इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आर्टिकल 21 का हवाला देते हुए कि कोई भी व्यक्ति किसी बालिग को कहीं भी जाने या अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ रहने और अपनी इच्छा से शादी करने से नहीं रोक सकता है। हाईकोर्ट ने महिला को सुरक्षा देने में नाकाम रहने पर सिदार्थनगर के एसपी को कड़ी फटकार लगाई। वह महिला एक व्यक्ति के साथ भाग गई थी।

हाईकोर्ट नाजिया अंसारी और उसके पति उमर की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। इसमें उन्होंने आरोप लगाया था कि पुलिस ने नाजिया को उसके चाचा को सौंप दिया था, जबकि उसने मजिस्ट्रेट के सामने बयान दिया था कि अगर उसे उसके चाचा के घर पर भेजा गया तो उसकी जान को खतरा है। याचिका में यह भी आरोप लगाया गया कि पुलिस ने उमर को अरेस्ट करने की भी कोशिश की।

याचिका में क्या कहा गया

हाईकोर्ट में दायर याचिका में नाजिया ने कहा कि इस साल 8 अप्रैल को अपने घर से भागने के बाद वह हैदराबाद पहुंची जहां वह उमर के साथ एक होटल में रुकी। दोनों ने 17 अप्रैल को मुस्लिम रीति-रिवाजों के मुताबिक एक-दूसरे से शादी कर ली। लेकिन उसके चाचा मोहम्मद जहीर ने एफआईआर दर्ज कराई और पुलिस ने उसे हिरासत में लिया और उसके चाचा को सौंप दिया गया। उसने आरोप लगाया कि पुलिस ने उमर को गिरफ्तार करने की धमकी भी दी।

नाजिया ने कहा कि जब उसे मजिस्ट्रेट के सामने पेश किया गया, तो उसने एक बयान दर्ज करवाते हुए कहा कि वह अपनी मर्जी से ही घर से गई थी और अपनी मर्जी से ही उमर से शादी की थी। ऐसा इसलिए किया क्योंकि वह बालिग थी। नाजिया ने कहा कि उसने मजिस्ट्रेट को बताया कि उसके चाचा ने उमर को झूठे मामले में फंसाया है और उसे जान से मारने की धमकी दे रहे हैं। उसके बयान के बाद भी मजिस्ट्रेट ने उसे उसके चाचा को सौंपने का आदेश दिया।

हाईकोर्ट ने की तल्ख टिप्पणी

हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि हमें लगता है कि यह एक ऐसा मामला है जिसमें याचिका दायर करने वाले बालिग हैं और उन्होंने मुस्लिम रीति-रिवाजों के साथ शादी की है। पहली याचिकाकर्ता नाजिया के रिजल्ट से साफतौर पर पता चलता है कि वह बालिग है और 18 साल से ज्यादा उम्र की है। भले ही याचिका दायर करने वालों ने एक-दूसरे से शादी नहीं की हो, वह अपनी पसंद के व्यक्ति के साथ किसी भी जगह पर जाने, रहने और अपनी मर्जी से शादी के लिए फ्री है। यह संविधान के आर्टिकल 21 में दिया गया अधिकार है।

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आगे कहा कि मजिस्ट्रेट ने भी अपने फर्ज का सही से पालन नहीं किया। नाजिया ने कहा था कि उसे अपनी जान का खतरा है क्योंकि मोहम्मद जहीर ने उसे जान से मारने की धमकी दी थी। याचिकाकर्ता को सिक्योरिटी देने की बजाय उसे उसके चाचा को सौंप दिया। विद्वान मजिस्ट्रेट ने कुछ नहीं किया। धारा 164 सीआरपीसी के तहत बयान केस डायरी में दर्ज है। इसलिए एसपी सिदार्थनगर और एसएचओ बांसी मोहम्मद जहीर के खिलाफ कार्रवाई ना करने के लिए पूरी तरह से उत्तरदायी हैं।

उमर के खिलाफ एफआईआर रद्द करने का आदेश

हाईकोर्ट ने उमर के खिलाफ एफआईआर रद्द करने का पुलिस को निर्देश दिया है। इतना ही नहीं, कोर्ट ने सिद्धार्थनगर के एसपी और बांसी के एसएचओ को यह भी आदेश दिया कि नाजिया को जहां भी वह जाना चाहे जाने और जिसके साथ चाहे रहने की इजाजत दी जाए और इसमें उसके परिवार और चाचा का किसी भी तरह का कोई भी हस्तक्षेप ना किया जाए। कोर्ट ने आदेश में कहा कि यह एसपी सिदार्थनगर और एसएचओ बांसी का फर्ज होगा कि वे यह सुनिश्चित करें कि मोहम्मद जहीर या नाजिया के परिवार का कोई भी सदस्य उसे किसी भी तरह से नुकसान ना पहुंचाए। अगर उसे किसी भी तरह का नुकसान होता है या कोई चोट पहुंचती है तो सिदार्थनगर के एसपी और एसएचओ जिम्मेदार होंगे।