पश्चिमी दिल्ली में इंडस्ट्रियल एरिया मायापुरी में करीब 1800 फैक्ट्री हैं। यहां जूतें, गाड़ियों के इंजन से लेकर हर चीज बनती हैं। लेकिन पिछले एक महीने से यहां फैक्ट्रियों में काम ठंडा पड़ा हुआ है। नोटबंदी के बाद से कई फैक्ट्रियां बंद कर दी गई हैं, वहीं कई फैक्ट्रियों से लोगों को निकाल दिया गया है। ऐसे में इन फैक्ट्रियों में काम करने वाले लोग अब दूसरे काम करने को मजबूर हैं। आठ नवंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ओर से किए गए नोटबंदी के ऐलान के बाद से फैक्ट्रियों में बनने वाले सामान की डिमांड कम हो गई है।

20 साल के शिवकुमार एक चप्पल बनाने की फैक्ट्री में काम करते थे, लेकिन उन्हें आठ नंवबर के बाद मांग कम होने की वजह 80 अन्य लोगों के साथ निकाल दिया गया। कुमार फैक्ट्री में थ्रेड कटर का काम करते थे, अब वे एक बैंक्वेट हॉल में मसालची के तौर पर काम करने को मजबूर हैं। उन्हें वहां पर बर्तन धोकर 7000 रुपए महीने के मिल रहे हैं। कुमार की तरह से ही अन्य लोग भी नई नौकरियां ढूंढ़ रहे हैं। कुमार का कहना है, ‘यहां पर काम करना अच्छा और बुरा दोनों है। अच्छा इसलिए है कि पार्टी के बाद उन्हें मेहमानों की ओर से छोड़ा गया खाने मिल जाता है, ऐसे में उन्हें घर पर खाने की चिंता नहीं रहती। लेकिन इसमें काफी समय लगता है, क्योंकि पार्टियों देर रात तक चलती हैं। हम लोग 16 घंटे काम करने के बाद सुबह चार बजे घर पहुंचते हैं।’

कुमार अभी एक दिन में 200 से 400 बर्तन साफ करते हैं। कुमार का कहना है कि उनके पिछले काम की तुलना नहीं की जा सकती। उनके मैनेजर कई बार गुस्सा भी हो जाते हैं। लेकिन कुमार को पार्टियों में आने वाले मेहमानों के बर्ताव से हैरानी है। कुमार का कहना है कि कई बार तो गेस्ट लड़कों थप्पड़ भी मार देते हैं। कुमार को जिस कॉन्ट्रेक्टर मनीष ने नौकरी पर रखा है, उसका कहना है कि उनके पास करीब 100 लोगों का स्टाफ है। लेकिन कुमार की तरह कई अस्थाई कर्मचारी भी हैं, जो केवल बर्तन धोने और प्लेट उठाने के लिए रखे जाते हैं। मनीष का कहा है, ‘शादी का मौसम लगभग जा चुका है। ठेके पर हायर किए गए कुमार जैसे कर्मचारियों का बकाया चुका दिया गया है और हम लोग एक महीने के लिए बंद कर रहे हैं। जनवरी में कुछ और शादियों होनी चाहिएं और उस वक्त हम उन्हें दोबारा से हायर कर लेंगे।’

क्रश मेटल स्क्रैप फैक्टरी में पावर प्रेस पर बतौर हेल्पर काम करने वाले 30 वर्षीय गुलाब सिंह को भी 12 नवंबर को नौकरी से निकाल दिया गया था। अभी वे चिकन की दुकान चलाते हैं। सिंह ने बताया, ‘मैंने नौकरी से निकालने जाने के बाद में मेरे फैक्ट्री के मालिक को फोन किया था। लेकिन अभी उसके पास मुझे नौकरी देने लायक काम नहीं है। मायापुरी में अन्य फैक्ट्रियों में भी नौकरी नहीं है। वे जो मेहनतामा दे रहे थे, वह कम से कम मजदूरी से आधा कर दिया गया। ऐसे में मैंने मेरे कमरे में 4000 रुपए से अपनी दुकान शुरू करने का फैसला किया।’

सिंह ने बताया कि उन्होंने पुराने पिंजरे खरीदकर अपना काम शुरू कर दिया। साथ ही उनका कहना है कि अभी चिकन के रेट भी गिर गई है। पहले 160 रुपए प्रति किलो था, जोकि अब 140 रुपए प्रति किलो हो गया है। सिंह अभी 200 रुपए प्रतिदिन कमा लेते हैं।

25 साल के ऋषि सोनी चाइनीज मोबाइल फैक्ट्री में लाइन सुपरवाइजर के तौर पर काम करते थे। 25 नवंबर को फैक्ट्री बंद कर दी गई। सोनी ने बताया कि मालिक ने सभी कर्मचारियों से वादा किया है कि वे मार्च में दोबारा फैक्ट्री खोलेंगे और उन्हें नौकरी देंगे। अब सोनी ने सुभाष नगर मार्केटम में मोमोज की स्टॉल लगाना शुरू कर दिया। सोनी का कहना है, ”मैंने दो साल तक सीखा और उसके बाद एक हेल्पर से लाइन सुपरवाइजर बन गया। इसके बाद मेरे अंडर में 40 हेल्पर थे। अब मैं मोमोज बेच रहा हूं। हालांकि, ये थोड़ा परेशान करने वाला है, लेकिन क्या किया जा सकता है।’ पहले वे फैक्ट्री में 500 रुपए प्रतिदिन कमाते थे, अब वे 300 रुपए कमाते हैं।

नोटबंदी से नौकरी जाने का असर सबसे ज्यादा फैक्ट्रियों में महिला वर्कर्स पर पड़ा है। महिलाओं के लिए अब दूसरा काम ढूंढ़ना भी थोड़ा मुश्किल है। 50 साल की गुड्डी देवी को उसी फैक्ट्री से निकाल दिया गया, जहां से शिवकुमार को हटाया गया था। देवी उस फैक्ट्री में सात साल से काम कर रही थीं। तीन साल पहले उनका 18 साल का बेटा बिरजू भी इसी फैक्ट्री में काम करने लगा। लेकिन बिरजू के पास स्पेशल स्किल होने की वजह से नोटबंदी के बाद भी उन्हें नौकरी से नहीं हटाया गया। देवी का कहना है कि महिलाओं को फैक्ट्रियों में केवल बेसिक काम ही दिया जाता है। ऐसे में महिलाओं को पुरुषों की बजाय कम सैलेरी मिलती है। देवी का कहना है कि फैक्ट्रियों से ज्यादात्तर महिलाओं को निकाला गया है। नौकरी के बाद देवी ने सब्जियों का ठेला लगाने की कोशिश की, लेकिन उन्हें जगह नहीं मिली। इसके साथ ही उन्हें पुलिस की ओर से मांगे जाने वाले वीकली हफ्ते का भी डर था। देवी का कहना है कि कई लोग से नौकरी छूटने के बाद से वापस अपने घर यूपी और बिहार चले गए।