सुनील गोयल
खाद्य नुकसान को शून्य पर नहीं लाया जा सकता- विकसित राष्ट्र भी इसका अनुभव करते हैं। लेकिन इससे अभिन्न कुछ समस्याओं पर विचार करना जरूरी है। पिछले साल चौदह अक्तूबर को वैश्विक भुखमरी सूचकांक जारी किया गया। उसमें 121 देशों की सूची में भारत 107वें स्थान पर था। अब माना जा रहा है कि देश में भूख और कुपोषण का स्तर ‘गंभीर’ स्तर पर है। इस सूचकांक में भारत की स्थिति 2020 से ज्यादा खराब हुई है। गौरतलब है कि सूची में भारत 2020 में 94वें और 2021 में 101वें स्थान पर था। अनुमान के मुताबिक आज लगभग 16.3 फीसद भारतीय कुपोषित हैं। इसी क्रम में यह भी तथ्य है कि प्रत्येक तीन बच्चों में से लगभग एक का कद औसत से कम है। जिसका अर्थ है कि पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की ऊंचाई का अनुपात उम्र के हिसाब से कम है।
यह स्थिति भारत के दूध, दाल, केले का सबसे बड़ा उत्पादक होने और दुनिया में गेहूं, चावल और सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक होने के बावजूद है। भारत मछली और पोल्ट्री जैसे पशुधन उत्पादों के शीर्ष उत्पादकों में से एक है। लेकिन सच यह भी है कि यहां का चालीस फीसद भोजन कूड़ेदान में फेंक दिया जाता है और वहीं समाप्त हो जाता है। अगर सिर्फ खाने की बर्बादी को ही रोक लिया जाए तो इससे भारत की अधिकांश समस्याओं का समाधान हो सकता है।
प्राचीन भारतीय ज्ञान के अनुसार, भोजन को अमृत के रूप में माना जाता है और भोजन की बर्बादी को पाप माना जाता है। यह विचार आगे सिखाता है कि हमें हमेशा उससे थोड़ा कम खाना चाहिए, जितने से पेट भरता है। दूसरे शब्दों में हमें अपनी भूख से थोड़ा कम खाना चाहिए। अनुपात यह है कि अपने पेट को पचास फीसद ठोस भोजन से, पच्चीस फीसद तरल पदार्थ से भर कर और बाकी पच्चीस फीसद को खाली रखना चाहिए।
क्या हममें से ज्यादातर लोग यह जानते हैं कि दुनिया भर में खाने का एक तिहाई हिस्सा बर्बाद हो जाता है? यह तीन अरब लोगों को खिलाने के लिए काफी है! अगर भोजन की बर्बादी नामक एक देश होता, तो यह ग्रह पर तीसरा सबसे बड़ा ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जक होता! अगर हम सभी खाने योग्य भोजन को बर्बाद करना बंद कर दें, तो यह ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन की दृष्टि से चार में से एक कार को सड़क से हटाने के बराबर होगा। उपलब्ध आंकड़ों के अनुसार, भारत में औसत व्यक्ति प्रतिदिन एक सौ सैंतीस ग्राम भोजन बर्बाद करता है। यानी 0.96 किलोग्राम प्रति सप्ताह या पचास किलोग्राम प्रति वर्ष। भारत में 40 फीसद भोजन बर्बाद हो जाता है जो एक वर्ष में 92,000 करोड़ रुपए के बराबर है।
संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य वैश्विक भूख से निपटना और दुनिया भर में भूख मिटाने का प्रयास करना है। लेकिन सवाल उठता है कि भूख से निपटने के लिए क्या हम उत्सव से कुछ सीख रहे हैं कि खाना बर्बाद न करें? भोजन की बर्बादी तेजी से गंभीर रूप धारण कर रही है। खाद्य एवं कृषि संगठन (एफएओ) के मुताबिक, हर साल करीब 1.3 अरब टन खाना बर्बाद हो रहा है। एफएओ की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि कुल वैश्विक खाद्य उत्पादन का एक तिहाई बर्बाद हो जाता है, जिससे विश्व अर्थव्यवस्था को लगभग साढ़े सात सौ अरब डालर या सैंतालीस लाख करोड़ रुपए का नुकसान होता है।
