राजस्थान हाईकोर्ट ने एक मामले में डीटीओ दफ्तर के एक बाबू को बरी कर दिया। बाबू को 38 साल पहले ट्रायल कोर्ट ने तीन महीने की सजा सुनाई थी। मामला राजस्थान हाईकोर्ट पहुंचा तो सिंगल बेंच ने बाबू को राहत दे दी। हाईकोर्ट का ट्रायल कोर्ट को कहना था कि आपका फैसला गलत है।

सुल्तानाराम नामके शख्स ने अपनी शिकायत में कहा था कि सीकर के डीटीओ दफ्तर के क्लर्क हरिनारायण के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी। सुल्तानाराम का कहना था कि उसके ट्रैक्टर के रजिस्ट्रेशन में तब्दीली कराई जानी थी। क्लर्क ने उससे 50-50 रुपये की रिश्वत तीन लोगों के लिए मांगी थी। इनमें हरिनारायण का हिस्सा तो था ही। जिन अन्य लोगों के लिए पैसों की मांग की गई उनमें अशोक जैन और मूलचंद (डीटीओ) शामिल थे।

हरिनारायण के पास से बरामद हुए थे 150 रुपये

शिकायत मिलने के बाद संबंधित एजेंसी ने ट्रैप डाला और 150 रुपये की रकम के साथ हरिनारायण को अरेस्ट कर लिया। विवेचना के बाद चार्जशीट दाखिल की गई। ट्रायल कोर्ट ने 1985 में हरिनारायण को तीन महीने की कैद और 500 रुपये जुर्माने की सजा सुनाई। ट्रायल कोर्ट ने हरिनारायण को आईपीसी की धारा 161 के साथ प्रिवेंशन ऑफ करप्शन एक्ट की धारा 5(1)(d), 5(2) का दोषी माना। लेकिन हरिनारायण को फैसला रास नहीं आया और उसने हाईकोर्ट में रिट दायर की। 38 साल बाद आए फैसले में हाईकोर्ट से हरिनारायण को राहत मिल ही गई।

हाईकोर्ट ने माना, गलत था ट्राय़ल कोर्ट का फैसला

राजस्थान हाईकोर्ट के जज नरेंद्र सिंह ने सारे मामले पर गौर करने के बाद माना कि ट्रायल कोर्ट का फैसला सरासर गलत था। जांच एजेंसी ने अपनी विवेचना भी सही तरीके से नहीं की। केवल रिश्वत की रकम हरिनारायण के पास मिलना उसे दोषी ठहराने के लिए पर्याप्त नहीं था। ट्रायल कोर्ट के साथ जांच एजेंंसी ने भी इस तथ्य पर गौर नहीं किया कि रिश्वत की रकम तीन लोगों के लिए मांगी गई थी। बाकी दो को क्यों छोड़ दिया गया। हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट को सारे तथ्यों पर गौर करने के बाद ही फैसला देना चाहिए था। लेकिन इन सभी पहलुओं को नजरंदाज किया गया।