World Nature Conservation Day 2019: विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस प्रत्येक वर्ष 28 जुलाई को मनाया जाता है। वर्तमान परिपेक्ष्य में कई प्रजाति के जीव-जंतु और वनस्पति विलुप्त हो रहे हैं। विलुप्त होते जीव-जंतु और वनस्पति की रक्षा का विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर संकल्प लेना ही इसका उद्देश्य है। प्रकृति संरक्षण का समस्त प्राणियों के जीवन तथा इस धरती के समस्त प्राकृतिक परिवेश से घनिष्ठ सम्बन्ध है। प्रदूषण के कारण सारी पृथ्वी दूषित हो रही है और निकट भविष्य में मानव सभ्यता का अंत दिखाई दे रहा है। इस स्थिति को ध्यान में रखकर सन 1992 में ब्राजील में विश्व के 174 देशों का ‘पृथ्वी सम्मेलन’ आयोजित किया गया था।
इसके बाद सन 2002 में जोहान्सबर्ग में पृथ्वी सम्मेलन आयोजित कर विश्व के सभी देशों को पर्यावरण संरक्षण पर ध्यान देने के लिए अनेक उपाय सुझाए गये। वस्तुतः प्रकृति के संरक्षण से ही धरती पर जीवन का संरक्षण हो सकता है, अन्यथा मंगल ग्रह आदि ग्रहों की तरह धरती का जीवन-चक्र भी एक दिन समाप्त हो जाएगा। आइए, विश्व प्रकृति संरक्षण दिवस पर हम प्रकृति को संरक्षित करने की शपथ लें।
IUCN ने जारी की थी रेड लिस्ट: अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (International Union for Conservation of Nature), प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण के लिए समर्पित एक अंतर्राष्ट्रीय संगठन है। संगठन का घोषित लक्ष्य, विश्व की सबसे विकट पर्यावरण और विकास संबंधी चुनौतियों के लिए व्यावहारिक समाधान खोजने में सहायता करना है। संघ विश्व के विभिन्न संरक्षण संगठनों के नेटवर्क से प्राप्त जानकारी के आधार पर “लाल सूची” प्रकाशित करता है, जो विश्व में सबसे अधिक संकटग्रस्त प्रजातियों को दर्शाती है। IUCN की सूची में 1,05,732 प्रजातियों का आंकलन किया गया है, जिसमें से 28,338 प्रजातियों पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है। कुल मूल्यांकन में से 873 पहले से ही विलुप्त हैं।
यह सूची दर्शाती है कि ताजे पानी और समुद्री पानी में रहने वाले कई जीवों की संख्या में कमी की दर काफी अधिक है। जापान की स्थानीय ताजे पानी की 50 प्रतिशत से अधिक मछलियां खत्म होने के कगार पर हैं। स्थानीय नदियों की संख्या में हो रही कमी और लगातार बढ़ रहे वायु प्रदूषण को इस प्रकार की कमी का मुख्य कारण माना जा रहा है। IUCN द्वारा मूल्यांकित 50 प्रतिशत प्रजातियों को ‘कम चिंताजनक’ प्रजातियों की श्रेणी में रखा गया है। जिसका अर्थ यह हुआ कि बाकी बची 50 प्रतिशत प्रजातियां खतरे के अलग-अलग स्तर पर हैं और उनके विषय में चिंता किया जाना आवश्यक है। सूची से यह स्पष्ट होता है कि मानवजाति वन्यजीवों का आवश्यकता से अधिक शोषण कर रही है।