अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस पर मंथन करने के लिए 17 नवंबर को बैठक करेगा। बैठक में शीर्ष अदालत में मिली हार और इस फैसले के बाद आगे की रणनीति पर चर्चा की जाएगी।
बैठक में इस फैसले को लेकर शीर्ष अदालत में पुनर्विचार याचिका दाखिल की जाए या नहीं, इस बात को लेकर भी फैसला लिया जाएगा। इससे पहले शनिवार को ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के वकील जफरयाब जिलानी ने इस तरह की बातों से इनकार किया था कि वे लोग पुनर्विचार याचिका दायर करेंगे।
हालांकि, बोर्ड के कई सदस्यों ने कहा था कि वे अयोध्या मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से असंतुष्ट हैं। सूत्रों का कहना है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य इस बात से हैरान हैं कि बाबरी मस्जिद में चोरी से मूर्तियां रखे जाने की बात स्वीकार किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट किस तरह इस फैसले पर पहुंचा।
शीर्ष अदालत ने यह भी माना की 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस कानून का उल्लंघन था। एक सू्त्र ने बताया कि मुस्लिम पक्ष इस बात को लेकर चिंतिंत है कि मस्जिद की जमीन पर उनका हक इसलिए नहीं दिया गया क्योंकि उन्होंने हिंदुओं को चबूतरा और सीता रसोई के पास पूजा करने से नहीं रोका।
5 एकड़ जमीन दिए जाने की बात पर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के सदस्य ने कहा कि हमारे लिए जमीन से ज्यादा मुस्लिम समुदाय के लिए न्याय जरूरी है। सूत्र ने बताया, ‘वक्फ के पास अयोध्या में पहले से ही कई एकड़ जमीन है। जमीन को कोई कमी नहीं है, हम उसकी ही देखभाल नहीं कर पा रहे हैं। वहां लोग जा सकने और पूजा नहीं कर सकते। हमें और जमीन नहीं चाहिए। हमें न्याय चाहिए और इस तरह का वातावरण हो जो कि हमारे समुदाय को संविधान के अनुसार मौलिक अधिकार के तहत मिला है।’
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के मौलाना महमूद मदनी ने कहा कि जब माननीय सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों ने बाबरी मस्जिद के विध्वंस को गैरकानूनी काम स्वीकार कर लिया तो इससे यह साफ है कि एक समुदाय विशेष के खिलाफ अन्याय हुआ है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के पूर्व सदस्य ने कहा कि इस फैसले से अल्पसंख्यक समुदाय का न्यायपालिक पर विश्वास डोल गया है और उन्हें ऐसा लग रहा है कि उनके साथ गलत हुआ है।