अपनी पांच साल की सरकार के दरम्यान क्या योगी आदित्यनाथ उत्तर प्रदेश की जनता का भरोसा कायम रख पाने में कामयाब रहे? क्या अखिलेश यादव अपनी सरकार के काम की बदौलत मतदाता को समाजवादी पार्टी के पाले में खींच पाने में कामयाब रहे? क्या कांग्रेस की प्रदेश प्रभारी प्रियंका गांधी उत्तर प्रदेश में 33 सालों से अपना वजूद बचाने में जुटी कांग्रेस की प्रतिष्ठा में इजाफा कर पाने में कामयाब हो सकीं? क्या मायावती इस बार के चुनाव में अपना सियासी कद उत्तर प्रदेश में बढ़ा पाने में कामयाब हो पाईं? ऐसे कई सवाल हैं जिनका जवाब उत्तर प्रदेश में सात चरणों में हुए विधानसभा चुनाव दे चुके हैं। मतदाताओं का निर्णय ईवीएम में कैद है।

उत्तर प्रदेश में इस बार के विधानसभा चुनाव में 4441 उम्मीदवारों ने अपनी तकदीर आजमाई। इनमें खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव, सपा से बागी स्वामीप्रसाद मौर्य, उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य, जनसत्ता दल प्रमुख रघुराज प्रताप सिंह, मुख्तार अंसारी के पुत्र अफजाल अंसारी समेत सौ से अधिक सियासी दिग्गज चुनाव मैदान में थे।

इन सब की किस्मत दस मार्च तक ईवीएम में कैद है। लेकिन दिलचस्प बात यह है कि अब तक प्रदेश में हुए विधानसभा चुनावों में उतरे उम्मीदवारों में से तकरीबन 80 फीसद अपनी जमानत तक बचा पाने में कामयाब नहीं हो पाते हैं। इसका पुराना इतिहास है। बात 1993 की है। इस चुनाव में 9726 उम्मीदवार चुनाव मैदान में विधायक बनने का सब्जबाग पाले उतरे थे। लेकिन अफसोस, इनमें से 88.95 फीसद को अपनी जमानत तक बचाने के लाले पड़ गए थे।

2012 में 6839 उम्मीदवारों में से 5034 की जमानत जब्त हो गई थी। 2017 में भी 4853 उम्मीदवारों में से 3736 का हाल भी वैसा ही हुआ था। इस बार के विधानसभा चुनाव में 4441 उम्मीदवार चुनाव मैदान में थे। इनमें से कितनों की जमानत जब्त होती है? यह दिलचस्प होगा। फिलहाल उत्तर प्रदेश का विधानसभा चुनाव समाप्त हो चुका है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस चुनाव में 206 चुनावी रैलियां की हैं। कई जिले ऐसे हैं जहां योगी दो तीन बार चुनाव के दरम्यान गए। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य 90 रैलियां कर चुके हैं। जबकि खुद सिराथू से उन्हें कांटे का टक्कर का सामना करना पड़ा है।

वहीं समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव ने 125 से अधिक बड़ी चुनावी रैलियां की हैं। 25 जिलों में उनकी विजय यात्रा और रथ दौड़ा है। उनके साथ पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी भी वाराणसी में शामिल हुई। बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने 20 चुनावी सभाओं को सम्बोधित किया है। वहीं उनके सिपह सालार सतीश चन्द्र मिश्र ने 151 चुनावी सभाएं की हैं। वे ब्राह्मणों को साधने की कोशिशों में लगातार लगे नजर आए हैं। उधर उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को ताकत देने की कोशिश में प्रियंका गांधी ने भी कोई कसर नहीं छोड़ी है। उन्होंने 162 चुनावी सभाएं और 42 रोड शो किए हैं।

उत्तर प्रदेश के साढ़े पंद्रह करोड़ मतदाता इस बार किसे अपना अलम्बरदार चुनते हैं? इस बात का फैसला 10 मार्च को होगा। लेकिन सात मार्च को अंतिम चरण के मतदान के बाद जिस तरह चुनाव सर्वेक्षण सामने आए हैं उनमें भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनती दिख रही है। इन सर्वे को हालांकि खारिज करने का दौर जारी है। इस बार के विधानसभा चुनाव में सीधा मुकाबला भारतीय जनता पार्र्टी और समाजवादी पार्टी के बीच नजर आया है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि छोटे छत्रपों को साथ ले कर चले अखिलेश यादव जनता पर कितना असर छोड़ पाए? और पांच साल पूर्ण बहुमत की सरकार चलाने वाले योगी आदित्यनाथ को प्रदेश की जनता ने कितने नम्बर दिए?