ऑल इंडिया सेव एजुकेशन समिति (एआईएसईसी) ने राष्ट्रीय शिक्षा नीति मसौदा 2019 को ‘हिंदुत्व पैकेजिंग’ और ‘वैश्विक पूंजीकरण’ बताया है। समिति की तरफ से यह बात गुजरात विद्यापीठ में रविवार को आयोजित एक सेमिनार में कही गई। समिति ने इस शिक्षा मसौदे को पेश करने में सरकार की जल्दबाजी का भी उल्लेख किया।

समिति ने कहा कि यह बहुत ही दुखद है कि 450 पन्नों से अधिक के इस दस्तावेज पर सुझाव के मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने  महज कुछ सप्ताह ही दिए गए। एआईएसईसी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रकाश एन शाह ने कहा, ‘राष्ट्रीय शिक्षा नीति का मसौदा में दो बिंदुओं पर ही ध्यान दिया गया है।

इसमें पहला हिंदुत्व पैकेज और दूसरा है वैश्विकरण का ट्रेंड। बाजार की ताकतों के आधार पर शिक्षा की योजना और संकीर्ण राष्ट्रवादी ताकतों को चुनौती दिए जाने की जरूरत है। हम इस तरह के सेमिनार से इसे चुनौती देना जारी रखेंगे।’ शाह ने कहा कि तीन भाषा की नीति जो देश में हिंदी को थोपने की तरफ बढ़ती है, पर मसौदा समिति देश के शिक्षकों, शिक्षाविदों, छात्रों, स्कॉलर और उनके संगठनों के बड़े वर्ग राय शामिल करने में असफल रही।

सेमिनार में शिक्षा के अधिकार के तहत 10वी तक किसी भी बच्चों को फेल नहीं करने की नो-डिटेंशन पॉलिसी का समर्थन किया। इस कार्यक्रम में 14 राज्यों के करीब 250 लोगों ने हिस्सा लिया। एआईएसईसी के महासचिव अनीस कुमार रे ने कहा, ‘प्रधानमंत्री और उनके कैबिनेट मंत्री इस समय शिखर पर हैं।

उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा आयोग या नेशनल कमीशन ऑन एजुकेशन का प्रस्ताव किया था। यह आयोग देश के समूची शिक्षा प्राइमरी से लेकर यूनिवर्सिटी लेवल तक को नियंत्रित करेगा। यह संवैधानिक प्रावधानों का उल्लंघन है।’ रे ने कहा कि भारतीयता और भारतीय परंपरा के नाम पर शिक्षा का भगवाकरण किया जा रहा है।

इसमें पाठ्यक्रम और कोर्सेस में अवैज्ञानिक और इतिहास से इतर विषयों को बढ़ावा दिया जा रहा है। सेमिनार के दौरान स्कूलों में सेमेस्टर सिस्टम, चार साल का ऑनर्स और बैचलर ऑफ एजुकेशन और 15 साल का सेकेंडरी कोर्स, दूरस्थ और ऑनलाइन एजूकेशन के साथ ही शैक्षणिक संस्थानों की स्वायत्ता को नकारे जाने का मुद्दा भी उठाया गया।