मुंबई की लोकल ट्रेनों में नौ साल पहले हुए धमाकों के असली दोषियों को आखिरकार बुधवार को सजा सुना दी गई। हालांकि ईएनएस की ओर से जुटाई गई वर्गीकृत सामग्री से पता चलता है कि तीन राज्यों की पुलिस की ओर से की गई जांच बताती है कि 2006 में किए गए इन जबरदस्त धमाकों को इंडियन मुजाहिदीन के एक अलग गुट की ओर से अंजाम दिया गया था।
गुजरात पुलिस की ओर से 18 सितंबर, 2009 को हिरासत में की गई एक पूछताछ का वीडियो देखने से इस खतरनाक संगठन की साजिश का खुलासा होता है। इस वीडियो में आइएम के गुर्गे सादिक इसरार शेख ने बताया था कि उसने आतिफ अमीन (2008 में दिल्ली के बटला हाउस मुठभेड़ में मारा गया आतंकी), मोहम्मद ‘बड़ा’ साजिद (हाल में आइएस की ओर से लड़ता हुआ मारा गया), और फरार जेहादी शहनवाज हुसेन और अबू राशिद अहमद के साथ मिलकर धमाके के लिए लोकल ट्रेनों में बम रखे थे।
वीडियो में देखें कैसे 7/11 मुंबई ब्लास्ट आरोपी सादिक इसरार शेख ने कबूला था: ‘धमाके हमने किए’
बुधवार को जिन 12 लोगों को अदालत ने सजा सुनाई, उनके बचाव पक्ष को गुप्त दस्तावेज नहीं उपलब्ध कराए गए थे। महाराष्ट्र एटीएस ने 17 अन्य लोगों के नाम आरोपपत्र में रखे थे। इनमें से 13 पाकिस्तानी थे, जो अभी तक फरार हैं। हिरासत में पूछताछ के दौरान शेख ने कबूल किया था कि आमिर रजा (आइएम का पाकिस्तानी आका) ने पहले ही सूचित किया था कि वह रियाज भटकल के जरिए विस्फोटक का इंतजाम करा देगा। रियाज भटकल ने बंगलूर में विस्फोटक का बंदोबस्त कराया। आतिफ बंगलूर गया और वहां से 35-37 किलो विस्फोटक लेकर आया था।
शेख ने बताया कि उसे और सभी चारों साथियों को लोकल ट्रेन के प्रथम श्रेणी के टिकट मुहैया कराए गए थे। ‘ट्रेनों की पहचान के लिए हम सभी को टाइमटेबल दिए गए। इसके बाद हम बैग और कुकर लेकर आए। हम पांचों ने बम को कुकर के अंदर तैयार करके रखा था।’
शेख ने पुलिस जांच दल को बताया कि ठीक दोपहर दो बजे (11 जुलाई 2006) हम सभी अपार्टमेंट से बाहर निकले। प्रेशरकुकर में तैयार कर रखे गए बमों को बैग में रखा। हमें ये धमाके 4 बजे के आसपास करने थे, ताकि ज्यादा से ज्यादा भीड़ हो और अधिक लोग मारे जाएं।
इस वीडियो में शेख, जो 2008 में गिरफ्तार हुआ था, बताता है कि उसकी कई शहरों में धमाकों की योजना थी। उसने पाकिस्तान में मिले आतंकी प्रशिक्षण की बात भी कही। उसने स्वीकार किया कि बनारस और नई दिल्ली में किए गए धमाकों में भी उसका हाथ था। बाद में इस मामले में प्राप्त दस्तावेज से खुलासा होता है कि शेख ने आंध्र प्रदेश पुलिस के खुफिया प्रकोष्ठ से जुड़ी कई जानकारियां मुहैया कराईं। उसने बताया कि उसके गिरोह ने मुंबई के सेवरी क्षेत्र में एक अपार्टमेंट किराए पर ले रखा था। इसी जगह में उन्होंने विस्फोटक सामग्री जमाकर बम तैयार किए थे।
शेखकी ओर से दी गई जानकारी के बारे में राष्ट्रीय जांच एजंसी (एनआइए) का कहना है कि शेख की ओर से जो जानकारियां दी गईं, उनकी पुष्टि आइएम के एक और आतंकी-संचालक मोहम्मद यासीन सिद्दीबाबा ने भी की। उसने कर्नाटक से मुंबई तक विस्फोटक पहुंचाने में अहम भूमिका निभाई थी।
संयोगवश मुंबई पुलिस ने भी शेख से पूछताछ की थी। अक्तूबर 2008 में उसका कबूलनामा रिकार्ड किया गया। हालांकि बाद में उन्होंने कहा कि उसने विस्फोटों के गुनहगारों को दोषमुक्त कराने के लिए फर्जी कबूलनामा दिया। लेकिन इस बारे में कोई आधिकारिक बयान नहीं है कि किन्हें बचाने के लिए शेख खुद को कसूरवार क्यों ठहरा रहा था।
बाद में जब बचाव पक्ष ने शेख को गवाह के तौर पर बुलाया तो वह अपने जुर्म की स्वीकारोक्ति से मुकर गया। उसे प्रतिपक्षी गवाह के तौर पर देखा गया। इस मामले के 12 गुनहगारों के बचाव के लिए आए वकील युग मोहित चौधरी ने भी शेख से मुंबई पुलिस की पूछताछ पर सवाल उठाया। उनका कहना है कि पुलिस ने इस मामले में दो आरोपपत्र दायर किए ।
चौधरी का कहना है कि एटीएस प्रमुख रघुवंशी ने बताया था कि गुनगहार सिमी के12 लोग थे वहीं तब अपराध शाखा के प्रमुख रहे राकेश मारिया ने कहा कि इन धमाकों मे आइएम शामिल था। मारिया का कहना है कि उनके पास सादिक का रिकार्ड किया कबूलनामा है, जिसमें उसने स्वीकार किया कि उसने कुछ साथियों के साथ मिलकर ये धमाके किए थे।

