Delimitation : भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India) ने मंगलवार को जानकारी दी है कि असम में विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन की प्रक्रिया शुरू कर दी गयी है। यह प्रक्रिया 2001 से जनगणना के आंकड़ों पर आधारित होगी। असम में निर्वाचन क्षेत्रों का अंतिम परिसीमन 1976 में 1971 की जनगणना के आधार पर किया गया था। राज्य का विपक्ष सवाल कर रहा है कि परिसीमन की कवायद 2011 की जनगणना के आधार पर नहीं होकर 2001 की जनगणना के आधार पर क्यों की जा रही है ?
चुनाव आयोग ने की जानकारी साझा
चुनाव आयोग ने परिसीमन की घोषणा करते हुए कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद 170 के तहत अनिवार्य है। यह प्रक्रिया 2001 से जनगणना के आंकड़ों पर आधारित होगी। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों का आरक्षण भारत के संविधान के अनुच्छेद 330 और 332 के अनुसार प्रदान किया जाएगा।
1971 में असम की आबादी 1.46 करोड़ थी। 2001 में यह बढ़कर 2.66 करोड़ और 2011 में 3.12 करोड़ हो गई। चुनाव आयोग ने अगले साल 1 जनवरी से राज्य में परिसीमन की कवायद पूरी होने तक नई प्रशासनिक इकाइयों के निर्माण पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश भी जारी किया है। चुनाव आयोग ने अगले साल 1 जनवरी से राज्य में परिसीमन की कवायद पूरी होने तक राज्य में नई प्रशासनिक इकाइयों के निर्माण पर प्रतिबंध लगाने का निर्देश भी जारी किया।
चुनाव आयोग के अनुसार असम में निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के एक मसौदा प्रस्ताव को आयोग द्वारा अंतिम रूप दिए जाने के बाद, इसे आम जनता से सुझावों/आपत्तियों को आमंत्रित करते हुए केंद्रीय और राज्य राजपत्रों में प्रकाशित किया जाएगा। मार्च 2020 में, केंद्र ने जम्मू और कश्मीर, असम, अरुणाचल प्रदेश, मणिपुर और नागालैंड के लिए एक परिसीमन आयोग को अधिसूचित किया।
विपक्ष ने किया सवाल
असम में परिसीमन की घोषणा पर प्रतिक्रिया देते हुए राज्य में विपक्ष के नेता देवव्रत सैकिया ने परिसीमन प्रक्रिया का स्वागत करते हुए कहा कि यह लंबे समय से इंतजार था। देवव्रत सैकिया ने इस प्रक्रिया के लिए 2001 की जनगणना के आंकड़ों का उपयोग करने पर चिंता व्यक्त की। देवव्रत सैकिया ने कहा कि यह बहुत पहले होने वाला था।
भाजपा सहित सभी दलों ने विभिन्न सामाजिक संगठनों से मुलाकात की, दबाव समूहों ने भी एनआरसी को अंतिम रूप देने और अशांत क्षेत्र अधिनियम के लागू होने तक परिसीमन को रोकने के लिए केंद्र सरकार को प्रतिनिधित्व दिया। उस दलील को मानते हुए इसे रोक दिया गया था। हम स्पष्ट नहीं हैं कि एनआरसी स्वीकार किया गया है या नहीं। हालांकि परिसीमन जरूरी है। 2011 और 2021 के बाद अगर हम 2001 तक जाते हैं, तो 2001 की जनगणना के आंकड़ों का पालन करना अन्याय होगा। इस तरह का फैसला लेने से पहले सरकार को इस बात पर विचार करना चाहिए कि क्या इससे कोई सार्थक उद्देश्य पूरा होगा।