बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिराए जाने के 27 साल पूरे होने के मौके पर देश के 46 रिटायर्ड नौकरशाहों ने देशवासियों के नाम अपने बयान के रूप में संदेश जारी किया है। अयोध्या में राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद में सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने के बाद शुक्रवार को पहली बरसी है।
यह पहली बार नहीं है कि अयोध्या में भूमि विवाद के मुद्दे पर नौकरशाह एकजुट हुए हों। सबसे पहले साल 2017 में नौकरशाहों ने एकजुट होकर इस मुद्दे पर संवैधानिक व्यवहार का हवाला देते हुए अपनी राय रखी थी। टेलीग्राफ की खबर के अनुसार नौकरशाहों ने अपने बयान वाले पत्र में लिखा है बाबरी और संविधान पर हमला करने वालों को सजा के बजाय ऊंचे ओहदे मिले।
अपने संदेश में नौकरशाहों ने कहा कि हम भारतीय संविधान के मूल्यों और भरोसे को लेकर प्रतिबद्ध हैं। हम आपसे अपने बहुत दुख और गंभीर चितां को साझा करना चाहते हैं कि 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद का विवादित ढांचा गिराए जाने के 27 साल बाद, आज देश कहां खड़ा है।
हम 6 दिसंबर को बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस के रूप में भी याद करते हैं जिन्होंने दुनिया के बेहतरीन संविधान का निर्माण किया। अयोध्या में उस जमीन का विवाद था जहां मध्यकालीन मस्जिद थी। यह संविधान के उच्च मूल्यों की लड़ाई थी।
नौकरशाहों ने आगे लिखा कि मस्जिद को ध्वस्त किए जाने के 27 साल बाद भी हम बहुत पीड़ा महसूस करते हैं। इसकी वजह है कि जो लोग इस अपराध के लिए जिम्मेदार थे, जिन्होंने भारत को दो फाड़ कर दिया, उन्हें अभी भी सजा नहीं दी गई। इसके बजाय, जिन लोगों ने इस हमले में नेतृत्व किया और इसमें शामिल हुए उन्हें शीर्ष पदों पर आसीन किया गया।
हमें यह भी चिंता है कि भारत के सुप्रीम कोर्ट के हाल के फैसले ने इस गंभीर अपराध को पुरस्कृत किया है। यह फैसला एक झूठी और भ्रामक धारणा भी बनाता है कि बहुमत समुदाय के लिए बोलने का दावा करने वालों के पक्ष में निर्णय लेने से शांति और मेल मिलाप हो सकता है और अन्याय के बावजूद सभी को आगे बढ़ना चाहिए।