किसी भी हादसे का सबक यह होना चाहिए कि उसके बाद ऐसे इंतजाम हों, जिससे उस तरह की घटना फिर न हो। मगर ऐसा लगता है कि न तो प्रशासन को इस पर गौर करने की जरूरत लगती है और न ही कारोबारियों से लेकर आम लोगों को यह सोचने की जरूरत लगती है कि मामूली लापरवाही की कीमत क्या हो सकती है।
दिल्ली के अलीपुर में रिहाइशी इलाके में चल रहे एक पेंट के कारखाने में जिस तरह आग लगी और उसमें ग्यारह लोगों की जान चली गई, वह एक बार फिर यह बताने के लिए काफी है कि हर स्तर पर लापरवाही एक अघोषित व्यवस्था के रूप में चल रही है और उस पर लगाम लगाने की जरूरत किसी को नहीं महसूस होती।
इस तरह के किसी भी कारखाने में कई बार ऐसे रसायन और अन्य सामान रखे होते हैं, जो आग लगने और अन्य हादसों के लिहाज से बेहद संवेदनशील होते और किसी भी वक्त बड़ी तबाही का कारण बन सकते हैं। मगर आम लोगों की रिहाइश के बीच ऐसा कारखाना चलाने वालों को सिर्फ अपने मुनाफे से मतलब होता है।
विडंबना है कि सभी की आंखें तब खुलती हैं, जब किसी मामूली कोताही की वजह से भयावह हालात पैदा हो जाते हैं, नाहक ही लोगों की जान चली जाती है। वरना हादसे से पहले अग्नि शमन विभाग या अन्य संबंधित महकमों को किसी तरह की जांच करके गैरकानूनी तरीके से चल रहे कारखानों के संचालकों के खिलाफ कार्रवाई करना जरूरी नहीं लगता या फिर मिलीभगत की वजह से हादसों की बड़ी वजहों की भी अनदेखी कर दी जाती है।
किसी कारखाने में आग लगने या अन्य हादसे की स्थिति में बचाव के पर्याप्त इंतजाम हैं या नहीं, उसमें प्रवेश करने और बाहर निकलने के रास्ते सुरक्षित और सहज हैं या नहीं, इसे लेकर कारखानों के मालिक व्यापक पैमाने पर लापरवाही बरतते हैं। वहीं प्रशासनिक अमला समय-समय पर जांच-पड़ताल करके अवैध इकाइयों के खिलाफ कार्रवाई करने या फिर सुरक्षा इंतजाम सुनिश्चित कराने को लेकर कई वजहों से आंखें मूंदे रहता है। नतीजतन, अक्सर ऐसे हादसे सामने आते रहते हैं, जिनमें लापरवाही की कीमत नाहक ही आम लोगों को अपनी जिंदगी गंवा कर चुकानी पड़ती है।