जयंतीलाल भंडारी
भारत को नए वर्ष में पिछले वर्ष की महंगाई, बेरोजगारी, रुपए की गिरती कीमत, विदेशी मुद्रा भंडार में कमी, विदेशी कर्ज, व्यापार घाटा, चिंताजनक मानव विकास सूचकांक जैसी आर्थिक चुनौतियां विरासत में मिली हैं। संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) के मानव विकास सूचकांक में 189 देशों की सूची में भारत 132वें पायदान पर था। रिपोर्ट के मुताबिक, जीवन प्रत्याशा, स्वास्थ्य और शिक्षा की बड़ी चुनौतियां भारत के समक्ष बनी हुई हैं।
दुनिया में प्रतिव्यक्ति आय के मामले में भी भारत की स्थिति 129वें क्रम पर है। बीते वर्ष में महंगाई के मोर्चे पर मुश्किलें पूरे समय बनी रहीं। इजराइल-हमास युद्ध, रूस-यूक्रेन युद्ध, ओपेक द्वारा तेल उत्पादन में कटौती, वैश्विक खाद्यान्न उत्पादन में कमी ने भी महंगाई और आम आदमी की चिंताएं बढ़ाई। खासकर नवंबर 2023 के बाद एक बार फिर थोक और खुदरा महंगाई बढ़ने लगी। खाद्य महंगाई की दर बढ़कर 8.7 फीसद पर पहुंच गईं।
पिछले वर्ष रोजगार की स्थिति संसद की बहसों से लेकर युवाओं के बीच चिंता का कारण बनी रही। उसमें वैश्विक सुस्ती के कारण जो उद्योग-कारोबार प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुए, वहां रोजगार के कम अवसर निर्मित हुए। मगर गिग अर्थव्यवस्था और असंगठित क्षेत्र में मौके बढ़ने से बेरोजगारी दर, जो 2017-18 में छह फीसद थी, 2022-23 में घटकर 3.2 फीसद रही। हालांकि आइटी क्षेत्र की रोजगार तस्वीर बदल गई और बड़ी संख्या में कर्मचारियों को नौकरी छोड़नी पड़ी तथा नई नियुक्तियों का अनुपात भी घट गया। वहीं विमानन और फार्मा जैसे क्षेत्रों में कुशल पेशेवरों की मांग बढ़ी।
हालांकि भारत ने पिछले साल वैश्विक मंदी की चुनौतियों के बीच निर्यात बढ़ाने और आयात घटाने के अधिकतम प्रयास किए, लेकिन निर्यात तेजी से नहीं बढ़ पाया तथा विदेशी मुद्रा की अन्य साधनों से कमाई भी कम रही। इससे व्यापार घाटा बढ़ा। पिछले वर्ष के शुरुआती महीनों में देश के विदेशी मुद्रा भंडार में लगातार गिरावट आई। इस गिरावट का कारण निर्यात में कमी, आयात में वृद्धि और डालर की तुलना में रुपए को थामने के लिए रिजर्व बैंक द्वारा आवश्यकता के अनुरूप विदेशी मुद्रा कोष में संचित डालर का बेचा जाना भी रहा।
निश्चित रूप से विभिन्न आर्थिक चुनौतियों के बीच भी पिछले वर्ष भारतीय अर्थव्यवस्था ने कई मोर्चों पर बेहतर प्रदर्शन किया और इसकी कई आर्थिक उपलब्धियां दुनिया भर में रेखांकित हुईं। कारोबारी और वित्तीय परिदृश्य व्यापक तौर पर विस्तार को लेकर आशावादी रहा और विकास मूलक संकेत देते हुए मजबूत ‘बैलेंस शीट’ प्रस्तुत करता रहा। विनिर्माण, खनन, निर्माण तथा औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि हुई।
खासकर विनिर्माण, कृषि, निर्माण, सीमेंट, बिजली, होटल, परिवहन, वाहन उद्योग, दवा, रसायन, खाद्य प्रसंस्करण और कपड़ा, ई-कामर्स, बैंकिंग, मार्केटिंग, डेटा एनालिसिस, साइबर सुरक्षा, सूचना प्रौद्योगिकी, पर्यटन, खुदरा व्यापार, आदि क्षेत्रों में रोजगार और स्वरोजगार के मौके बढ़ते दिखे। मुद्रास्फीति मौद्रिक प्रयासों से नियंत्रण में रही। कर राजस्व में सुधार हुआ। संवेदी सूचकांक और निफ्टी नई ऊंचाइयों पर पहुंच गए।
यह बात भी आर्थिक घटनाक्रम पर रेखांकित हो रही है कि वर्ष 2023 में भारत राजकोषीय घाटा नियंत्रण करने में सफल रहा है। पिछले वर्ष केंद्र सरकार राजकोषीय घाटे के निर्धारित लक्ष्य, सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5.9 फीसद तक सीमित रखने में सफल रही है। लगभग प्रतिमाह बाजारों में उपभोक्ता मांग में तेजी और उद्योग-कारोबार में बेहतरी से वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) संग्रह में वृद्धि हुई। वर्ष भर में यह बारह फीसद बढ़ा।
