हाल ही में एक पॉडकास्ट इंटरव्यू में अनिल शास्त्री ने अपने कॉलेज दिनों का एक किस्सा सुनाया, जिसने उनके पिता पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की सादगी और सिद्धांतों की गहरी छाप दिखा दी। अनिल बताते हैं कि इस एक घटना ने उन्हें जीवनभर के लिए बराबरी और विनम्रता का अर्थ समझा दिया।
इंटरव्यू में उन्होंने कहा कि ‘जब मैं पहली बार दिल्ली के सेंट स्टीफेंस कॉलेज में एडमिशन के लिए गया, तब की याद आज भी बिल्कुल ताजा है। उस समय ऑनलाइन का जमाना नहीं था, सीधे कॉलेज जाकर ही फॉर्म जमा करना होता था। मैंने भी अपना आवेदन पत्र भरा, और जैसा घर से निकलते वक्त पिताजी ने कहा था, वैसा ही लिखा। यानी नाम- अनिल कुमार, पिता का नाम- एल.बी. शास्त्री और पता- 10 जनपथ।
पिता जी का आदेश था- बाकी छात्रों से अलग न दिखना
10 जनपथ तब प्रधानमंत्री आवास हुआ करता था, लेकिन पिताजी का सख्त आदेश था -कभी ऐसा कुछ मत लिखना जिससे लगे कि मैं बाकी छात्रों से अलग हूं। अनिल ने कहा- ‘फॉर्म जमा करते हुए मैं बिल्कुल सामान्य था। लेकिन जिस अधिकारी के पास फॉर्म जमा होना था, उसका नाम राबर्ट – उन्होंने जैसे ही पता पढ़ा, तुरंत मुझे देखा।
उन्होंने पूछा, “10 जनपथ? यह तो प्रधानमंत्री आवास है। क्या आप वहीं रहते हैं?” मैंने धीरे से कहा, “जी… हां।” अगला सवाल और भी दिलचस्प था – “तो आपके पिता वहां क्या करते हैं? सेक्रेटरी हैं? सुरक्षा में हैं?” मैं थोड़ा हिचकिचाया। तभी उन्होंने मुस्कुराकर कहा- “शर्माओ मत। हर इंसान कुछ ना कुछ काम करता है। हर काम की इज्जत होती है।”
उनकी बात सुनकर मुझे लगा कि सच बता ही दूं। मैंने कहा- “ही इज प्राइम मिनिस्टर।” जैसे ही मैंने यह कहा, राबर्ट एकदम खड़े हो गए। मेरे फॉर्म को हाथ में लिया और बोले, “आप मेरे साथ आइए।” कुछ समझ पाता उससे पहले ही वे मुझे प्रिंसिपल के कमरे में ले गए। प्रिंसिपल ने भी मुस्कान से स्वागत किया, हालचाल पूछा और फिर उन्होंने मेरा फॉर्म स्वीकार कर लिया।
https://www.facebook.com/reel/806941641989785
शाम को जैसे ही मैंने उन्हें पूरा किस्सा सुनाया, वे बहुत शांत रहे। उन्होंने कहा, “पहली बात तुमने ठीक की, तुमने अपने नाम और मेरे नाम के अलावा कुछ नहीं लिखा। लेकिन वह तुम्हें प्रिंसिपल के पास ले गए… यह ठीक नहीं था। क्या बाकी बच्चों को भी ले गए थे?” मैंने कहा, “नहीं।” तुरंत बोले—
“फिर यह नहीं होना चाहिए था। सब बच्चे बराबर होते हैं। किसी को यह महसूस नहीं होना चाहिए कि तुम प्रधानमंत्री के बेटे हो।” उनकी यह बात मेरे मन में सीधे बैठ गई।
अनिल शास्त्री ने एक और किस्सा सुनाया। उन्होंने कहा- मेरे साथ एक सिक्योरिटी वाले – ठाकुर जाया करते थे। लेकिन जैसे ही मैं कॉलेज पहुंचता, उन्हें गेट पर ही रोक देता। मैं उनसे कहता, “बाकी छात्रों के साथ सिक्योरिटी नहीं जाती। अगर मैं तुम्हें अंदर ले गया तो पिताजी की बराबरी वाली बात का क्या मतलब रह जाएगा?”
हां, कॉलेज में सब जानते थे कि मैं प्रधानमंत्री का बेटा हूं। मेरी खूब रैगिंग भी होती थी- कभी-कभी ज्यादा भी। मजाक भी होता था, चिढ़ाया भी जाता था, लेकिन मैंने कभी यह नहीं जताया कि मेरे पिता कौन हैं। उस दिन सेंट स्टीफेंस में जो हुआ, और बाद में पिताजी की जो बात सुनी वह मेरे जीवन की सबसे बड़ी सीख बन गई। वह थी कि पद चाहे कितना भी ऊंचा हो, इंसान को जमीन पर ही रहना चाहिए। और सबसे बड़ी बात सब बच्चे, सब लोग बराबर होते हैं।
