सुप्रीम कोर्ट हिजाब मामले पर कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है। कर्नाटक उच्च न्यायलय ने सरकारी स्कूलों और कॉलेजों में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध को प्रभावी ढंग से बरकरार रखा था। सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि राज्य सरकार ने स्कूलों से कहा कि सुनिश्चित करें कि छात्रों ने जो पहना है उसमें कोई असमानता नहीं रहे। यह पूरी तरह से वैधानिक शक्ति के भीतर है।

हिजाब विवाद पर सुनवाई के दौरान तुषार मेहता ने कहा, “अभी तक विद्यालयों में अनुशासन का पालन किया जा रहा था। फिर सोशल मीडिया पर पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया नामक संस्था द्वारा एक आंदोलन शुरू किया गया। यह एक आंदोलन चलाने के लिए बनाया गया था। लगातार सोशल मीडिया पर मैसेज आ रहे थे कि हिजाब पहनना शुरू कर दें और यह ऑन रिकॉर्ड है। मैंने इसका विवरण दाखिल किया है। यह एक बड़े षडयंत्र का हिस्सा था। बच्चे सलाह के अनुसार काम कर रहे थे।”

तुषार मेहता ने तर्क दिया कि हिजाब विवाद बच्चों की मूल सोच नहीं है। हाईकोर्ट के रिकॉर्ड के मुताबिक 2004 से किसी ने हिजाब नहीं पहना। अचानक हड़कंप मच गया। इसके बाद कोर्ट ने पूछा कि चार्जशीट है? इसके जवाब में तुषार मेहता ने कहा कि हां है। तुषार मेहता ने कहा कि यह कहा जाता है कि सरकार अल्पसंख्यकों की आवाज को दबा रही है। लेकिन ऐसा नहीं है। सार्वजनिक व्यवस्था भंग होने के कारण सरकार को परिस्थितियों में हस्तक्षेप करना पड़ा।

तुषार मेहता ने कहा कि इसमें किसी को तो जाना ही होगा मान लीजिए। मान लीजिए आनंद मार्गी कहने लगे कि जुलूस और तांडव नृत्य के साथ-साथ शराब पीना भी जरूरी है। इसपर कोर्ट क्या कहेगा? तुषार मेहता ने कहा कि कोर्ट को यह तय करना होगा कि हिजाब पहनना जरूरी है या नहीं।

तुषार मेहता की बात पर जस्टिस हेमंत गुप्ता ने कहा कि आप सही कह रहे हैं कि अदालत को फैसला करना है, लेकिन कुरान की व्याख्या का हवाला दिया गया है। वे कह रहे हैं कि खिमार का अनुवाद हिजाब में किया गया था और इसलिए यह जरूरी है।