साल 1984 के लोकसभा चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी मध्य प्रदेश के ग्वालियर से चुनावी मैदान में उतरे। सियासी गलियारों में कानाफूसी थी कि माधवराव सिंधिया गुना की अपनी सीट छोड़कर ग्वालियर से लड़ सकते हैं। लेकिन वाजपेयी ने उनसे पहले ही तस्दीक कर ली थी। सिंधिया ने उनसे कहा था कि उनका ग्वालियर से चुनाव लड़ने का कोई इरादा नहीं है।
लेकिन ऐन मौके पर कांग्रेस ने माधवराव सिंधिया को ग्वालियर से मैदान में उतार दिया। वाजपेयी के पास कोई रास्ता नहीं बचा था। इस चुनाव में उन्हें करीब पौने दो लाख वोटों से हार का सामना करना पड़ा।
1984 के लोकसभा चुनाव में हार के बाद वाजपेयी को राज्यसभा के जरिये दोबारा सदन पहुंचने में करीब साल भर से ज्यादा का वक्त लग गया। यही दौर था जब वे किडनी की बीमारी से जूझ रहे थे और इलाज के लिए अक्सर अमेरिका जाना पड़ता था।
राजीव गांधी यूं करते थे मदद: चुनाव में हार के बाद सियासत से दूरी बढ़ी तो आर्थिक समस्याओं ने भी घेर लिया। हालांकि तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कोशिश रहती थी कि वाजपेयी को अमेरिका जाने वाले किसी न किसी प्रतिनिधिमंडल में शामिल कर लिया जाए, ताकि इसी बहाने में उनका इलाज भी चलता रहे।
हिंदूजा परिवार उठाता था खर्च: राजनीति विज्ञानी और लेखक विनय सीतापति हिंद पॉकेट बुक्स: पेंगुइन रैंडम हाउस से प्रकाशित अपनी हालिया किताब “जुगलबंदी: भाजपा मोदी युग से पहले” में कांग्रेस नेता जयराम रमेश के हवाले से लिखते हैं, ‘तब धारणा बन गई थी कि हिंदूजा परिवार वाजपेयी की आर्थिक मदद करता था। खुद सुब्रमण्यम स्वामी ने इसकी पुष्टि करते हुए कहा था कि विदेश में वाजपेयी के इलाज का खर्च हिंदूजा परिवार उठाता था’।
नुस्ली वाडिया भी भेजते थे पैसे: सीतापति लिखते हैं कि एक पारिवारिक मित्र ने धन का एक और स्रोत बताया था। उनके मुताबिक 1980 के पूरे दर्शक में नुस्ली वाडिया, वाजपेयी के घर पर 30000 रुपये भेजते थे। उस समय भाजपा के नेता काफी ईमानदार थे। उनके पास ज्यादा बचत नहीं थी और वाजपेयी भी इनमें से एक थे। उनको पैसों की जरूरत थी।
