अमेरिका में धार्मिक स्वतंत्रता के मामले पर बनी एक संघीय संस्था USCIRF (United States Commission on International Religious Freedom) ने आरोप लगाया है कि असम में राष्ट्रीय नागरक रजिस्टर (NRC) धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने और मुस्लिमों को देश से बाहर करने का एक हथियार है। शुक्रवार को USCIRF ने कहा कि कई घरेलू और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं ने इस मामले में चिंता जाहिर की है।
गौरतलब है कि एनआरसी एक ऐसा रजिस्टर है जिसमें नागरिकों के नाम शामिल हैं। असम में इस रजिस्टर को तैयार करने की प्रक्रिया 2013 में उच्चतम न्यायालय के आदेश के बाद शुरू की गयी। इसके तहत राज्य के करीब 3.3 करोड़ लोगों को यह साबित करना था कि 24 मार्च 1971 से पहले वे भारत के नागरिक थे। एनआरसी की अंतिम सूची 31 अगस्त को जारी की गयी थी जिसमें 19 लाख से अधिक आवेदकों के नाम शामिल नहीं किये गये।
USCIRF ने शुक्रवार को “इशू ब्रीफ : इंडिया” शीर्षक से रिपोर्ट जारी की जिसमें कहा गया है कि एनआरसी “धार्मिक अल्पसंख्यकों को निशाना बनाने का एक जरिया है और विशेषकर भारतीय मुस्लिमों को राज्यविहीन करना, भारत के भीतर धार्मिक स्वतंत्रता की स्थितियों में गिरावट का एक और उदाहरण है।” इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अगस्त 2019 में एनआरसी की सूची जारी करने के बाद बीजेपी सरकार के इस कदम ने उसके मुस्लिम विरोध और पक्षपातपूर्ण रवैये को जगजाहिर किया है।
USCIRF का कहना है कि सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी की सरकार अन्य राज्यों, विशेष रूप से महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में नागरिकों के डेटाबेस के कार्यान्वयन पर काफी जोर दिया है। अमेरिकी आयोग ने कहा कि कई “गरीब परिवारों” के लिए जरूरी दस्तवेज को पेश करना, निपक्षरता, सरकारी कार्यालयों तक जाने के लिए पैसे की कमी और कानूनी रूप से चुनौती देने में अक्षमता जैसी बड़ी रुकावटें थीं। लोगों को कागजी कार्रवाई के दौरान मामूली विसंगतियों के चलते नागरिक रजिस्टर से दूर रख दिया गया। ऐसे मामले कई थे, जिनमें नाम की वर्तनी में अंतर पर उन्हें सूची से दूर रखा गया।
