्रभाव से अछूता है। इस पूरा इलाके में माओवादी बिना किसी खतरे और डर के रहते आए हैं।
भाजपा के सत्ता में आने के बाद से उत्तर में कांकेर और पूर्व में नारायणपुर से अबूझमाड़ के दो मुख्य प्रवेश बिंदुओं पर कुछ नए पुलिस कैंप लगाए गए हैं। अबूझमाड़ में एक बेस कैंप स्थापित किया गया है। एक अधिकारी ने कहा कि इससे मौजूदा ऑपरेशन संभव हो सका है।
पिछले रविवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने छत्तीसगढ़ में एक चुनावी रैली में कहा था कि भारत में अब केवल नक्सलवाद की पूंछ बची है, जो छत्तीसगढ़ में है, मैं वादा करता हूं कि अगर नरेंद्र मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बने तो तीन साल में नक्सलवाद खत्म कर दूंगा।
सरकार और माओवादियों के बीच बातचीत
मुख्यमंत्री विष्णु देव साय ने मार्च 2024 में द इंडियन एक्सप्रेस को दिए एक इंटरव्यू में कहा था– “अगर वे (माओवादी) हथियार छोड़ दें और मुख्यधारा में शामिल हो जाएं तो हम बातचीत कर सकते हैं। इसके जवाब में प्रतिबंधित भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (माओवादी) ने एक प्रेस नोट जारी किया था जिसमें कहा गया था कि वे तभी बात करेंगे जब सुरक्षा कर्मियों की गतिविधियों को छह महीने के लिए रोक दिया जाएगा और उनकी मांगों को माना जाएगा।