Dilip Pandey Delhi Election 2025: दिल्ली में अगले महीने विधानसभा के चुनाव होने हैं और उससे पहले आम आदमी पार्टी के अंदर तमाम तरह की चर्चाएं उठ रही हैं। हाल ही में जब पार्टी के वरिष्ठ नेता दिलीप पांडे ने चुनाव लड़ने से इनकार किया तो बहुत सारे सवाल उठे। दिलीप पांडे पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक और पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बेहद भरोसेमंद लोगों में शुमार हैं। तमाम तरह के सवालों के बीच दिलीप पांडे ने इस तरह की खबरों को खारिज किया है कि वह कहीं जा रहे हैं और पार्टी से नाराज हैं।
दिलीप पांडे ने सोमवार को X पर कहा है कि उनके चुनाव न लड़ने के फैसले को लेकर तमाम तरह की बातें कही जा रही थीं इसलिए उन्होंने चुप्पी को तोड़ने का फैसला किया।
बताना होगा कि आम आदमी पार्टी ने सोमवार को दिल्ली विधानसभा चुनाव के लिए पार्टी के प्रत्याशियों की दूसरी लिस्ट जारी की है और इसमें तिमारपुर सीट से सुरेंद्र पाल सिंह बिट्टू को टिकट दिया गया है। दिलीप पांडे तिमारपुर सीट से ही पार्टी के विधायक हैं।

चुप्पी तोड़ने को मजबूर हुए पांडे
दिलीप पांडे ने अपनी पोस्ट में लिखा है कि जब देश में अन्ना आंदोलन शुरू हुआ था तो वह भारत से बहुत दूर थे। उन्होंने कहा है कि एक कैंपेन चल रहा है जिसमें यह कहा गया है कि वह आम आदमी पार्टी या अपने नेता अरविंद केजरीवाल से नाराज हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें इन बातों को पढ़कर हंसी आई और पहले ऐसा लगा कि इसे नजरअंदाज कर देना चाहिए लेकिन उनकी चुप्पी को लेकर कई तरह की बातें हो रही थी इसलिए उन्हें सामने आकर अपनी बात कहनी पड़ी है।
दिलीप पांडे ने कहा कि वह कहीं नहीं जा रहे हैं और उन्होंने पार्टी के लिए दरी बिछाने से लेकर तिहाड़ और फिर विधानसभा जाने तक का सफर तय किया है। पांडे ने कहा कि कोई भी साथी पार्टी ऑफिस में आकर उनसे मुलाकात कर सकता है।

केजरीवाल इस चुनाव को बेहद गंभीरता के साथ ले रहे हैं और पार्टी प्रत्याशियों के चयन में यह बात साफ दिखाई देती है। पिछले कुछ दिनों में पार्टी को चुनौतियों का भी सामना करना पड़ा है। उसके कई नेता पार्टी छोड़कर जा चुके हैं। ऐसे नेताओं में पूर्व मंत्री कैलाश गहलोत, विधायक ब्रह्म सिंह तंवर प्रमुख हैं। पूर्व मंत्री राज कुमार आनंद, पूर्व विधायक वीणा आनंद के साथ कुछ और नेता भी बीजेपी में शामिल हो गए थे।
आम आदमी पार्टी 2015 और 2020 के विधानसभा चुनाव में बड़े अंतर से जीत दर्ज कर चुकी है। 2013 के विधानसभा चुनाव में पार्टी ने कांग्रेस के साथ मिलकर सरकार बनाई थी लेकिन तब यह सरकार सिर्फ 49 दिन ही चल सकी थी और केजरीवाल के इस्तीफा देने की वजह से गिर गई थी।
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