वारिस पंजाब दे का प्रमुख अमृतपाल सिंह मोंगा से गिरफ्तार कर लिया गया है। पहले कहा गया कि खुद अमृतपाल ने सरेंडर किया, लेकिन पुलिस ने उस थ्योरी को खारिज करते हुए साफ कहा कि उसे गिरफ्तार किया गया है। बड़ी बात ये है कि उसने भागने की भी पूरी कोशिश की थी, गिरफ्तारी से पहले अपने लोगों के बीच एक भाषण भी दिया, थोड़ा ड्रामा हुआ और फिर पुलिस ने उसे धर दबोचा। अब जो कार्रवाई रविवार सुबह को की गई है, पंजाब पुलिस पिछले 36 दिनों से उसे पूरा करने की कोशिश कर रही थी। एक मौका तो ऐसा भी आया जब उसकी गिरफ्तारी लगभग हो गई थी, लेकिन ऐन वक्त पर वो चकमा देने में कामयाब हो गया।

अब एक तरफ अमृतपाल पुलिस की आंखों में धूल झोंकता रहा, तो दूसरी तरफ उसके समर्थक पूरी दुनिया में फर्जी प्रदर्शन और फर्जी सोशल मीडिया प्रोपेगेंडा के जरिए उसके पक्ष में माहौल बनाते रहे। फर्जी इसलिए, क्योंकि ये प्रदर्शन पहले से तय थे, एक रणनीति के तहत इन्हें दुनिया के अलग-अलग देशों में किया गया। क्या कनाडा, क्या अमेरिका और क्या ब्रिटेन, हर देश में एक मोर्चा खोला गया, खालिस्तान की मुहिम को ताकत देने का प्रयास रहा और ऐसा नेरेटिव सेट हुआ कि हर कोई अमृतपाल के साथ खड़ा है, भारत में उस पर अत्याचार किया जा रहा है।

फर्जी ट्वीट और फर्जी प्रदर्शन का जाल, अमृतपाल का हथियार

अब ये कोई दावा नहीं है, बल्कि वो सच्चाई है जो लगातार किए गए ट्वीट्स को देख समझी जा सकती है। जैसे किसान आंदोलन के वक्त एक टूलकिट का जिक्र हुआ था, कहा गया था कि एक तय गाइडलाइन के तहत दुनिया के अलग-अलग देशों से समर्थन में ट्वीट किए गए, उसी अंदाज में अमृतपाल को लेकर भी देखने को मिला। #WeStandWithAmritpalSingh और #FreeAmritpalSingh दो ऐसे हैशटैग रहे जो लंबे समय तक सोशल मीडिया पर ट्रेंड करते रहे। इन्हीं हैशटैग के जरिए अमेरिका से लेकर कनाडा तक, कई लोगों ने ट्वीट किए, कई ट्वीट तो ऐसे भी सामने आए जिनमें सेम ही कंटेंट सिर्फ कॉपी पेस्ट कर इस्तेमाल कर लिया गया, यानी कि एक सेट पैटर्न के तहत ट्वीट हुए और उसी वजह से वो सोशल मीडिया पर ट्रेंड भी कर गए।

एक और बात जो हैरान करने वाली है, वो ये कि कई सोशल मीडिया अकाउंट ऐसे सामने आए जो कुछ महीने पहले ही सक्रिय हुए थे। आजतक की एक रिपोर्ट के मुताबिक अमृतपाल के समर्थन में जो ट्वीट किए गए, वहां 243 अकाउंट ऐसे रहे जो इस साल जनवरी में ही बनाए गए थे। वहीं एक साल की बात करें तो 2556 ऐसे संदिग्ध अकाउंट सामने आए जो सिर्फ अमृतपाल के पक्ष में हवा बनाने के लिए क्रिएट किए गए थे। यानी कि एक आदमी को खालिस्तानी मुहिम का मसीहा बनाने के लिए इतना ताम-झाम किया गया। इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि जिस पंजाब में अमृतपाल को लेकर सारा बवाल हुआ, वहां खालिस्तान मुहिम पर कोई ऐसा प्रदर्शन देखने को नहीं मिला, लेकिन बात जब ब्रिटेन, अमेरिका या कनाडा की आती है, तो वहां पर भारत की छवि को खराब करने के लिए प्रदर्शन भी हुए, नारेबाजी भी देखने को मिली और फ्री अमृतपाल के पोस्टर भी लगातार लहराए गए।

दो देश-दो प्रदर्शन, सेम पैटर्न, कोई टूलकिट?

