केंद्र सरकार ग्रामीण रोजगार प्रणाली में आमूलचूल बदलाव करने जा रही है। सरकार विकसित भारत—रोजगार और आजीविका मिशन (ग्रामीण) वीबी-जी राम जी विधेयक, 2025 पेश करने जा रही है। नए विधेयक में ग्रामीण परिवारों के लिए प्रति वर्ष काम करने की संख्या 100 से बढ़ाकर 125 करने का प्रस्ताव है। यह बिल महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम 2005 की जगह लेगा। इससे राज्यों के खजाने पर वित्तीय बोझ बढ़ने की संभावना है। आइए अब जानते हैं कि वीबी जी राम जी विधेयक द्वारा ग्रामीण रोजगार गारंटी ढांचे में लाए गए 5 प्रमुख बदलाव क्या-क्या हैं।

125 दिन की रोजगार गारंटी

वीबी-जी राम जी विधेयक में हर एक ग्रामीण परिवार को एक वित्तीय वर्ष में 125 दिनों के रोजगार की गारंटी देने का प्रस्ताव है। यह मौजूदा मनरेगा से ज्यादा है। वर्तमान में मनरेगा के तहत यह सीमा 100 दिन है। हालांकि, विशेष मामलों में 50 दिनों का अतिरिक्त काम दिया जाता है। उदाहरण के लिए, वन क्षेत्र में रहने वाले प्रत्येक अनुसूचित जनजाति परिवार को एनआरईजीएस के तहत 150 दिनों का काम पाने का अधिकार है, बशर्ते कि ऐसे परिवारों के पास वन अधिकार अधिनियम, 2016 के तहत प्रदत्त भूमि अधिकारों के अलावा कोई अन्य निजी संपत्ति न हो। इसके अलावा, सरकार मनरेगा की धारा 3(4) के तहत, ऐसे ग्रामीण क्षेत्रों में जहां सूखा या कोई प्राकृतिक आपदा अधिसूचित की गई है, वहां 100 दिनों के अलावा एक साल में 50 दिनों का अतिरिक्त अकुशल मैनुअल काम भी दे सकती है।

केंद्र और राज्यों के बीच व्यय का बंटवारा

वीबी-जी राम जी विधेयक में किए गए प्रमुख बदलावों में से एक नई योजना के वित्तपोषण से संबंधित है। मनरेगा के विपरीत, जहां केंद्र सरकार पूरी मजदूरी राशि का भुगतान करने के लिए जिम्मेदार है, वीबी-जी राम जी योजना के तहत राज्यों को मजदूरी भुगतान का भार साझा करना होगा। पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्यों व कुछ केंद्र शासित प्रदेशों के मामले में केंद्र और राज्य के व्यय का अनुपात 90:10 होगा। अन्य राज्यों के मामले में यह अनुपात 60:40 होगा, लेकिन जिन केंद्र शासित प्रदेशों में विधानसभा नहीं है, वहां केंद्र सरकार पूरा व्यय वहन करेगी।

श्रम बजट की जगह पर मानक आवंटन

वीबी-जी राम जी विधेयक की धारा 4 (5) के अनुसार, “केंद्र सरकार हर वित्तीय वर्ष के लिए राज्यवार मानक आवंटन का निर्धारण करेगी।” विधेयक की धारा 4(6) में कहा गया है, “किसी राज्य द्वारा अपने निर्धारित आवंटन से ज्यादा किया गया कोई भी व्यय राज्य सरकार द्वारा ऐसे तरीके से और ऐसी प्रक्रिया से वहन किया जाएगा जैसा कि केंद्र सरकार द्वारा निर्धारित किया जा सकता है।” विधेयक में मानक आवंटन को केंद्र सरकार द्वारा राज्य को आवंटित निधि के रूप में परिभाषित किया गया है। यह मानक आवंटन मनरेगा के तहत श्रम बजट में मौजूदा प्रावधान से अलग है।

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मनरेगा के अनुसार, प्रत्येक वित्तीय वर्ष की शुरुआत से पहले, 31 जनवरी को या उससे पहले, सभी राज्यों को अपना एनुअल वर्क प्लान और श्रम बजट केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय को पेश करना होता है।

व्यस्त कृषि मौसम के दौरान काम बंद करने के प्रावधान

पहली बार, नए विधेयक में व्यस्त कृषि मौसम के दौरान काम बंद करने का प्रस्ताव है। ग्रामीण रोजगार योजनाओं के तहत काम साल में अधिकतम 60 दिनों के लिए बंद रहेगा, जिसमें बुवाई और कटाई के दौरान और राज्य सरकार द्वारा निर्धारित समय शामिल है। वीबी-जी राम जी-बिल की धारा 6(1) में कहा गया है कि राज्य सरकार कृषि-जलवायु क्षेत्रों, कृषि गतिविधियों के स्थानीय स्वरूपों या अन्य प्रासंगिक कारकों के आधार पर राज्य के अलग-अलग क्षेत्रों के लिए अलग-अलग अधिसूचनाएं जारी कर सकती है। हालांकि, आशंका जताई जा रही है कि इससे काम मिलने की प्रभावी अवधि 125 दिनों से कम हो सकती है।

साप्ताहिक वेतन, लेकिन देरी के लिए मुआवजा नहीं

वीबी-जी राम जी-बिल में श्रमिकों को हर हफ्ते मजदूरी के भुगतान का प्रावधान है, जबकि मनरेगा में इसकी सीमा 15 दिन है। इसमें कहा गया है, “दैनिक मजदूरी का भुगतान साप्ताहिक आधार पर या किसी भी स्थिति में ऐसे कार्य किए जाने की तारीख के दो हफ्ते से ज्यादा समय बाद नहीं किया जाएगा।” नई योजना (VB-G Ram G) के तहत, मजदूरी वही होगी जो MGNREGA की धारा 6 के तहत अधिसूचित है। VB-G Ram G विधेयक में मजदूरी के भुगतान में देरी होने पर मुआवजे के भुगतान का प्रावधान बरकरार रखा गया है।

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