सुप्रीम कोर्ट में समलैंगिक शादियों के मामले में सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच के समक्ष अपनी जिरह में सीनियर एडवोकेट मुकुल रोहतगी ने कहा कि समलैंगिक शादियों को मान्यता मिलनी चाहिए। इसके लिए सरकार को आगे बढ़कर फैसला करना चाहिए। उनका कहना था कि बहुत सी बातें पुरानी हो चुकी हैं। तलाक के बाद पति ही पत्नी को एलुमनि और मेंटीनेंस दे, ये पुराने समय की बात है।

रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट से अपील की कि समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देकर समाज को ऐसे बंधन स्वीकार करने के लिए प्रेरित करे, ताकि एलजीबीटीक्यूआईए समुदाय के लोग भी विषम लैंगिकों की तरह सम्मानजनक जीवन जी पाए। एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश रोहतगी ने बेंच से कहा कि सरकार को आगे आना चाहिए और समलैंगिक शादियों को मान्यता देनी चाहिए।

विधवा पुनर्विवाह को भी विरोध के बाद मिल गई थी सामाजिक मान्यता

रोहतगी ने विधवा पुनर्विवाह से जुड़े कानून का जिक्र कर कहा कि समाज ने तब इसे स्वीकार नहीं किया था। लेकिन कानून ने तत्परता से काम किया और इसे सामाजिक स्वीकृति मिली। उन्होंने कहा कि अदालत को समाज को समलैंगिक शादियों को मान्यता देने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है। अदालत के पास संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत ऐसा करने का अधिकार है। नैतिक अधिकार पर भी कोर्ट फैसला ले सकती है।

केंद्र की तरफ से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने एक नई याचिका दाखिल कर शीर्ष अदालत से आग्रह किया कि समलैंगिक शादियों को कानूनी मान्यता देने के अनुरोध वाली याचिकाओं पर सुनवाई में सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को पक्ष बनाया जाए। सरकार की ओर से दायर नयी याचिका का विरोध करते हुए रोहतगी ने कहा कि याचिकाओं में केंद्रीय कानून, विशेष विवाह अधिनियम को चुनौती दी गई है। सिर्फ इसलिए कि यह विषय संविधान की समवर्ती सूची में है, राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को नोटिस जारी करने की आवश्यकता नहीं है।

रोहतगी बोले- समलैंगिकों को न माना जाए कमतर

रोहतगी ने आपसी सहमति से बनाए गए समलैंगिक संबंधों को अपराध के दायरे से बाहर किए जाने सहित अन्य फैसलों का जिक्र किया। रोहतगी ने कहा कि अदालत किसी ऐसे विषय पर फिर से विचार कर रही है, जिसमें पहले ही फैसला किया जा चुका है। उनका विषम लैंगिक समूहों के मामले में समान रुख है। ऐसा नहीं हो सकता कि उनका सेक्स ओरियेंटेशन सही हो और बाकी सभी का गलत। उनका कहना था कि ऐसे लोगों को कमतर नहीं माना जाना चाहिए। इससे हमें जीवन के अधिकार का भरपूर आनंद मिल सकेगा।