1990 के दशक की शुरुआत में चार साल की उम्र में अपने परिवार से बिछड़ने वाले वीरेश जनार्दन आखिरकार 31 साल बाद कुरनूल जिले के अदोनी में अपने परिवार से मिल गए हैं। वीरेश ने समाचार एजेंसी पीटीआई से बातचीत में कहा, ‘मेरा नाम वीरेश जनार्दन है। मेरे पिता का नाम जनार्दन है और मेरी नानी का नाम अंजनम्मा है। इतना ही मुझे याद है और इसी वजह से मैं यहां पर आया हूं।’

वीरेश ने आगे कहा, ‘इन सभी जानकारियों से मैंने अपने घर को ढूंढना शुरू किया था। मुझे मेरा घर तो मिल गया। यह प्रोसिजर जब चालू हुआ जब मैं चार या पांच साल का था। मेरे को बचपन से ही घूमने की आदत है। जंगलों में या इधर उधर घूमता रहता था। मैं दो बार गुम गया था। एक बार तो पुलिस ने मुझे घर पर छोड़ दिया था। दूसरी बार में मैं अदोनी स्टेशन से मैं एक ट्रेन में बैठा। वो ट्रेन कब चालू हुई और किधर गई मुझे कुछ भी मालूम नहीं।’

मैं अपना घर ढूंढने के लिए निकला

वीरेश ने कहा, ‘जब वो ट्रेन चालू हुई तो मैं सीधे तमिलनाडु पहुंच गया। तमिलनाडु में वहां पर एक बोर्डिंग स्कूल है यानी अनाथालय। 1994 के आसपास का रिकॉर्ड है। उन लोगों ने मेरा नाम पूछा और मेरे पिता का नाम पूछा। मैंने उन्हें बताया था कि मैं अदोनी में रहता हूं लेकिन मेरे पिता मुझे बंबई लेकर जाते हैं और बंबई घूमते हैं। तमिलनाडु के बोर्डिंग ऑफिस को ऐसा लगा कि यह बंबई का रहेगा। उन लोगों ने मुझे बंबई के डोंगरी में ट्रांसफर किया। फिर मैं वहां से अदोनी प्लेटफॉर्म पर आया। यहां पर स्टे किया। रात को मैं अदोनी स्टेशन पर ही सोया और फिर सुबह को मैं घर ढूंढने के लिए निकला।’

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सब कलेक्टर ने क्या कहा?

वीरेश ने कहा, ‘किसी ने मुझे एक न्यूज चैनल पर जाने का सुझाव दिया। मैंने उनसे संपर्क किया, उन्होंने मेरा इंटरव्यू लिया और इसे YouTube और अपने चैनल पर अपलोड कर दिया। मैं पुलिस स्टेशन भी गया। उन्होंने मेरी कहानी सुनी और मेरी बहुत मदद की।’ सब-कलेक्टर मौर्य भारद्वाज ने कहा, ‘हमने डिटेल की पुष्टि की और वीरेश की यादों के आधार पर गहन जांच की। वह संतुष्ट था और उसने अपने परिवार की पहचान सफलतापूर्वक कर ली। थोड़े समय में ही हमने उसके परिवार का पता लगा लिया। करीब 30 साल बाद आखिरकार उसे अपनी जड़ें मिल गई हैं।’ 31 साल बाद लौटे राजू के खुल रहे रहस्य