इसका सबसे बड़ा उदाहरण 27 मार्च क देखने को मिला, वो भी दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में। न्यूयॉर्क के टाइम्स स्क्वायर, रिचमंड हिल इलाके के पास बड़ी संख्या में एक भीड़ इकट्ठा हुई। उस भीड़ ने कार रैली भी निकाली और बड़े-बड़े पोस्टर दिखा सियासी संदेश दिया। उन पोस्टर में लिखा था- अमृतपाल को आजाद करो। बड़ी बात ये रही कि महिलाएं और बच्चों को भी उस प्रदर्शन का हिस्सा बनाया गया। अब इस प्रदर्शन को एक तय रणनीति का हिस्सा इसलिए माना जा रहा है क्योंकि इसी अंदाज में ब्रिटेन में भारतीय दूतावास के बाहर भी बवाल देखने को मिला था। असल में 20 मार्च को लंदन में भारतीय उच्चायोग की बिल्डिंग पर खालिस्तानी समर्थकों ने हमला किया था। उस भीड़ ने उपद्रव की सभी हदें पार करते हुए भारतीय तिरंगे को भी नीचे उतार दिया था। दूतावास के बाहर दीवार पर लिख दिया गया-फ्री अमृतपाल। अब अमेरिका और ब्रिटेन की इन दोनों घटनाओं में सिर्फ सात दिन का फर्क रहा, लेकिन प्रदर्शन करने का पैटर्न एकदम सेम, पोस्टर पर लिखा नारा सेम और बवाल करने का कारण भी समान।

अब ये सब इसलिए हो रहा था कि क्योंकि अमृतपाल अपनी गतिविधियों में सक्रिय था। वो पंजाब पुलिस द्वारा तब तक गिरफ्तार नहीं किया गया था, फंड्स उसके पास लगातार आ रहे थे। वो तो अपनी खुद की एक आर्मी भी तैयार कर रहा था। लेकिन अब उसकी गिरफ्तारी ने खालिस्तानी मुहिम को करारी चोट दी है। उसका एक पूरा नेटवर्क जो खड़ा हो चुका था, वो एक गिरफ्तारी से ध्वस्त हो गया है। लेकिन क्या उसकी गिरफ्तारी का मतलब ये है कि खालिस्तानी मुहिम भी समाप्त हो गई है, क्या उसकी गिरफ्तारी ने भारत के खिलाफ इस साजिश को ठंडा कर दिया है? अब इसका जवाब ना है क्योंकि खालिस्तान की ये मुहिम सिर्फ अमृतपाल के इर्द-गिर्द नहीं घूम रही है, वो तो सिर्फ इस प्रोपेगेंडा की एक कड़ी है।

अमृतपाल सिर्फ एक कड़ी, खालिस्तान का नेटवर्क कितना बड़ा?

खालिस्तान का नेटवर्क पाकिस्तान, जर्मनी, इटली, अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों तक फैला हुआ है। हर देश में इसके अपने नेता, अपने समर्थक बैठे हैं। ऐसे में किसी एक शख्स की गिरफ्तारी से पूरे नेटवर्क का ध्वस्त होना मुश्किल है। उदाहरण के लिए जर्मनी में खालिस्तानी समर्थक सिख फॉर जस्टिस का प्रमुख सदस्य जसविंदर सिंह मुल्तानी मोर्चा संभाले खड़ा है। वो तो लुधियाना कोर्ट ब्लास्ट मामले का मुख्य आरोपी भी है। वहीं इसी तरह पाकिस्तान में हरविंदर सिंह रिंदा बैठा है जो खालसा इंटरनेशनल का इंडिया हेड है। वो लौहार से पूरे पंजाब में अपने खालिस्तानी नेटवर्क को मजबूत करने का काम कर रहा है। कनाडा की खालिस्तानी जड़ें तो सबसे ज्यादा मजबूत मानी जाती है। पिछले साल सितंबर में ही बैन संगठन सिख फॉर जस्टिस ने जनमत संग्रह के जरिए खालिस्तान पर सिखों की राय मांगी थी। संगठन दावा करता है कि 12000 के करीब लोगों ने उस मतदान में हिस्सा लिया।

इस समय खालिस्तान से ही जुड़े कुछ ऐसे संगठन भी सक्रिय चल रहे हैं जो किसी शख्स को नहीं बल्कि भारत में बैठे एनजीओ को फंडिंग दे रहे हैं। NIA की ही एक रिपोर्ट बताती है कि खालिस्तान जिन्दाबाद फोर्स, खालिस्तान टाइगर फोर्स, एसएफजे द्वारा भारत में बैठे एनजीओं को लगातार पैसे दिए जा रहे हैं। ये पैसे फर्जी प्रोपेगेंडा फैलाने के लिए खर्च हो रहे हैं, अमृतपाल भी इसकी एक कड़ी था जो अब गिरफ्तार हो चुका है।