राजस्थान के सियासी घमासान में कांग्रेस को खराब प्रबंधन की वजह से नुकसान उठाना पड़ा है। यह घमासान पूर्व उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट व उनके समर्थक विधायकों की बगावत के बाद शुरू हुआ था। विधायकों की उठापटक को रोकने के लिए पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने पार्टी के वरिष्ठ नेता अजय माकन व रणदीप सिंह सुरजेवाला को राजस्थान भेजा था। हालांकि दोनों पर्यवेक्षक नेता पार्टी के बागी नेताओं को मनाने की भूमिका में कम ही दिखे और लगातार मीडिया में बयान देकर सुर्खियां बटोरते नजर आए।

दोनों नेताओं को राजस्थान के विधायकों व केंद्रीय कांग्रेस नेतृत्व के बीच अहम कड़ी बनाया गया था और 12 दिन से चल रहे सियासी घमासान को सुलझाने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी। राजस्थान जाकर इन्हें वहां के बागी विधायकों से बात करनी थी और इस पूरे बवाल को थामने की कोशिश करनी थी। लेकिन दोनों ही नेता बतौर पर्यवेक्षक की भूमिका में कमजोर नजर आए।

अलबत्ता, ये नेता पार्टी की अंदरूनी गुटबाजी को रोक नहीं पाए। इस बवाल के पीछे पार्टी के 19 विधायकों की भूमिका संदिग्ध मानी जा रही थी। जबकि पार्टी जब भी किसी वरिष्ठ नेता को पर्यवेक्षक की भूमिका में तैनात करती है तो उससे यह उम्मीद की जाती है कि वह पार्टी को विकट स्थितियों से भी बाहर निकाल लाए।

इस पूरे घमासान में दोनों ही नेता केवल राष्ट्रीय नेतृत्व का संदेश राजस्थान सरकार को और स्थानीय जानकारियां केद्रीय नेतृत्व को देने की भूमिका में ही सिमट कर रह गए। इनकी इस सीमित भूमिका की वजह से सब कुछ आलाकमान पर ही निर्भर था। जबकि बतौर पर्यवेक्षक ये दोनों नेता सियासी घमासान शुरू होने के बाद से ही राजस्थान के समीकरण पर नजर रखे हुए थे।

पार्टी हाईकमान ने 12 जुलाई को इन दोनों नेताओं को जिम्मेदारी सौंपी थी। इसके बाद हर दिन राजस्थान में एक नया बवाल सामने आने लगा। इस बवाल से पार्टी की योजना के मुताबिक परिणाम सामने नहीं आए।

अजय माकन व रणदीप सुरजेवाला पहले भी दिल्ली व हरियाणा में अपने-अपने मोर्चों पर फेल साबित हो चुके हैं। पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व ने इन्हें जिम्मेदारी सौंपकर फिर से विश्वास जताया था। माकन दिल्ली से और सुरजेवाला हरियाणा से पिछला चुनाव हार चुके हैं। पार्टी सूत्रों के मुताबिक दोनों ही नेता खुद को साबित करने के लिए एक ही कुर्सी के लिए दौड़ रहे हैं ताकि केंद्रीय टीम में अपनी मजबूत जगह बनाए रख सकें। इससे बार-बार पार्टी की रणनीति को नुकसान हो रहा है।

इससे पूर्व अजय माकन दिल्ली में कांग्रेस के लिए बड़ा बवाल खड़ा कर चुके हैं। मार्च 2019 में उन्होंने कहा था कि राजनीति में कोई स्थायी दुश्मन या दोस्त नहीं होता। उस समय उन्होंने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के गठबंधन की वकालत की थी। इसका नुकसान पार्टी को चुनाव में उठाना पड़ा था। वहीं रणदीप सिंह सुरजेवाला हरियाणा की सक्रिय राजनीति से पहले से जुड़े रहे हैं। इन्हें पार्टी ने 2019 में कैथल से विधानसभा का उम्मीदवार बनाया था। उस समय ये करीब 500 वोट से हार गए थे जबकि इन्हें इसी सीट पर 2009 व 2014 में जीत मिली थी।