आर्थिक रूप से पिछड़ों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला बेहद गोपनीयता से लिया गया। सरकार ऐसा कोई कदम उठाने जा रही है, इसकी भनक कई कैबिनेट मंत्रियों को भी नहीं थी। सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय ने सिर्फ एक दिन पहले ही संविधान संशोधन विधेयक के जरिए आरक्षण देने का प्रस्ताव तैयार किया। यह सारी कवायद सोमवार (7 जनवरी) को हुई। द इकॉनमिक टाइम्स ने उच्च-पदस्थ सूत्रों के हवाले से अखबार में लिखा है कि कैबिनेट नोट को मंत्रियों के साथ भी साझा नहीं किया गया। अखबार एक वरिष्ठ मंत्री के हवाले से लिखता है, “सरकार संविधान संशोधन विधेयक लाने का नहीं सोच रही थी। यह फैसला उच्चतम स्तर पर हुआ और मंत्रालय से प्रस्ताव तैयार करने को कहा गया।”
मंत्रालय ने पहले से ही परिभाषित “आर्थिक रूप से पिछड़े वर्ग” का सहारा लिया। कैबिनेट के सामने भले ही प्रस्ताव सोमवार को गया हो, संविधान संशोधन पर विधि मंत्रालय मंगलवार (8 जनवरी) सुबह तक काम करता रहा। एनडीटीवी के अनुसार, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आधिकारिक आवास पर विशेष बैठक से तीन दिन पहले कैबिनेट नोट तैयार किया गया।
अपने इस कदम से मोदी सरकार ने भाजपा के कोर वोटबैंक को खुश करने का प्रयास तो किया ही, कांग्रेस-नीत यूपीए से उसका प्रस्ताव भी छीन लिया। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (EWS) को आरक्षण देने के प्रस्ताव पर पहली बार यूपीए-1 के समय में चर्चा हुई थी। 2006 में केंद्र ने मेजर जनरल एसआर सिन्हो की अगुवाई में EWS श्रेणियों का पता लगाने को एक समिति का गठन किया था। समिति ने अपनी रिपोर्ट 2010 में सौंपी, जब यूपीए-2 सत्ता में था।
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एनडीटीवी ने सूत्रों के हवाले से लिखा है कि सिन्हो समिति के प्रस्ताव पर 2013 में भी चर्चा हुई थी। मोदी सरकार ने इस कदम के बारे में पिछले साल जुलाई में सोचा था, मगर तब इस वजह से कोई ठोस प्रगति नहीं हुई क्योंकि सरकार को विश्वास था कि राष्ट्रीय पिछड़ा आयोग को संवैधानिक दर्जा देने के चुनावी फायदे मिलेंगे।
शिक्षा और सरकारी नौकरियों में सामान्य वर्ग के आर्थिक रूप से पिछड़ों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने संबंधी विधेयक मंगलवार को लोकसभा से पारित हो गया। 124वें संविधान संशोधन विधेयक के पक्ष में 323 मत पड़े, जबकि विरोध में सिर्फ तीन मत डाले गए। विधेयक पर लोकसभा में लगभग 5 घंटे बहस चली। अब यह विधेयक राज्यसभा में पेश किया जाएगा।

