राष्ट्रीय प्रतीक भारत की पहचान और आधार हैं। सभी प्रतीकों का अपना अलग महत्व भी है। देश की गरिमा को दर्शाने के लिए जैसे प्रतीकों की श्रेणी में राष्ट्रीय फूल, गीत व पक्षी आते हैं; ठीक उसी प्रकार राष्ट्रीय प्रतीक की इस श्रेणी में राष्ट्रीय पशु ‘बाघ’ भी आता है। बता दें कि साल 1973 में टाइगर यानी बाघ को राष्ट्रीय पशु चुना गया था।
बाघ का वैज्ञानिक नाम ‘पैंथेरा टिगरिस’ है। जैसा कि हम सभी जानते हैं हर एक राष्ट्रीय प्रतीक को चुनने के कई कारण होते हैं। ठीक उसी प्रकार बाघ को राष्ट्रीय पशु के रूप में चुने जाने के कई कारण थे। जिसमें से सबसे मुख्य कारण बाघ का फुर्तीलापन, शक्तिशाली और दृढ़ता का होना है और इन्हीं कारणों से बाघ को राष्ट्रीय पशु के रूप में चुना गया।
बाघ से पहले शेर था राष्ट्रीय पशु
आपको सुनकर जरूर हैरानी होगी लेकिन यह बात सच है कि बाघ से पहले भारत का राष्ट्रीय पशु शेर था। बता दें कि साल 1969 में वन्यजीव बोर्ड ने शेर को राष्ट्रीय पशु घोषित किया था। लेकिन साल 1973 में राष्ट्रीय पशु का दर्जा शेर को हटा कर बाघ को राष्ट्रीय पशु बाघ को बना दिया गया।
लेकिन अब यहां सवाल उठता है की आखिर शेर को हटा कर बाघ को क्यों राष्ट्रीय पशु के रूप में चुना गया। दरअसल एक वक्त तक झारखंड, दिल्ली, हरियाणा आदि जगहों पर बाघ काफी बड़ी संख्या में पाए जाते थे। लेकिन धीरे-धीरे इनकी संख्या घटती गई। बाघ को विलुप्त होने से बचाने के लिए भी राष्ट्रीय पशु चुना गया।
2018 कि एक रिपोर्ट के मुताबिक भारत में बाघों की संख्या 2967 हो गई है। यह संख्या 2014 में 2226 थी, इसमें लगभग 33 फीसदी का इजाफा हुआ है। जबकि जिस साल बाघ को राष्ट्रीय पशु घोषित किया गया था उस समय बाघ की संख्या केवल 9 थी। बाघों कि घटती संख्या को रोकने के लिए साल 1973 में प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की गयी थी। बता दें कि भारत में इस समय 53 टाइगर रिजर्व हैं।
