असम में NRC (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स) को लेकर काफी डर और शंका का माहौल है। अब खबर आयी है कि ओडिशा के केन्द्रपाड़ा जिले में भी असम की तरह एनआरसी लागू करने की मांग उठी है। दरअसल केन्द्रपाड़ा में बड़ी संख्या में बांग्लादेशी मूल के लोगों के होने का अनुमान जताया गया है। केन्द्रपाड़ा के जिन लोगों के बांग्लादेशी मूल के होने की आशंका है, उन्हीं में से एक है रूमा मंडल।

14 साल पहले केन्द्रपाड़ा प्रशासन द्वारा एक लिस्ट जारी की गई थी, जिसमें रुमा मंडल समेत कई लोगों को ‘बांग्लादेशी घुसपैठी’ बताया गया था। रुमा फिलहाल केन्द्रपाड़ा के बनीपाल गांव में रह रही है। द इंडियन एक्सप्रेस को भेजे एक लिखित जवाब में जिला प्रशासन ने बताया है कि साल 2005 में बांग्लादेशी लोगों की पहचान के लिए कोई पद्धति लागू नहीं हुई थी। वहीं जब द इंडियन एक्सप्रेस ने रुमा मंडल से बात की और उसकी तस्वीर लेनी चाही तो वह संभावित एनआरसी के खौफ से इतनी घबरायी हुई दिखी कि उसने तस्वीर के लिए पोज देने से पहले अपने माथे पर बिंदी लगायी और कहा कि ‘मैं उड़िया हूं, और मैं बांग्ला बोलना भी भूल चुकी हूं।’

रुमा के साथ ही उसके पति, सास-ससुर और बड़ी बेटी का नाम भी संभावित घुसपैठियों की लिस्ट में शामिल है। अब रूमा के चार और बच्चे हैं। केन्द्रपाड़ा में एनआरसी लागू करने की बात पर रुमा का कहना है कि ‘यह ठीक नहीं होगा, मैं भद्रक से हूं और एक बांग्लादेश के व्यक्ति से शादी हुई, लेकिन मैं और मेरे बच्चे भारतीय नागरिक हैं।’

बता दें कि इस माह की शुरुआत में कोर्ट के निर्देश पर एक कमेटी का गठन किया गया था, जो कि राज्य में आर्द्रभूमि संरक्षण (Wetlands Protection) और सुरक्षा की देखरेख के उद्देश्य से गठित की गई थी। अब इसी कमेटी ने राज्य के गृह विभाग को सुझाव दिया है कि केन्द्रपाड़ा में एनआरसी लागू किया जाए।

दस्तावेजों के अनुसार, जिले में एनआरसी लागू करने की सलाह मोहित अग्रवाल द्वारा दी गई है। मोहित अग्रवाल ने बतौर कानून मित्र (amicus curiae) हैं और ओडिशा हाईकोर्ट की जिले के भितारकनिका और चिलिका आर्द्रभूमि के संरक्षण में मदद कर रहे हैं। रुमा का गांव बनीपाल भी भितारकनिका की सीमा में आता है। वहीं कोर्ट द्वारा गठित कमेटी भी आर्द्रभूमि के संरक्षण को लेकर चिंतित है। फिलहाल सरकार इस जमीन को अवैध अतिक्रमण से खाली कराने की कोशिश में जुटी है।

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वहीं केन्द्रपाड़ा में एनआरसी लागू कराने की मांग करने वाले मोहित अग्रवाल का कहना है कि ‘इसके पीछे उनका कोई राजनैतिक एजेंडा नहीं है, बस वह राष्ट्रीय सुरक्षा को लेकर चिंतित हैं।’ जिला प्रशासन द्वारा जिले में कथित बांग्लादेशी घुसपैठियों की संख्या बताने से फिलहाल इंकार कर दिया गया है।

स्थानीय लोगों की बात करें तो उड़िया बोलने वाले लोग बंगाली बोलने वाले लोगों को बांग्लादेशी बता रहे हैं। वहीं बांग्ला भाषी लोग खुद को पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के निवासी बता रहे हैं। बंगाली बोलने वाले लोगों का कहना है कि वह बंगाली बोलते हैं, इसका मतलब ये नहीं है कि वह बांग्लादेशी हैं!