सुप्रीम कोर्ट की आलोचना के मामले में अवमानना का सामना कर रहे वकील प्रशांत भूषण के मामले को लेकर वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने न्यायपालिका को लेकर कई सवाल उठाए। अधिवक्ता दुष्यंत दवे अवमानना मामले में प्रशांत भूषण की पैरवी कर रहे थे।
मामले की सुनवाई जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस कृष्णा मुरारी की पीठ ने की। सुनवाई के दौरान दवे ने इस बात पर दलीलें पेश की कि एडवोकेट प्रशांत भूषण ने चीफ जस्टिस एसए बोबड़े और न्यायपालिका के बारे में जो टिप्पणियां की वे अवमानना हैं या नहीं। अपनी दलीलों से दवे ने अपने मुवक्किल प्रशांत भूषण की तरफ से किए गए ट्वीट का बचाव किया।
दवे ने भूषण के खिलाफ दायर अवमानना मामले में कहा कि उनके मुवक्किल के दो ट्वीट संस्था के खिलाफ नहीं थे। वे न्यायाधीशों के खिलाफ उनकी व्यक्तिगत क्षमता के अंतर्गत निजी आचरण के संबंध में थे। वे दुर्भावनापूर्ण नहीं हैं और न्याय के प्रशासन में बाधा नहीं डालते हैं।
उन्होंने कहा कि भूषण ने न्यायशास्त्र के विकास में बहुत बड़ा योगदान दिया है और कम से कम निर्णयों का श्रेय उन्हें जाता है।
सुनवाई के दौरान दवे ने यह सवाल उठाया कि कुछ जजों को राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामले क्यों मिलते हैं। उन्होंने इस संबंध में राफेल, अयोध्या, सीबीआई डायरेक्टर के मामले का जिक्र किया। उन्होंने जस्टिस नरीमन का उदाहरण दिया जिन्हें इस तरह के मामले नहीं मिले। उन्होंने कहा कि जजों को जिस तरह से केसों का आवंटन किया जाता है उससे आलोचना के लिए अनुकूल जमीन तैयार हो जाती है।
इस पर पीठ ने कहा कि जस्टिस नरीमन कई संवैधानिक पीठ के मामलों का हिस्सा रहे हैं। जस्टिस गवई ने कहा कि जस्टिस नरीमन मणिपुर मामले का भी हिस्सा थे। इस पर दवे ने इस बात पर जोर दिया कि वे राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों की बात कर रहे हैं। मामले पर सुनवाई के बाद पीठ ने अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
सुनवाई के दौरान दवे ने पूर्व सीजेआई रंजन गोगोई के यौन उत्पीड़न मामले का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि इसका क्या असर पड़ा। हमें इन गंभीर मुद्दों को उठाना चाहिए। दवे ने कहा कि आपको राज्यसभा सीट और जेड प्लस सिक्योरिटी मिल जाती है। यह क्या प्रभाव छोड़ता है… राफेल फैसला, अयोध्या फैसला, सीबीआई फैसला।
दवे ने कहा कि पूर्व चीफ जस्टिस रंजन गोगोई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट ने जिस तरह से यौन उत्पीड़न के मामले को हैंडल किया उससे संस्थान की छवि खराब हुई। 22 जुलाई को पीठ ने न्यायपालिका के कथित अपमान को लेकर किए गए प्रशांत भूषण की ओर से किए गए दो ट्वीट्स का स्वत: संज्ञान लिया था। अदालत ने भूषण को नोटिस जारी किया था।
कोर्ट ने न्यायपालिका के खिलाफ उनके दो कथित अपमानजनक ट्वीट को लेकर शुरू की गई आपराधिक अवमानना कार्यवाही पर पांच अगस्त को सुनवाई के लिए नोटिस जारी किया था। बेंच ने कहा था कि प्रथम दृष्टया उनके बयानों से न्यायिक प्रशासन की बदनामी हुई।
नोटिस के जवाब में भूषण ने कहा था कि ‘कुछ के लिए अपमानजनक या असहनीय’ राय की अभिव्यक्ति अदालत की अवमानना नहीं हो सकती है। वकील कामिनी जायसवाल की ओर से दाखिल 142 पेज के जवाब में भूषण ने कोर्ट के कई फैसलों, पूर्व जजों के भाषणों का उदाहरण दिया था।