कैंसर एक ऐसी घातक बीमारी है जिसका शुरूआती स्टेज में ही पता चल जाए तो उपचार किया जा सकता है। कैंसर में शरीर की कोशिकाएं अनियंत्रित रूप से बढ़ती हैं। फेफड़ों का कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसका सबसे बड़ा कारण धूम्रपान करना,धुएं के संपर्क में आना, नशीले पदार्थों जैसे गुटखा का सेवन करना है। लंग्स कैंसर एक ऐसी बीमारी है जिसमें 90 फीसदी मरीजों को इस बीमारी का तब पता चलता है जब ये बीमारी बहुत ज्यादा बढ़ चुकी होती है।

फेफड़ों के कैंसर के लक्षणों की बात करें तो लम्बे समय तक खांसी आना,खांसी में खून आना,आवाज में बदलाव होना,सांस लेने में दिक्कत होना,छाती में दर्द होना,वजन का कम होना,कमर में या सिर में दर्द होना और बहुत ज्यादा कमजोरी होना शामिल है। धर्मशीला नारायणा हॉस्पिटल में कंसल्टेंट राजित चनाना है ने बताया कि लंग्स कैंसर के इन लक्षणों को समय रहते पहचान लिया जाए तो स्थिति को गंभीर होने से बचाया जा सकता है। आइए एक्सपर्ट से जानते हैं कि इस कैंसर की कितनी स्टेज है और इसका पता लगाने के लिए कौन-कौन सी जांच कराएं।

फेफड़ों के कैंसर का प्रकार

फेफड़ों का कैंसर दो तरह का होता है, एक नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर और दूसरा स्मॉल सेल्स लंग्स कैंसर। नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर कई प्रकार के फेफड़ों के कैंसर के लिए एक शब्द है। नॉन-स्मॉल सेल लंग कैंसर में स्क्वैमस सेल कार्सिनोमा, एडेनोकार्सिनोमा और बड़े सेल कार्सिनोमा जैसी गंभीर स्थिति शामिल हैं।

फेफड़ों के कैंसर की जांच कौन-कौन सी हैं

  • शुरूआत में X RAY से की जाएगी फेफड़ों की जांच।
  • X RAY देखने के बाद सीटी स्कैन या फिर पेट स्कैन से की जाएगी जांच। अमेरिकन कैंसर सोसाइटी के मुताबिक फेफड़ों का कैंसर होने पर उच्च जोखिम वाले लोगों में सीटी स्कैन (LDCT) किया गया है। LDCT स्कैन फेफड़ों में असामान्य जगहों पर जहां कैंसर होता है उसे खोजने में मदद कर सकता है।
  • कैंसर के लक्षण दिखने पर उसे कंफर्म करने पर बयोप्सी की जाती है। बयोप्सी करने के तीन तरीके होते हैं। CT OR ULTRA SOUND कराने की सलाह दी जाती है जिसमें सुई को छाती के कैंसर की गांठ में डालते हैं फिर कैंसर की जांच करते हैं।
  • ब्रोंकोस्कोपी से की जाती है फेफड़ों के कैंसर की जांच। इस टेस्ट को करने के लिए दूरबीन के जरिए सांस की नली में एक पाइप डाला जाता है और कैंसर की गांठ का पता लगाया जाता है।
  • मिडियास्टीनोस्कोपी लंग्स कैंसर का पता लगाने का तीसरा तरीका है जिसमें गर्दन में छेद करके एक दूरबीन डाली जाती है और कैंसर का टुकड़ा जांच करने के लिए लिया जाता है।
  • जांच की रिपोर्ट आने के बाद भी डॉक्टर IHC OR MOLECULAR TEST टेस्ट करने को कह सकता है।
  • इन सब टेस्ट को कराने के बाद इस कैंसर की स्टेज का पता चल जाता है।

फेफड़ों के कैंसर की कौन सी स्टेज है खतरनाक

स्टेज-1 में बीमारी छोटी होती है और एक ही फेफड़े में रुकी होती है।

स्टेज-2 में बीमारी एक ही फेफड़े में रुकी होती है लेकिन उसका साइज 3 CM से ज्यादा होता है।

स्टेज-3 में बीमारी का साइज 7 CM से ज्यादा होता है और वो फेफड़ों के लिम्फ नोड को भी इंवोल्व करता है।

स्टेज-4 में बीमारी फेफड़ों में फैल चुकी हैं या फेफड़ों के पानी को इन्वोल्व कर चुकी है।