देश में पिछले पांच साल में इंटरनेटबंदी के मामलों में 15 गुना बढ़ोतरी देखने को मिली है। साल 2014 से अब तक 357 बार इंटरनेट सेवा को बंद किया जा चुका है। हाल ही में नागरिकता संशोधन कानून और जम्मू कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त करने के बाद भी सरकार की तरफ से मोबाइल और इंटरनेट सेवा को अस्थायी रूप से बंद किया जा चुका है।

सरकार की तरफ से हिंसा की घटनाओं पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से मोबाइल व इंटरनेट सेवाओं पर रोक लगाई जाती है। इंडिया टुडे की खबर के अनुसार साल 2014 से इंटरनेट बंद किए जाने के 357 मामले सामने आ चुके हैं। खबर के अनुसार साल 2014 में 6 बार इंटरनेट शटडाउन किया गया था।

वहीं साल 2015 में इंटरनेट बंद किए जाने की घटना बढ़कर 14 बार हो गई। 2016 में इंटरनेट बंद करने की घटनाओं में दोगुना से अधिक बढ़ोतरी देखने को मिली। 2016 में जहां 31 बार इंटरनेट बंद किया गया वहीं 2017 में यह संख्या बढ़कर 79 हो गई। साल 2018 में इंटरनेट 134 मौकों पर इंटरनेट सेवा को अस्थायी रूप से स्थगित किया गया।

इस साल 15 दिसंबर तक 93 मौकों पर इंटरनेट सेवा को अस्थायी रूप से बंद किया जा चुका है। इससे 167 क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। आंकड़ों के अनुसार दुनियाभर में इंटरनेटबंदी की घटनाओं में 67 फीसदी भारत में सामने आई हैं। इतना ही नहीं भारत में सबसे अधिक इंटरनेट बंद करने के मौके जम्मू-कश्मीर में सामने आए हैं। इस साल इंटरनेट बंद करने की घोषणा से सबसे अधिक 93 क्षेत्र प्रभावित हुए हैं।

जम्मू-कश्मीर के बाद राजस्थान ऐसा स्थान है जहां इंटरनेट सेवा स्थगित किए जाने से सबसे अधिक 18 क्षेत्र प्रभावित हुए। यूनेस्को की रिपोर्ट के अनुसार साल 2017-18 में भारत में दुनियाभर में सबसे अधिक इंटरनेट सेवा स्थगित किए जाने की घटनाएं सामने आई थीं।

रिपोर्ट के अनुसार दक्षिण एशियाई देशों में मई 2017 से अप्रैल 2018 के बीच 97 बार इंटरनेट सेवा बंद की गई। इनमें से भारत में सबसे अधिक 82 इंटरनेटबंदी की घटनाएं सामने आईं। रिपोर्ट के अनुसार उस साल पाकिस्तान में 12 बार इंटरनेट शटडाउन किया गया जबकि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और श्रीलंका में एक-एक बार ही इंटरनेट बंद किए जाने की घटना हुई।