तीन तलाक के बाद अब ‘हलाला’ को खत्म करने की मांग उठने लगी है। शिया वक्फ बोर्ड ने इस व्यवस्था को समाप्त करने की वकालत की है। बोर्ड के अध्यक्ष वसीम रिजवी ने ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) की कड़ी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि निकाह हलाला के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका AIMPLB द्वारा अपनी जिम्मेदारी न निभाने का नतीजा है। रिजवी ने कहा कि हलाला प्रथा कुरान मजीद में इसलिए लिखी गई कि लोग जल्दी तलाक न दें, लेकिन इसके नाम पर कई वर्षों से तलाकशुदा महिलाओं का शारीरिक शोषण किया जा रहा है। रिजवी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट को इस्लाम की आड़ में मुस्लिम महिलाओं पर हो रहे अत्याचार का संज्ञान लेना चाहिए। उन्होंने बताया कि हलाला का मतलब है अगर कोई भी मुस्लिम व्यक्ति अपनी पत्नी को तीसरी बार जायज तरीके से तलाक दे देता है तो वह तलाकशुदा पत्नी उस व्यक्ति पर हराम हो जाती है। अब वह उससे दोबारा निकाह तब तक नहीं कर सकता जब तक कि उस महिला का किसी और से निकाह और फिर उससे तलाक न हो जाए।

रिजवी ने हलाला के मौजूदा तौर-तरीकों की कड़ी आलोचना की है। शिया वक्फ बोर्ड के अध्यक्ष ने कहा, ‘हलाला का मतलब यह नहीं है कि तलाक देने वाला अपनी तलाकशुदा पत्नी का खुद ही किसी दूसरे से निकाह करवाए और दूसरे पति से शारीरिक संबंध बनवाने के बाद उससे तलाक दिलवा कर फिर दोबारा स्वयं निकाह कर ले। दुर्भाग्य की बात है कि कुछ मुस्लिम मुल्लाओं ने हलाला को अय्याशी का वैध तरीका बना लिया है।’ रिजवी का कहना है कि इस्लामिक सिद्धातों के अनुसार वह निकाह वैध निकाह नहीं है जो तलाक के इरादे से किया जाए। बता दें कि 5 मार्च को निकाह हलाला और बहुविवाह को असंवैधानिक घोषित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी। इसमें मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अप्लिकेशन एक्ट, 1937 की धारा-2 को असंवैधानिक घोषित करने की मांग की गई है। याचिका के मुताबिक, इससे बहुविवाह और निकाह हलाला को मान्यता मिलता है। याची ने निकाह हलाला और बहुविवाह को संविधान के अनुच्छेद-14 (समानता का अधिकार), 15 (लैंगिक आधार पर भेदभाव की मनाही) और अनुच्छेद-21 (जीवन के अधिकार) का उल्लंघन बताया है।