Pahalgam News: जम्मू-कश्मीर में पिछले कई दशकों से आतंकी बनाम सेना की लड़ाई जारी है। कई मौकों पर आतंकियों को मौत के घाट उतारा गया है, घाटी में शांति स्थापित की बड़ी कोशिशें हुई हैं, लेकिन समय- समय पर और बदलती टेक्नोलॉजी के सहारे ये आतंकी भी अब अपग्रेड हो चुके हैं। उन्हें मुंहतोड़ जवाब तो दिया जाता है, लेकिन उन्हें खोजना उतना ही चुनौतीपूर्ण भी रहता है। इन आतंकियों के लिए जम्मू-कश्मीर में कई ऐसे सुरक्षित ठिकाने बन चुके हैं जहां से ये ना सिर्फ ऑपरेट कर रहे हैं बल्कि कहना चाहिए कि वहां जाकर छिप भी जाते हैं।

मिलिट्री ट्रेनिंग और अमेरिकी हथियार

ऐसा देखा गया है कि पाकिस्तान द्वारा पोषित ये आतंकी अमेरिकी राइफल्स का इस्तेमाल कर रहे हैं, इनके पास अच्छी क्वालिटी की बुलेट प्रूफ जैकेट भी आ चुकी हैं। इस बारे में जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक सीनियर अधिकारी काफी विस्तार से बताते हैं। उनका कहना है कि अब तक तो तीन दशक से हम आतंकवाद से लड़ रहे हैं, यह असल की एक गुरेला वॉरफेयर है। पिछले दो सालों में हमने देखा है कि आतंकियों को मिलिट्री ट्रेनिंग मिलती है, उनके पास यूएस मेड राइफल्स रहती हैं, इसके अलावा अब तो बुलेट प्रूफ जैकेट और स्टील बुलेट भी उनके पास है।

पुलिस अधिकारी आगे कहते हैं कि ये आतंकी ज्यादातर तीन या चार के ग्रुप में आगे बढ़ते हैं। वहां भी उनमें से किसी एक आतंकी के पास जरूर M4 कारबाइन राइफल होती है। ये वही राइफल है जो अमेरिकी कॉम्बैट यूनिट इस्तेमाल करती हैं। अब पुलिस अधिकारी के मुताबिक आतंकियों को इस एक राइफल से काफी फायदा हो रहा है, उनकी ताकत भी इसी वजह से बढ़ी है।

आतंकियों को मिला जंगलों का फायदा

बताया गया है कि यह राइफल हल्की होती है, इसका वजन तीन किलो से भी कम होता है, एक बार में ये 900 राउंड फायर कर सकती है। पुलिस अधिकारी बताते हैं कि इसी बदूंक का सबसे ज्यादा इस्तेमाल जंगलों में हमलों के दौरान किया जा रहा है, इस एक बंदूक की वजह से आतंकियों को दूर से ही हमला करने में काफी मदद मिलती है। अब अच्छे हथियारों का होना सिर्फ एक पहलू है, इन आतंकियों को जम्मू-कश्मीर की भौगोलिक स्थिति का भी काफी फायदा हुआ है, वहां मौजूद घने जंगल ही इन आतंकियों के लिए सेफ शेल्टर बन रहे हैं।

अब वो आतंकी सिर्फ उन जंगलों में छिप नहीं रहे हैं, उन्होंने वहां के मौसम के हिसाब से खुद को ढाल लिया है। माइनस 15 तक के तापमान में ये आतंकी काम कर पा रहे हैं, यह बताने के लिए काफी है कि उन्हें किस स्तर की ट्रेनिंग मिली है। अब जम्मू-कश्मीर के जंगल इन आतंकियों के लिए एक सुरक्षित ठिकाना तो है ही, इसके साथ-साथ यहां की कम विजिबिलिटी भी सुरक्षाबलों की चुनौती बढ़ा रही है। इस बारे में कश्मीर यूनिवर्सिटी के एक रिसर्चर ने काफी सटीक जवाब दिया है।

जंगलों की कम विजिबिलिटी, नेविगेशन मुश्किल

वे कहते हैं कि जो पहाड़ हैं, वो कॉनिफर पेड़ों से घिरे रहते हैं। अगर कश्मीर वाली साइड पर हमारे पास हिमालयन पाइन और हिमालयन स्प्रूस जैसे पेड़ रहते हैं, तो वहीं जम्मू इलाकों में ओक के पेड़ मौजूद हैं। ये जंगल इतने ज्यादा घने होते हैं कि कई बार 30-35 मीटर से ज्यादा आगे का देख नहीं पाते। कई बार यही विजिबिलिटी 10 मीटर से भी कम हो जाती है।

आतंकवादी जिनके घरों को सुरक्षा बलों ने उड़ा दिया?

अब इन जंगलों की एक खास बात और है, जितनी ऊंचाई पर ये स्थित हैं, यहां लोग नहीं दिखते हैं, आबादी काफी कम होती है। ऐसे जंगलों का फायदा तो स्मगलर तक नहीं उठा पा रहे, लेकिन ये आतंकी अपनी साजिश को पूरा करने के लिए इतने तत्पर रहते हैं कि वो इन घने जंगलों को ही अपना शेल्टर बनाते हैं। इन जंगलों में ड्रोन द्वारा नेविगेशन करना भी मुश्किल होता है, इस वजह से यहां आतंकियों का ज्यादा छिपना लाजिमी है।

चीन के गैजेट भी आतंकियों के पास

हैरानी की बात यह है कि आतंकी अब सिर्फ पाकिस्तान की मदद नहीं ले रहे हैं बल्कि उनके पसा तो अब चाइनीज गैजेट भी मिल रहे हैं। दक्षिण कश्मीर के एक पुलिस अधिकारी ने इस बारे में बड़ा खुलासा किया है। वे कहते हैं कि आजकल तो आतंकी कोई डिजिटल फुटप्रिटं नहीं छोड़ रहे हैं। या तो ये लोग चीनी कम्युनिकेशन तकनीक का इस्तेमाल कर रहे हैं या फिर ये लोग पूरी तरह ऑफलाइन डिवाइस पर आ चुके हैं। कुछ मामलों में तो ये आतंकी अब चीन के अल्ट्रासेट फोनों का भी इस्तेमाल कर रहे हैं।

वैसे ऐसा नहीं है कि इन आतंकियों को ट्रेस नहीं किया जाता, बस खेल इतना है कि सुरक्षाबलों की लोकल लोगों पर निर्भरता ज्यादा होती है, वहां की ह्यूमन इंटेलिजेंसही आतंकियों की धरपकड़ में मदद करती है।

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