अब सीरम इंस्टिट्यूट ऑफ इंडिया (SII) भी रूस की स्पुतनिक वी वैक्सीन का उत्पादन करेगा। सरकार ने SII को इसके लिए मंजूरी दे दी है। रूस की कंपनी गमालेया रिसर्च इंस्टिट्यूट ऑफ एपिडेमोलॉजी के साथ मिलकर सीरम इंस्टिट्यूट यह वैक्सीन बनाएगा। दवा नियामक ने शुक्रवार को इसकी इजाजत दी है। अभी सीरम इंस्टिट्यूट को टेस्ट और अनैलिसिस के लिए ही यह मंजूरी दी गई है।

बता दें कि इस समय सीरम इंस्टिट्यूट कोविशील्ड बना रही है। भारत में सबसे पहले इसी ‘देसी’ वैक्सीन का इस्तेमाल शुरू हुआ था। अभी मिली जानकारी के मुताबिक रूस की इस वैक्सीन को 21 दिन के अंतर पर देना पड़ता है। गमालेया के मुताबिक यह वैक्सीन 91 फीसदी कारगर है।

भारत में सीरम इस्टिट्यूट को कुछ शर्तों के साथ लाइसेंस दिया गया है। इसका इस्तेमाल हडसपर केंद्र में स्टडी, टेस्ट और एग्जामिनेशन के लिए किया जाएगा। बाद में आम इस्तेमाल के लिए निर्माण की भी अनुमति दी जा सकती है। अभी तक डॉ. रेड्डीज लैब को स्पुतनिक वैक्सीन बनाने का जिम्मा मिला हुआ है।

स्पुतनिक वैक्सीन अब तक 50 से ज्यादा देशों में रजिस्टर्ड हो गई है। सीरम इस्टिट्यूट ने सरकार से यह भी मांग की है कि उसको संरक्षण दिया जाए। इससे पहले अमेरिकी वैक्सीन निर्माता कंपनी फाइजर और मॉडर्ना ने संरक्षण की मांग की थी। भारत बायोटेक भी यह मांग करने लगी है।

उधर अमेरिका का कहना है कि जिन लोगों ने कोवैक्सीन या स्पुतिनिक वी की डोज ली है उन्हें दोबारा वैक्सिनेशन करवाना होगा। यह भारत के उन छात्रों के लिए कहा गया है जो कि दोबारा कॉलेज या यूनिवर्सिटी खुलने पर अमेरिका जाना चाहते हैं। अमेरिका का कहना है कि इन वैक्सीन को अभी WHO ने अप्रूव नहीं किया है इसलिए भरोसा नहीं किया जा सकता है।

टीकाकरण में अमेरिका से भी आगे निकला भारत

केंद्र सरकार ने शुक्रवार को कहा कि कोविड-19 रोधी टीके की कम से कम एक खुराक ले चुके लोगों की संख्या के लिहाज से भारत ने अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है। इसके साथ ही सरकार ने कहा कि आने वाले दिनों में टीकाकरण अभियान में और तेजी लायी जाएगी।

नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) वी के पॉल ने एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि अब तक 60 वर्ष से अधिक आयु की करीब 43 प्रतिशत आबादी और 45 साल से ज्यादा उम्र की 37 फीसदी आबादी को कोविड-19 रोधी टीके लगाए जा चुके हैं।