जम्मू में वायुसेना के अड्डे पर हुए ड्रोन हमले को सुरक्षा और खुफिया एजंसियों के लिए नई चुनौती माना जा रहा है। यह पहली बार है कि आतंकी हमले के लिए पाकिस्तान पोषित आतंकियों ने ड्रोन के जरिए विस्फोटक गिराए। नुकसान बड़ा नहीं हुआ, लेकिन इन हमलों से आतंकियों और उनको पोषित करने वाली पाकिस्तान सरकार के इरादे स्पष्ट हो गए हैं। भारतीय सैन्य कमांडरों के बीच यह मंथन तेज हो गया है कि ड्रोन के आक्रामक इस्तेमाल को देखते हुए जरूरी है कि देश की सुरक्षा एजंसियां भी उसी हिसाब से रणनीति बनाएं।
दरअसल, भारत समेत विश्व के कई सैन्य बलों में ड्रोन का इस्तेमाल किया जाने लगा है। इनका हमले के लिए इस्तेमाल करने की प्रक्रिया अभी शुरुआती चरण में है। ड्रोन के इस्तेमाल को लेकर अमेरिकी सैन्य बल या रूस, चीन जैसे देश इन्हें युद्ध के एक विकल्प के तौर पर विकसित कर रहे हैं। लेकिन आतंकी संगठन इन्हें हमले के सस्ते विकल्प के तौर पर अपना रहे हैं।
भारत में पहली बार किसी महत्त्वपूर्ण सैन्य ठिकाने को ड्रोन से निशाना गया है। नुकसान ज्यादा नहीं हुआ, लेकिन सैन्य कमांडरों के बीच यह मंथन तेज हो गया है कि दुनियाभर में दो साल में ड्रोन के आक्रामक इस्तेमाल को देखते हुए रणनीति तैयार करने की जरूरत है। भारत की सुरक्षा एजंसियां भी उसी के हिसाब से अपनी रणनीति बनाएं, जिससे भारत में दोबारा किसी सैन्य ठिकाने पर ऐसा कोई ड्रोन हमला न हो सके। ड्रोन से हमले का बड़ा उदाहरण सामने आया था, जब यमन में बैठे-बैठे उग्रवादियों ने सऊदी अरब का एक तेज संयंत्र उड़ा दिया।
14 सितंबर 2019 को सऊदी अरब स्थित दुनिया की सबसे बड़ी तेल कंपनी अरामको के दो संयंत्रों पर ड्रोन से हमला किया गया था। इसके बाद वहां भयंकर आग लग गई। दुनिया की सबसे बड़े तेल क्षेत्र पर हुए हमले का असर पूरी दुनिया में तेल की आपूर्ति पर पड़ा और कच्चे तेल का उत्पादन महज आधा रह गया। हमले की जिम्मेदारी यमन के हूती उग्रवादियों ने ली थी। ये यमन गृह युद्ध में सऊदी अरब के लगातार दखल से नाराज थे। संगठन ने बताया कि उसने यमन में बैठे-बैठे दस ड्रोन के जरिए सऊदी अरब पर हमला किया था। हालांकि सऊदी प्रशासन का दावा था कि उस पर ईरान की तरफ से भी ड्रोन के जरिए हमला किया गया था।
इसके अलावा अजरबैजान और आर्मीनिया के बीच युद्ध के दौरान भी ड्रोन का जमकर उपयोग किया गया। सितंबर 2020 में शुरू हुई जंग करीब 44 दिन चली और नवंबर में रूस की मध्यस्थता के साथ खत्म हुई। इन 44 दिनों के दौरान दोनों ही देशों ने ड्रोन, यूएवी और मिसाइलों के जरिए एक-दूसरे पर हमला किया। हाल के वर्षों यह पहली दफा था जब दो देशों के बीच उग्र युद्ध के दौरान ड्रोन अटैक जैसी तकनीक का भी खूब इस्तेमाल किया गया।
ड्रोन के जरिए हमले की रणनीति चुनौती हैं। इन पर लागत बेहद कम आती है। आतंकियों की प्रशिक्षण की लागत का 10 फीसद भी खर्च नहीं करना पड़ता। सीधे हमलों की तरह का खतरा भी नहीं होता। ड्रोन इसलिए भी बड़ी चुनौती हैं क्योंकि ये बेहद कम ऊंचाई पर उड़ सकते हैं और रेडार की पकड़ में भी नहीं आते।
सुरक्षा पर मंथन
रक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक, सऊदी और अजरबैजान-आर्मीनिया में ड्रोन हमलों के उदाहरण से भारत को सीख लेनी होगी और भविष्य में ड्रोन हमलों से निपटने के लिए प्रभावी इंतजाम करने होंगे। क्योंकि पिछले कुछ साल ने पाकिस्तानी की तरफ से भी ड्रोन का इस्तेमाल बढ़ा है। आतंकी हथियार आपूर्ति करने के लिए ड्रोन का इस्तेमाल पिछले कुछ समय से करते ही आ रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बीएसएफ और सुरक्षाबलों ने ऐसे कई ड्रोन को मार गिराया है। भारत को सीमा के पास मौजूद सैन्य ठिकानों की सुरक्षा-व्यवस्था का नए सिरे से खाका खींचना होगा। इसमें अत्याधुनिक रडार प्रणाली, ड्रोन रोधी सैन्य तकनीक, रेडियो जैमर जैसी तकनीक के इस्तेमाल के साथ ही सैन्य खुफिया ढांचे को और मजबूत करना होगा।