चंद्रयान-2 को रवाना किए जाने के कुछ दिन पहले भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान (इसरो) ने रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (डीआरडीओ) के एक छोटे से उपग्रह को सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से पीएसएलवी सी-45 रॉकेट के जरिए पृथ्वी की कक्षा में पहुंचाया। रक्षा मंत्रालय ने इस परियोजना को गुपचुप रखा। दरअसल, पीएसएलवी सी-45 रॉकेट ने एक जासूसी उपग्रह (इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंटेलीजेंस-गैदेरिंग सैटेलाइट, एमिसैट) को अंतरिक्ष में पहुंचाया था। इसे ‘सन सिंक्रोनस पोलर आॅर्बिट’ कही जाने वाली कक्षा में पहुंचाया।

विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम को मापने में सक्षम एमिसैट को अंतरिक्ष में भारत की ‘आंख और कान’ कहा जा रहा है। एमिसैट परियोजना को लेकर कोई विवाद न हो, इसलिए कई अन्य देशों के 28 उपग्रह (अमेरिका के 24, लिथुआनिया के दो और स्पेन एक स्विट्जरलैंड के एक-एक उपग्रह) को लेकर लगभग 239 किलोग्राम वजनी पीएसएलवी रॉकेट ने उड़ान भरी और इन सभी को पृथ्वी की कक्षा में पहुंचाया। इसरो के मुताबिक, एमिसैट के साथ-साथ अन्य देशों के 28 उपग्रहों को पृथ्वी की अलग-अलग कक्षाओं में स्थापित किया गया।

एमिसैट का मुख्य मकसद सरहद पर इलेक्ट्रॉनिक या किसी तरह की मानवीय गतिविधि पर नजर रखना है। यह उपग्रह सीमा पर रडार और सेंसर के सिग्नल पकड़ेगा। दुश्मनों की संचार से जुड़ी किसी भी तरह की गतिविधि का पता भारतीय सुरक्षा एजंसियों को चल जाएगा। इसके जरिए दुश्मन देशों की रडार प्रणाली पर नजर रखने के साथ ही उनकी जगह का भी पता लगाया जा सकेगा। यह दुश्मन के इलाकों का सही इलेक्ट्रॉनिक नक्शा बना सकेगा। दुश्मन के इलाके में मौजूद मोबाइल समेत अन्य संचार उपकरणों की सही जानकारी भी मिलेगी।

रक्षा मंत्रालय के इस प्रोजेक्ट का नाम ‘कौटिल्य’ रखे जाने की खास वजह है। ईसा पूर्व दूसरी शती के महान कूटनीतिज्ञ कौटिल्य के नाम पर डीआरडीओ ने ‘प्रोजेक्ट कौटिल्य’ शुरू किया था। आठ साल में वैज्ञानिकों ने 436 किलोग्राम वजनी एमिसैट को बनाया। यह दुश्मन देशों के रेडार नेटवर्क की निगरानी के साथ ही युद्ध की सूरत में दुश्मन की वायु रक्षा प्रणाली को जाम करने में सक्षम है। एमिसैट पड़ोसी देशों चीन और पाकिस्तान में चल रही है गतिविधियों पर निगरानी रखने में सक्षम तो है ही तटीय क्षेत्रों पर भी नजर रख रहा है।

सबसे पहली बार एमिसैट का जिक्र रक्षा मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट 2013-14 में किया गया था। इसके पेलोड को ‘प्रोजेक्ट कौटिल्य’ के तहत डीआरडीओ के डिफेंस इलेक्ट्रॉनिक्स रिसर्च लैबोरेट्री (डीएलआरएल), हैदराबाद में विकसित किया गया है। रक्षा मंत्रालय ने एमिसैट के बारे में बहुत कम जानकारियां सार्वजनिक की हैं। एमिसैट उपग्रह को इजरायल के जासूसी उपग्रह ‘सरल’ (सेटलाइट विद आर्गोस एंड अल्टिका) की तर्ज पर विकसित किया गया है। एमिसैट में रडार की ऊंचाई को नापने वाला यंत्र अल्टिका लगा है, जिसे डीआरडीओ ने ही विकसित किया है। इस उपग्रह की खासियत जमीन से सैकड़ों किलोमीटर की ऊंचाई पर रहते हुए जमीन की संचार प्रणालियों, रेडार और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के सिग्नल को पकड़ना है। यह उपग्रह बर्फीली घाटियों, बारिश वाले और तटीय इलाकों, जंगल और समुद्री की लहरों को बहुत आसानी से नापने की क्षमता रखता है।