संविधान निर्माता डॉक्टर बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर आज की राजनीति के केंद्र बिन्दु बन गए हैं। अपने जन्म के 127 सालों बाद भी वो देश के लिए प्रासंगिक बने हुए हैं। देश का दलित और पिछड़ा समुदाय, खासकर इन समुदायों को वोट बैंक समझने वाली राजनीतिक पार्टियां जहां डॉक्टर आंबेडकर को अपना मार्गदर्शक मानकर उनके विचारों पर चलने की कसमें खा रही हैं और राजनीतिक आंदोलन कर रही हैं, वहीं सत्तारूढ़ दल भी आंबेडकर जयंती के बहाने देश को यह संदेश देने की कोशिश कर रहा है कि शासन और सत्ता को भी दलितों और पिछड़ों की चिंता है। साथ ही डॉ. आंबेडकर के विचारों पर चलकर राष्ट्र निर्माण के भूमिका में वो जुटे हैं। डॉ. बी आर आंबेडकर का जन्म 14 अप्रैल, 1891 को तत्कालीन ब्रिटिश भारत के केंद्रीय प्रांत (मध्य प्रदेश) के इंदौर के पास महू शहर की छावनी में एक महार परिवार में हुआ था। भारतीय सामाजिक व्यवस्था में महार जाति को तब अछूत समझा जाता था, इसलिए आंबेडकर का बचपन काफी कठिनाइयों से गुजरा।
आंबेडकर की मां का नाम भीमा बाई और पिता का नाम रामजी मालोजी शकपाल था। उनका परिवार कबीरपंथी था। उनके पिता सेना में सूबेदार थे और माता धार्मिक विचारों वाली गृहिणी थीं। ये लोग महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के अंबावडे गांव के मूल निवासी थे और मराठी थे। माता-पिता और गांव के नाम पर बालक का नाम भीमराव रामजी आंबेडकर पड़ा, जैसा कि महाराष्ट्र में प्रचलन में था। भीम बचपन से ही लड़ाकू और हठधर्मी प्रवृति के बालक थे मगर पढ़ने में विलक्षण प्रतिभा के थे। छुआछूत प्रथा होने के वजह से आंबेडकर को क्लास के बाहर भी रहकर पढ़ना पड़ा था। सी एस भंडारी ने अपनी किताब “प्रखर राष्ट्रभक्त डॉ. भीमराव आंबेडकर ” में लिखा है, “बालक भीम बचपन से ही लड़ाकू था। हठी था। निर्भीक स्वभाव का था। लोकाचार के सारे नियम उसकी आपत्ति के लक्ष्य बिन्दु थे। चुनौतियों के सामने झुकना उसके स्वभाव में नहीं था।”
आंबेडकर अपने माता-पिता की चौदहवीं संतान थे। जब इनकी उम्र कम थी तभी पिता की मौत हो गई। इससे परिवार गरीबी में जीने लगा। आंबेडकर ने साल 1897 में पहले अस्पृश्य के रूप में बॉम्बे के एलफिन्सटोन हाई स्कूल में दाखिला लिया था। 1907 में इन्होंने मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। मैट्रिक परीक्षा पास करने से पहले ही 15 साल की उम्र में साल 1906 में 9 साल की रमाबाई से शादी हुई थी। उन्होंने 1912 में बॉम्बे यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान में डिग्री हासिल की थी।
भंडारी ने लिखा है, “हाई स्कूल में पढ़ते समय भीम की प्रतिभा और पढ़ाई की लगन को देखकर महादेव आंबेडकर नामक एक ब्राह्मण अध्यापक उसे बहुत प्यार करते थे। अक्सर वो शिक्षक दोपहर में छुट्टी के समय अपने भोजन में से चावल, दाल, रोटी भीम को दिया करते थे। उसी शिक्षक ने भीम से अत्यधिक स्नेह की वजह से उसका उपनाम अंबेवाडेकर से बदलकर अपना ब्राह्मण उपनाम आंबेडकर कर दिया और स्कूल के रजिस्टर में भी उसे बदल दिया।” फिर सब दिन के लिए दलित भीम के नाम में ब्राह्मण आंबेडकर उपनाम जुड़ गया।