संयुक्त राष्ट्र भुखमरी रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि दुनिया पूरी वैश्विक आबादी को खिलाने के लिए पर्याप्त भोजन का उत्पादन करती है, फिर भी लगभग 811 मिलियन लोग प्रतिदिन भूखे रहते हैं। इसमें जितनी भूमिका एक बड़ी आबादी का गरीबी, बेरोजगारी और अभाव से जूझना है, उसके मुकाबले इसका एक सबसे बड़ा कारण भोजन की बर्बादी है। खाद्य और कृषि संगठन की रिपोर्ट के अनुसार, लगभग 931 मिलियन टन भोजन हर साल बर्बाद हो जाता है, जो वैश्विक खाद्य उत्पादन का लगभग सत्रह फीसद है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट, 2021 के अनुसार इकसठ फीसद खाद्य अपशिष्ट घरों से, छब्बीस फीसद खाद्य सेवा से और तेरह फीसद खुदरा से आता है।
इसी रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि अमेरिका में प्रति घर उनसठ किलो और चीन में प्रति घर चौंसठ किलो भोजन बर्बाद होता है। घरेलू खाद्य अपशिष्ट का अनुमान अमेरिका में 19,359,951 टन प्रति वर्ष है, जबकि चीन में प्रति वर्ष 91,646,213 टन भोजन की बर्बादी होती है। यह प्रति वर्ष 68,760,163 मीट्रिक टन घरेलू खाद्य अपशिष्ट के बराबर है। नेशनल रिसोर्सेज डिफेंस काउंसिल (एनआरडीसी) की एक रिपोर्ट में भी यह कहा गया है कि अमेरिका में चालीस फीसद खाना बिना खाए चला जाता है, जबकि एशिया में भारत और चीन में हर साल 1.3 अरब टन खाने की बर्बादी होती है।
यह एक गंभीर विरोधाभास है। एक देश जो अपनी भूखी आबादी को खिलाने के लिए संघर्ष करता है, वहां भी बहुत सारा खाना बर्बाद कर दिया जाता है। यह विरोधाभास भारत को विचित्र स्थिति में डाल देता है। यानी यह पेट भरने के लिए अन्न अधिक उत्पादन करता है और साथ ही अधिक बर्बाद भी करता है। जबकि बहुत सारे लोग भूखे रहते हैं। एक आकलन के मुताबिक भारतीय उतना ही खाना बर्बाद करते हैं, जितना पूरा ब्रिटेन खाता है। दरअसल, भारत में खाने की बर्बादी एक खतरनाक मुद्दा है। हमारी सड़कों और कचरे के डिब्बे, लैंडफिल के पास इसे साबित करने के लिए पर्याप्त सबूत हैं। भोजन की बर्बादी केवल भुखमरी या प्रदूषण का ही संकेत नहीं है, बल्कि देश में कई आर्थिक समस्याओं, जैसे महंगाई का भी संकेत है।
भारत में जितनी बड़ी शादी, उतनी बड़ी पार्टी और उतना ही बड़ा कूड़ा-कचरा। शादी, रेस्तरां, होटल, सामाजिक और पारिवारिक समारोह भारत में खाद्य अपशिष्ट उगलते है। संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम की खाद्य अपशिष्ट सूचकांक रिपोर्ट 2021 के एक आंख खोलने वाले रहस्योद्घाटन में यह उजागर हुआ था कि भारतीय परिवार प्रति व्यक्ति प्रति वर्ष पचास किलोग्राम भोजन या 68,760,163 टन प्रति वर्ष बर्बाद करते हैं। भारत में, चालीस फीसद भोजन बर्बाद हो जाता है जो कि सालाना 92,000 करोड़ रुपए के बराबर है। सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक फीसद भोजन की बर्बादी के रूप में समाप्त हो जाता है। भारत में कृषि मंत्रालय के अनुसार, हर साल उत्पादित पचास हजार करोड़ रुपए का खाद्यान्न बर्बाद हो जाता है।
खाद्य हानि और बर्बादी हमारे खाद्य प्रणालियों की स्थिरता को कमजोर करती है। जब भोजन खो जाता है या बर्बाद हो जाता है, तो इस भोजन का उत्पादन करने के लिए उपयोग किए जाने वाले सभी संसाधन- पानी, भूमि, ऊर्जा, श्रम और पूंजी सहित बहुत कुछ बर्बाद हो जाते हैं। खाद्य अपव्यय का कार्बन पदचिह्न प्रति वर्ष वातावरण में जारी जीएचजी के बराबर कार्बन डाइआक्साइड के 3.3 बिलियन टन होने का अनुमान है।
सच यह है कि आज हम जिस खाद्यान्न की समस्या का सामना कर रहे हैं, उसके लिए केवल सरकारी नीतियां ही जिम्मेदार नहीं हैं, बल्कि हमारी संस्कृति और परंपराएं भी इस स्थिति में प्रमुख भूमिका निभा रही हैं। इसलिए भोजन की बर्बादी को रोकना एक अकेला कदम है जो हमारे देश और ग्रह को रहने के लिए एक बेहतर जगह बना सकता है। यह एक बहुत ही आसान आदत है, जिसके लिए हमारी मौजूदा आदतों में थोड़ा-सा बदलाव करने की आवश्यकता है कि हम अपने भोजन का उपभोग और भंडारण कैसे करते हैं।