दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों में सजा का यह पहला मामला नहीं है। करीब नौ साल पहले 1984 दंगों के एक अन्य मामले में भी अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एसएस राठी ने मंगल सेन उर्फ बिल्ला, बृज मोहन वर्मा तथा भगत सिंह को उम्र कैद की सजा सुनाई थी। लेकिन यह फैसला कई मामले में ‘अनूठा और अपने तरह का पहला’ माना जा सकता है। मसलन सिख विरोधी दंगों में पहली बार विशेष जांच दल (एसआइटी) के बाद किसी दोषी को फांसी की सजा मुकर्रर हुई है। इसके अलावा एनडीए सरकार बनने के बाद गृह मंत्रालय के अधीन बनाए गए एसआइटी के अभियोजन में चला यह पहला मामला है जिसमें कसूरवारों को इतनी कड़ी सजा मिली है। इतना ही नहीं यह मामला इसलिए भी अनूठा है कि जिस मामले में आठ साल जांच के बाद भी दिल्ली पुलिस को कोई पुख्ता सबूत नहीं मिल सका था। उसी वारदात में एसआइटी ने न केवल सबूत जुटाए बल्कि मामले को ‘दुर्लभ’ साबित करने में सफलता पाई। कसूरवारों में से एक को पूरी उम्र सलाखों के पीछे रहने और एक को फांसी की सजा मुकरर्र हो सकी। यह मामला इस मामले में भी अनूठा रहेगा जिसमें दोषी और सिख समुदाय दोनों हाई कोर्ट में अपील करेंगे।
बहरहाल, पार्टी विचारधारा से अलग हटकर सिख नेताओं ने 1984 के सिख विरोधी दंगे मामले में एक दोषी को मृत्युदंड सुनाए जाने के अदालती आदेश का मंगलवार को स्वागत किया और हर पीड़ित को न्याय मिलने तक अपनी लड़ाई जारी रखने की प्रतिबद्धता जताई। अकाली दल नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने कहा कि वह सहरावत को सुनाई गई उम्र कैद की सजा को चुनौती देंगे और यह सुनिश्चित करेंगे कि उसे भी फांसी की सजा मिले। सिरसा ने जहां यशपाल सिंह की सजा पर संतोष जताया लेकिन दूसरे दोषी को सुनाए गए उम्र कैद की सजा को नाकाफी बताते हुए अपील दायर करने की बात कही। दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधक समिति के प्रमुख मंजीत सिंह जीके ने कहा कि निर्णय अन्य पीड़ितों को सामने लाने के लिए प्रोत्साहित होंगे। यह फैसला नजीर है। यह दूसरे पीड़ित परिवारों को भी डटे रहने का साहस देगा।
मंगलवार को अदालत में भारी गहमा-गहमी रही। फैसला सुनाए जाने से पहले अदालत के बाहर बड़ी संख्या में मौजूद सिखों ने प्रदर्शन किया। हर हालत से निपटने के लिए पटियाला हाउस परिसर में भारी सुरक्षा बल तैनात थे। हंगामे के आसार को देखते हुए पीड़ित और आरोपियों के परिवार के 2-2 सदस्यों के आलावा किसी को भी अदालत परिसर में प्रवेश नहीं करने दिया गया।