अनुमान है कि चालू वित्तवर्ष में प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष कर संग्रह बजट अनुमान से 10.45 फीसद बढ़कर 33.61 लाख करोड़ रुपए हो जाएगा। कारपोरेट एवं व्यक्तिगत आयकर 10.5 फीसद बढ़कर करीब 18.23 लाख करोड़ रुपए के स्तर पर पहुंच जाएगा। रिजर्व बैंक आफ इंडिया ने डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देने के मद्देनजर पिछले वर्ष एक नई योजना भी शुरू की। साथ ही बैंक और एनबीएफसी डिजिटल भुगतान को प्रोत्साहित करने की डगर पर बढ़े हैं।
इसमें दो राय नहीं कि नए वर्ष को भारत द्वारा जी-20 की सफल अध्यक्षता से नए आर्थिक लाभों की ऐसी अभूतपूर्व संभावनाएं मिली हैं, जिससे निर्यात, भारत में विदेशी निवेश, विदेशी पर्यटन और डिजिटल विकास का नया क्षितिज दिखाई देगा। जी-20 से दुनिया में वैश्विक आपूर्ति शृंखला में सुदृढ़ता और विश्वसनीयता के मद्देनजर भारत की अहमियत बढ़ेगी।
जहां प्राकृतिक संपदा संपन्न अफ्रीकी संघ को जी-20 में शामिल कराकर भारत ने इन देशों से नए आर्थिक लाभों की उम्मीदों को बढ़ाया है, वहीं जी-20 में घोषित हुआ भारत-मध्य पूर्व-यूरोप आर्थिक कारिडोर (आइएमईसी) चीन के ‘बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव’ (बीआरआइ) की काट है तथा इसके माध्यम से दुनिया में रेल और जल मार्ग से भारतीय कंपनियों के लिए नए अवसरों की भारी संभावनाओं को आगे बढ़ाया जा सकेगा। इससे अब भारत में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) भी तेजी से बढ़ेगा। गौरतलब है कि वैश्विक स्तर पर प्रत्यक्ष विदेशी निवेश में गिरावट के रुझान के बीच भारत दुनिया के सर्वाधिक एफडीआइ प्राप्त करने वाले बीस देशों की सूची में आठवें पायदान पर रहा है।
गौरतलब है कि भारतीय अर्थव्यवस्था के विकास का परचम फहराने वाली जो सबसे महत्त्वपूर्ण बात दुनिया के कोने-कोने में रेखांकित हुई, वह है कि पिछले वर्ष घरेलू अर्थव्यवस्था का तेज वृद्धि से ब्रिटेन को पीछे करते हुए भारत दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। फिलहाल दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था अमेरिका है। उसके बाद चीन, जापान और जर्मनी का स्थान आता है। यह भी महत्त्वपूर्ण है कि संयुक्त राष्ट्र की रपट के मुताबिक 2023 में भारत 142 करोड़ से अधिक जनसंख्या के साथ दुनिया की सबसे अधिक जनसंख्या वाला देश बन गया है। चीन की जनसंख्या भारत के बाद दूसरे क्रम पर है।
हमें अब इस बात पर भी ध्यान देना होगा कि दुनिया में जो देश विकसित और शक्तिशाली बने तथा गहन संकट से बाहर निकले हैं, उनकी सफलता में अन्य चीजों के साथ राष्ट्रीय चरित्र का निर्माण भी अहम रहा है। कई देशों ने राष्ट्रीय चरित्र को राष्ट्र निर्माण से संबद्ध करके सफलता पाई है। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जापान में राष्ट्र निर्माण के लिए कर्तव्य पालन की पहल सामने आई।
इसी तरह ली कुआन यू के नेतृत्व में सिंगापुर अधिकतम उत्पादकता के राष्ट्रीय चरित्र के साथ सामने आया। अमेरिका ने भी विविध संस्कृतियों के लोगों को एकजुट किया। अधिकांश देशों ने विकास की जरूरतों के अनुरूप अपने राष्ट्रीय चरित्र को नया आकार दिया। निश्चित रूप से लोगों के मन में अपनी विरासत, संस्कृति आदि को समझने से आत्मविश्वास का भाव उत्पन्न होता है।
अपने अतीत की उपलब्धियों के प्रति सराहना का भाव पहचान और गौरव का बोध कराता है। ऐसे में देश को तेजी से आगे बढ़ाने और विकसित भारत के लिए भारतीय मूल्यों, संस्कृतियों और अपने नायकों की वीरता की सराहना के साथ विविधता के बीच एकजुटता बढ़ाना और प्रवासी भारतीयों में भी जुड़ाव पैदा करना होगा। इससे देश विकास के ऊंचे लक्ष्य और आम आदमी की खुशहाली की डगर पर बढ़ेगा।
नए वर्ष की आर्थिकी को 2023 से बेहतर बनाने और देश की विकास दर के लक्ष्य को 6.5 फीसद से आगे पहुंचाना होगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि विकसित देश बनाने का लक्ष्य प्राप्त करने के लिए नए वर्ष में महंगाई नियंत्रित रखने, सरकारी कर्ज को बढ़ने से रोकने, निर्यात बढ़ाने, व्यापार घाटा कम करने, उत्पादन और उत्पादकता बढ़ाने के लिए हर संभव प्रयास और राष्ट्रीय चरित्र के नवनिर्माण के लिए नई पहल की जाएगी।