नवरात्रि के उत्सव में शामिल नहीं होने देने से आहत होकर गुजरात में दो दलित परिवारों ने बौद्ध धर्म अपना लिया। मामला राज्य के अरावली जिले का है। यहां पाटीदार बहुल जिले में उस समय नवरात्रि के मौके पर होने वाला गरबा उत्सव रद्द कर दिया जब दलितों ने इस कार्यक्रम में शामिल होने की इच्छा जताई।

इससे पहले 12 मई को खंबीसर गांव में दलित दूल्हे के घोड़ी चढ़ने को लेकर शादी समारोह में पत्थर फेंके गए थे। जिन दो दलित परिवरों ने बौद्ध धर्म अपनाया है ये उसी दलित दूल्हे के रिश्तेदार हैं। इन दलित परिवारों के मुखिया 30 वर्षीय पंकज राठौर और 29 वर्षीय महेंद्र राठौर सरकारी कर्मचारी हैं।

पकंज स्टेट रिजर्व पुलिस में कॉन्स्टेबल है जबकि महेंद्र रेवेन्यू क्लर्क है। पंकज ने कहा कि कई पीढ़ियों से दलितों को नवरात्रि उत्सव में शामिल होने नहीं दिया जाता है। इस साल कुछ लोगों ने औपचारिक रूप से सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए गरबा में शामिल होने के बाबत पूछा था। हमें शरारत होने की आशंका थी। ऐसे में हमने सरपंच को यह कहते हुए एक औपचारिक पत्र दिया कि हम त्योहार में हिस्सा लेना चाहते हैं और उनसे आग्रह किया कि किसी भी तरह की अप्रिय घटना ना हो।

सरपंच ने गांव में इस बाबत बैठक की और यह निर्णय लिया गया कि नवरात्रि का त्योहार मिलकर मनाएंगे। नवरात्रि के पहले दिन हमें इस बात का पता लगा कि कार्यक्रम का आयोजन रद्द कर दिया गया है। हमने इस बारे में सरपंच से पूछा तो उन्होंने बताया कि कुछ लोग इस कार्यक्रम(दलितों के साथ) का विरोध कर रहे थे। हम इससे काफी निराश हैं और हमें नहीं पता कि क्या करना चाहिए। इसके बाद हमारे समुदाय की महिलाओं ने अपने मोहल्ले में गरबा किया।

पंकज ने कहा कि यदि देवी और देवता होते तो हमें इस तरह के भेदभाव का सामना नहीं करना पड़ता। इसके बाद मैंने और मेरी पत्नी उर्मिला ने बाबा साहेब अंबेडकर के रास्ते पर चलते हुए बौद्ध धर्म अपनाने का निर्णय लिया। पंकज ने अपने एक साल के बेटे और 4 साल की बेटी को भी दीक्षा दिलाई।

वहीं, महेंद्र ने भी अपनी पत्नी जागृति और 2 साल की बेटी के साथ बौद्ध धर्म अपना लिया। हालांकि, सरपंच ने इस बात से इनकार किया है कि दलितों के शामिल होने के कारण नवरात्रि कार्यक्रम रद्द किया गया।