गरीब की थाली से गायब होते पोषक तत्त्व अपने आप में एक बड़ी समस्या है। वहीं जब बात बच्चों की हो तो यह किसी संकट से कम नहीं। आपको जानकर हैरानी होगी की आज पांच वर्ष या उससे कम आयु का हर चौथे बच्चे को पोषक भोजन नहीं मिल पा रहा है। मतलब की दुनिया में पांच वर्ष से कम आयु के 18.1 करोड़ बच्चे इस समस्या से जूझ रहे हैं। देखा जाए तो यह वो बच्चे हैं, जिनके पास पर्याप्त पोषण युक्त आहार उपलब्ध नहीं या फिर उनके आहार में पर्याप्त विविधता की भी कमी है। इनमें 65 फीसद बच्चे हैं जो केवल 20 देशों में रह रहे हैं। हैरानी की बात है कि इन देशों में भारत भी शामिल है। भारत की बात करें तो स्थिति कहीं ज्यादा नाजुक है, जहां 76 फीसद बच्चे इस समस्या से जूझ रहे हैं।
भारत में 40 फीसद बच्चे जीवन के शुरुआत में ही इससे जूझते हैं
गौरतलब है कि भारत में जहां 40 फीसद बच्चे अपने जीवन के शुरुआती वर्षों में गंभीर खाद्य निर्धनता से जूझ रहे हैं, वहीं 36 फीसद बच्चे ऐसे हैं जो इस खाद्य निर्धनता के मध्यम स्तर का सामना करने को मजबूर हैं। देखा जाए तो गंभीर खाद्य निर्धनता का सामना करने वाले इन बच्चों के जानलेवा कुपोषण से पीड़ित होने की आशंका 50 फीसद तक अधिक होती है।
यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) द्वारा जारी नई रपट ‘चाइल्ड फूड पावर्टी: न्यूट्रिशन डेप्रिवेशन इन अर्ली चाइल्डहुड’ में सामने आई है। यह रपट दुनिया के करीब 100 देशों में रहने वाले बच्चों में पोषक आहार की कमी, उसके प्रभावों और कारणों को उजागर करती है। यूनिसेफ के मुताबिक जब बच्चों को अपने जीवन के शुरुआती वर्षों में स्वस्थ, पोषण और विविधता से भरपूर पर्याप्त आहार नहीं मिल पाता, तो उस स्थिति को खाद्य निर्धनता के रूप में जाना जाता है।
इसमें कोई शक नहीं की जीवन के शुरुआती वर्षों में बच्चों के पर्याप्त मानसिक और शारीरिक विकास के लिए सेहतमंद पौष्टिक आहार बेहद जरूरी होता है, मगर मौजूदा समय में दुनिया के कई हिस्सों में बढ़ती महंगाई के चलते खाद्य पदार्थों की कीमतों में रेकार्ड उछाल आया है। इतना ही नहीं जीवन यापन की बढ़ती लागत आम आदमी की जेब पर भारी पड़ रही है। नतीजन दुनिया में लाखों माता-पिता अपने बच्चों को पौष्टिक आहार देने के लिए संघर्ष कर रहे हैं।
वहीं, कई देश ऐसे भी हैं जो अब भी महामारी के असर से पूरी तरह नहीं उबरे हैं। ऊपर से बढ़ते टकराव, जलवायु परिवर्तन और विषम परिस्थितियों के चलते स्थिति बद से बदतर होती जा रही है। कई देशों में पोषण तो दूर की बात बच्चों को भरपेट भोजन भी नहीं मिल रहा। इसकी वजह से न केवल यह बच्चे बल्कि उनके परिवार भी गरीबी और अभावों के भंवर जाल में फंस जाते हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक, खाद्य निर्धनता के कुल मामलों में से करीब आधे ऐसे परिवारों में दर्ज किए गए हैं जो पहले ही गरीबी से जूझ रहे हैं।
बाजारों में स्वास्थ्य के लिहाज से हानिकारक खाद्य पदार्थों का बढ़ता बोलबाला भी इसके पीछे की एक वजह है। ऊपर से खाद्य कंपनियों जिस तरह से स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाने वाले खाद्य पदार्थों की मार्केटिंग कर रही हैं वो भी बच्चों को खाद्य निर्धनता के दलदल में धकेल रहा है। देखा जाए तो बढ़ते बाजारीकरण ने सबके हाथों में फास्ट-फूड तो दिया लेकिन पोषण छीन लिया।