कांग्रेस और भाजपा के उलट अब तक परिवारवाद की राजनीति से दूर चल रही आम आदमी पार्टी भी अब इसी रास्ते पर आ गई है। आप के राष्ट्रीय परिषद ने गुरुवार को बैठक में फैसला किया कि अब एक ही परिवार के एक से ज्यादा लोगों को पार्टी टिकट दिया जा सकता है। आप के वरिष्ठ नेता मनीष सिसोदिया ने कहा कि फिलहाल यह छूट मौजूदा समय में पार्टी में शामिल हुए लोगों के लिए ही होगी।
आप की राष्ट्रीय परिषद ने दिल्ली के अलावा बाकी राज्यों में चुनाव लड़ने के फैसले को भी मंजूरी दी। इसके बाद पार्टी उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, गोवा, पंजाब, हिमाचल प्रदेश और गुजरात में चुनाव लड़ेगी। इसके अलावा आप सदस्यों को पार्टी और उसके नेतृत्व से जुड़े मुद्दों के बारे में बाहर चर्चा करने से प्रतिबंधित किया गया है।
राष्ट्रीय परिषद की बैठक के बाद दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए कहा कि पार्टी के संविधान में बदलाव से इसे बढ़ने में मजबूती मिलेगी। पिछले 9 साल के अनुभव से हमें अहसास हुआ कि कुछ पुराने नियम हमारे लिए दिक्कतें पैदा कर रहे थे। खासकर उन राज्यों में जहां पार्टी पहले ही खुद को फैलाने की कोशिश में है। उदाहरण के तौर पर अब तक बूथ-स्तर की इकाइयों को प्राथमिक इकाई कहा जाता था, पर अब जिला-स्तर की इकाई को प्राथमिक इकाई कहा जाता है। ऐसे में सांसद और विधायक खुद-ब-खुद राष्ट्रीय परिषद और जिस राज्य से वे चुने गए हैं, उसके राज्य परिषद के सदस्य हो जाएंगे।
सिसोदिया ने आगे बताया- “आम आदमी पार्टी के सदस्यों के पास पार्टी का कोई भी मुद्दा, शीर्ष नेतृत्व का व्यवहार, आदि से जुड़ी बातें आंतरिक मंच पर उठाने की पूरी आजादी होगी। लेकिन वे अपने विचार मंच के बाहर नहीं रखेंगे।” केजरीवाल के आगे भी पार्टी के राष्ट्रीय संयोजक बने रहने के सवाल पर सिसोदिया ने कहा कि वे इस पद पर बने रहेंगे।
राष्ट्रीय परिषद की बैठक में दिल्ली सीएम ने भी अपनी बात रखी। उन्होंने कहा, “बाकी पार्टियां धर्म के मुद्दे पर वोट मांगती हैं। हिंदू पार्टियां हिंदूवाद के मुद्दे पर, मुस्लिमों से मुस्लिम पार्टियों को वोट करने के लिए कहा जाता है। इसी तरह ठाकुर और पंडितों को भी ठाकुर और पंडितों की पार्टी के लिए वोट देने को कहा जाता है। ये पार्टियां लोगों को आपस में लड़ाती हैं, जबकि हम अपने काम के बूते चुनाव लड़ते हैं। शिक्षा और स्कूलों के मुद्दे पर।”