लोकसभा चुनाव 2024 को लेकर समाजवादी पार्टी बीजेपी के बाद सबसे ज्यादा एक्टिव मोड में लग रही है, जिसने यूपी में अपनी कई सीटों पर प्रत्याशियों तक ऐलान कर दिया है। साथ ही उसने ही सबसे पहले इंडिया गठबंधन के तहत कांग्रेस के साथ सीट शेयरिंग भी कर ली है। अखिलेश यादव इस बार उत्तर प्रदेश की 80 में कुछ खास सीटों में ज्यादा फोकस कर रहे हैं, जिसमें आज़मगढ़ से लेकर बदायूं, फिरोजाबाद, कन्नौज और मैनपुरी हैं। इन सीटों पर सपा और पार्टी की प्रमुख फैमिली यानी यादव परिवार का ही कब्जा रहा है लेकिन पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान 2019 में सपा को इनमें से भी कई सीटों पर तगड़ा झटका लगा था।
पिछले लोकसभा चुनाव में अखिलेश यादव आजमगढ़ से जीते थे और इस्तीफा दिया तो 2022 के उपचुनाव में यह सीट उनके भाई धर्मेंद्र यादव हार गए थे। इसके अलावा मुलायम सिंह यादव ने मैनपुरी से 2019 में जीत दर्ज की थी। डिंपल यादव हार गई थीं और मुलायम के निधन के बाद वे मैनपुरी से उपचुनाव जीतकर संसद पहुंची थीं।
2019 के ही चुनाव में बदायूं से अखिलेश यादव के चचेरे भाई धर्मेंद्र यादव भी चुनाव हार गए थे। ऐसे में अखिलेश यादव नहीं चाहते हैं कि 2019 की तरह ही सपा के मुख्य परिवार का कोई सदस्य 2024 में भी चुनाव हारे और परिवार की किरकिरी न हो। हाल ही में बसपा के एक पूर्व विधायक गुड्डू जमाली सपा में शामिल हुए हैं, जो कि एक बड़े मुस्लिम नेता के तौर पर जाने जाते हैं। अखिलेश को उम्मीद हैं कि जमाली का सपा में आना पार्टी के लिए मुस्लिम वोट बैंक के लिहाज से सकारात्मक होगा। अखिलेश ने जमाली के स्वागत के दौरान कहा भी कि जमाली का आना पिछड़ा दलित अल्पसंख्यक तीनों ही मोर्चों को मजूबत करने वाला होगा।
अखिलेश ने आजमगढ़ सीट 2019 में जीती थी लेकिन 2022 में उन्होंने इस्तीफा दे दिया था। इतना ही नहीं, सीट पर हुए उपचुनाव में उनके भाई धर्मेंद्र यादव 8 हजार के करीब वोटों से हार गए थे। उस दौरान गुड्डू जमाली बसपा के प्रत्याशी थे और उन्होंने 2.66 लाख वोट हासिल किए थे। ऐसे में अखिलेश की सोच हैं कि जमाली का सपा में आना सपा के लिए फायदा बनेगा। हाल ही में अखिलेश यादव फिरोजाबाद के एक स्थानीय पॉपुलर मुस्लिम नेता और पूर्व सपा विधायक अज़ीम भाई से मिलने उनके घर चले गए थे। अज़ीम सपा से नाराज थे क्योंकि उन्हें 2022 के विधानसभा चुनाव में टिकट नहीं मिला था उनकी पत्नी ने बसपा के टिकट पर चुनाव लड़ा था और काफी वोट काटे थे। इसके चलते बीजेपी के चंद्रसेन जादौन 32 हजार के करीब वोटों से जीते थे।
फिरोजाबाद में काफी दलित हैं, और अखिलेश को उम्मीद है कि राज्यसभा भेजे गए दलित नेता रामजी लाल सुमन के चलते उनके खाते में दलित वोट भी बढ़ेंगे। अखिलेश इस सीट पर भी मुस्लिम दलित यादव कॉम्बिनेशन के जरिए भाई के लिए सीट सेफ करने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं। सपा ने जब अपने प्रत्याशियों की लिस्ट जारी की थी, तो इसमें धर्मेंद्र यादव को मैदान में उतारा गया था लेकिन 19 फरवरी को पांच बार के सांसद सलीम शेरवानी के सपा के राष्ट्रीय महासचिव पद से इस्तीफा देने के बाद, अखिलेश ने धर्मेंद्र की जगह शिवपाल को मैदान में उतारा।
धर्मेंद्र को अब कन्नौज और आज़मगढ़ सीटों का सपा प्रभारी नियुक्त किया गया है, जिससे यह संकेत मिलता है कि वह दोनों में से किसी एक सीट से लोकसभा चुनाव लड़ सकते हैं। पहले ऐसी खबरें भी थीं कि अखिलेश खुद कन्नौज से चुनाव लड़ने की योजना बना रहे हैं और लगातार इस संसदीय क्षेत्र का दौरा कर रहे हैं। उनकी पत्नी डिंपल यादव 2019 में भाजपा के सुब्रत पाठक से 12,353 वोटों के मामूली अंतर से सीट हार गई थीं।
बदायूं के एक स्थानीय नेता ने कहा है कि सपा 2019 को छोड़कर कई चुनावों में बदायूं जीतती रही है। शिवपाल बड़े और अनुभवी नेता हैं और उनकी उम्मीदवारी से जीत की संभावनाएं बढ़ेंगी।