यूपी की नगीना सीट से सांसद चंद्रशेखर आजाद को इलाहाबाद हाई कोर्ट से करारा झटका लगा है। हाई कोर्ट ने भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर की 2017 के सहारनपुर दंगों से जुड़ी याचिकाओं को खारिज कर दिया।

भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर ने उनके खिलाफ दर्ज चारों एफआईआर और उनसे संबंधित कार्यवाही को रद्द करने की मांग की थी। चंद्रशेखर के वकील ने अदालत में तर्क दिया कि एक ही घटना के लिए कई एफआईआर दर्ज करना गलत है क्योंकि सभी घटनाएं एक ही भीड़ द्वारा एक ही दिन की गई थीं।

जस्टिस समीर जैन ने आदेश पारित करते हुए कहा कि अपराध अलग-अलग जगहों और अलग समय पर हुए तो महज इसलिए एफआईआर रद्द नहीं की जा सकती क्योंकि घटनाएं एक ही दिन हुईं।

‘बिजली मौलिक अधिकार है’

हाई कोर्ट ने कहा, “मौजूदा मामले में भीम आर्मी से जुड़ी भीड़ ने लगातार कई घंटों तक अलग-अलग जगहों पर अलग-अलग समय पर आगजनी व तोड़फोड़ की। इसलिए यह कहा जा सकता है कि ये सभी घटनाएं एक ही मुद्दे से जुड़ी हैं।”

अदालत ने कहा, “लेकिन इस तथ्य पर विचार करते हुए कि याचिकाकर्ता सांसद हैं और अपराध उनकी पार्टी के कार्यकर्ताओं ने किए, अपर महाधिवक्ता की दलील से यह एक ऐसा मामला लगता है, जिसमें एक बड़ी साजिश की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।”

चंद्रशेखर के खिलाफ क्या हैं आरोप?

याचिकाकर्ता चंद्रशेखर ने भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (बीएनएसएस) की धारा 528 के तहत चार एफआईआर को चुनौती देते हुए हाई कोर्ट का रुख किया था। चंद्रशेखर के खिलाफ पहली एफआईआर नौ मई, 2017 को दर्ज की गई, जिसमें आरोप लगाया गया कि वह और उनके लोगों (250-300 लोगों की भीड़) ने सड़क जाम की, प्रशासनिक अधिकारियों, पुलिस अधिकारियों पर अवैध हथियारों से हमले किए और सरकारी संपत्ति को नुकसान पहुंचाया।

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भीम आर्मी प्रमुख चंद्रशेखर के वकील ने दलील थी कि चार एफआईआर उसी दिन दर्ज की गईं जो एक ही भीड़ और एक ही घटना से जुड़ी थीं। वकील ने अदालत में दलील दी कि टीटी एंटनी बनाम केरल सरकार और बाबूभाई बनाम गुजरात सरकार के मामले में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के मुताबिक, समान तथ्यों को लेकर दूसरी एफआईआर की अनुमति नहीं है और यह कानूनी प्रक्रिया का दुरुपयोग है।

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दूसरी ओर, अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल ने दलील दी कि ये घटनाएं अलग-अलग जगहों पर हुईं और एफआईआर अलग-अलग लोगों द्वारा दर्ज कराई गईं। उन्होंने कहा कि अगर भीड़ एक जगह से दूसरी जगह जाकर अलग अपराध करती है, संपत्ति को नुकसान पहुंचाती है तो अलग-अलग एफआईआर दर्ज की जा सकती हैं।

अदालत ने बुधवार को दिए अपने फैसले में कहा कि इन घटनाओं की तारीख (नौ मई, 2017) एक ही थी लेकिन घटनाओं की जगह और समय अलग-अलग था।

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